वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्धकृत शेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं.
त्रिशक्ति के स्वरूप-1
श्रीमहाभारत के अंतर्गत गीता में देवी के त्रिशक्ति स्वरूप का वर्णन मिलता है-
सृजामि ब्रह्मरूपेण जगदेतच्चराचरम् ।
संहरामि महारूद्ररूपेणान्ते निजेच्छया ।।
दुर्वृत्तशमनार्थाय विष्णु: परमपुरूषः ।
भूत्वा जगदिदं कृत्स्नं पालयामि महामते ।।
देवी कहती हैं- मैं ही ब्रह्मारूप से जगत् की सृष्टि करती हूं तथा अपनी इच्छा के वश महारूद्ररूप से अंत में संहार करती हूं. मैं ही पुरूषोत्तम विष्णुरूप धारण करके दुष्टों का विनाश करते हुए समस्त जगत् का पालन करती हूं.
अर्थात् एक ही परमात्मा, जो निर्गुण, निष्क्रिय, निराकार और निर्लिप्त है, अपनी त्रिगुणात्मक, त्रिशक्त्यात्मक महाशक्ति से शवलित होकर जगत् की सृष्टि, पालन और संहाररूपी तीन प्रकार के कार्य के भेद से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र- इन तीनों नामों और मूर्तियों को धारण करता है और जिन तीन प्रकार की शक्तियों से शवलित होकर त्रिमूर्तिरूप में आता है, उन्हीं का नाम महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली है. ब्रह्माजी की शक्ति, जिससे सृष्टि होती है, महासरस्वती है. विष्णु-शक्ति, जो पालन करती-कराती है, महालक्ष्मी है और जिससे संहार होता है, उस रूद्र-शक्तिका नाम है महाकाली. इसीलिए श्री शंकराचार्यने भी कहा है- शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुम् ।। अर्थात् भगवान् अपनी शक्ति से शवलित होकर ही अपना काम करने में समर्थ होते हैं, नहीं तो नहीं. इससे स्पष्ट है कि अपने मूलस्वरूप में भगवान् निरज्जन निष्क्रिय होते हुए भी अपनी मायाशक्ति से शवलित होकर जगदीश्वर होते हैं, अर्थात् जगत्स्रष्टा, जगतपालक और जगतसंहर्ता बनते हैं. (क्रमशः)
प्रस्तुति-डॉ एन के बेरा