आशुतोष के पांडेय
पटना / मुजफ्फरपुर : ‘‘मसक-मसक रहता मर्म स्थल मर्मर करते प्राण/कैसे इतनी कठिन रागिनी कोमल सुर में गाई/किसने बांसुरी बजाई.’’ इन पंक्तियों के रचयिता महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का आज मुजफ्फरपुर में दो दिवसीय जन्मशती समारोह मनाया जा रहा है. जीवन मूल्यों और आस्था के विराट भारतीय स्वर आचार्य शास्त्री का जन्म सूबे के गया जिले के मैगरा गांव में हुआ था. शास्त्री जी ने कविता में मानवीय संवेदना और संस्कृति की जीवतंता को शब्दों के जरिये शिखर पर पहुंचाया. कविता के क्षेत्र में हालांकि उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन चालीस के दशक में उन्होंने कई छंदबद्ध काव्य-कथाओं की रचना की. उनकी रचनाएं ‘गाथा’ नामक उनके संग्रह में संकलित हैं. आचार्य ने अपने रचना संसार को इस कदर जनमानस के बीच लोकप्रिय बनाया कि लोग पढ़ने के बाद सांस्कृतिक विरासत के साथ छायावाद की छवि उसमें निहारने लगे.
महाकवि का रचना संसार
आचार्य शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोतम रूप में उनकी गीतों और गजलों में प्रकट होती थी. उन्होंने इसमें कई नये प्रयोग किये. उनके इन प्रयोगों से हिंदी गीतों का रचना संसार इतना व्यापक हुआ कि आज भी कोई साहित्यकार उसमें डुबकी लगाने को लालायित रहता है. उनकी रचनाओं में संवेदना और चेतनशीलता का आभास साफ पता चलता था. रचनाएं संवेदना की जीवंत ध्वनि बनकर लोगों के कानों में अविरल साहित्य रस धारा घोलती थीं. अपनी प्रसिद्ध रचना ‘बांसुरी’ में उन्होंने अपने मन के मर्म को सधे रूप में शब्दों के जरिये एक लय दिया जो आपको गहन संवेदना से भर देता है. ‘बांसुरी’ रचना में आवेग, आकुलता और संवेदनशीलता का सामंजस्य साफ देखा जा सकता है. उन्होंने हमेशा मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि स्थान देते हुए उसे आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले गये. आचार्य ने अपनी कविता रूप चितेरे में गाते हैं, ‘सुरभि छिपी सुकुमार सुमन में, जीवन की छवि उन्मन मन में, सरल कामना भाव गहन में, नाद वर्ण में अनुभव मेरे, रूप चितेरे, रूप चितेरे’. उनकी तमाम कविताओं में मानवीय मूल्यों के प्रति एक विशिष्ट आस्था झलकती है.
समर्पण का दूसरा नाम आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री
महाकवि की मानवीय संवेदना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जीवन के अंतिम समय से पहले तक उनके सबसे प्यारे दोस्त उनकी बिस्तर पर सोने वाले कुत्ते रहे. जिन्हें प्यार से वह पालते थे. उनके शयन कक्ष में दर्जनों कुत्तों की धमा-चौकड़ी मची रहती थी. हमेशा सरल-सहृदय भाव से किसी से मिलना और आडंबर को दूर से ही पहचान लेना उनकी खासियत थी. जब उन्हें मानवीय मूल्यों की कसौटी पर कसा जायेगा तो एक आस्थावादी कवि का रूप समग्र सृजना की ऊंचाईयों का दर्शन कराता हुआ मिलेगा. आचार्य हमेशा कला और साहित्य के लिये समर्पित रहे.
शास्त्री जी का जीवन
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री को कभी भी सांसारिक और नितांत भौतिकवादी राग पसंद नहीं आया. उन्होंने अपने तरीके से जीवन को जिया. उन्होंने कला और साहित्य के रास्ते पर चलना और उसी में भरपूर आस्था रखना इसे ही जिंदगी का आधार बनाया. सांसारिक रूप से उनका जीवन अभावग्रस्त और बीमारियों के बीच बिता लेकिन मानवीय मूल्यों का ध्वज उन्होंने हमेशा फहराया. आध्यात्मिक और साहित्यिक रूप से वह पूरी तरह संपन्न रहे और उसे सृजन के माध्यम से हमेशा प्रकट करते रहे. उन्होंने एक बार लिखा ‘‘अलग-थलग सभी सुरों से टेर मेरी अनसुनी-सी, मत्त प्राणों की उमंगें तप्त सिकता में चुनी-सी, गूंथना हूं चाहता निजर्न नयन के जल-कणों को, सत्य पर छाये हुये मधु-स्वपन के स्वर्णिम क्षणों को.’’ 26 जनवरी 2010 को तत्कालीन भारत सरकार उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया जिसे हंसते हुये शास्त्री जी ने मजाक कहा और उसे अस्वीकार कर दिया. सात अप्रैल 2011 को मुजफ्फरपुर के निराला निकेतन में शास्त्री जी ने अंतिम सांस ली.
जन्मशती समारोह में पहुंचे दो राज्यों को राज्यपाल
जन्मशती समारोह में भाग लेने पहुंची गोवा की राज्यपाल मृदला सिन्हा ने भावुक होकर कहा कि शास्त्री जी जो अपनी किताबों में लिखते थे पूरा भारत उसे अपने घरों में जीता था. उन्होंने कहा कि एक बार शास्त्री जी को साढ़ ने घायल कर दिया तो मैंने यह बात अपने पति से बतायी. उसके बाद उन्होंने यह बात प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कही और रातों रात जाकर उनसे मुलाकात की. मृदुला सिन्हा ने कहा कि शास्त्री जी के लिये आयोजित ऐसे कार्यक्रमों में पूरा सहयोग रहेगा और उनके निराला निकेतन को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित किया जायेगा. वहीं बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने कहा कि मैंने जब इनके कृतित्व को जाना तो मन उत्सुकता से भर उठा. मैंने उनकी कविता जीवन रहस्य को पढ़ा. कोविंद ने कहा कि निराला के सच्चे अनुयायी आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री थे. उनका पशु प्रेम आज भी अनुकरणीय है. पशुओं के मरने के बाद उनकी समाधि बनवाना और उनसे आगाध प्रेम करना यह सबके बस की बात नहीं.
निराला और रामवृक्ष बेनीपुरी भी मानते थे महान
निराला ने शास्त्री जी के बारे में कहा था, श्री जानकीवल्लभ शास्त्री शास्त्रचार्य, हिन्दी के श्रेष्ठ कवि, आलोचक और कहानी लेखक हैं. अपनी प्रतिभा, विद्वता, लेखन-कौशल और दिव्य व्यवहार से उन्होंने अनेक बार मुझ पर अपनी गहरी छाप डाली है. हिन्दी के साहित्यिक उत्थान में बिहार की इस प्रतिभा को मानना पड़ता है. जानकीवल्लभ यहां के और समस्त हिन्दी भाषी प्रांतों के प्रतिभाशालियों में एक हैं. सच तो यह है कि वे सामयिक हिन्दी काव्य-धारा और सामयिक प्रकाशन शैली के एक सुन्दर प्रतिनिधि हैं. वहीं रामवृक्ष बेनीपुरी ने आचार्य के बारे में कहा था, एक अशांत आत्मा जिस के कंठ में कोमल स्वर, मस्तिष्क में सपक्ष कल्पना और हृदय में भावना का सागर जहां एक ही साथ समुद्र का हाहाकार, पंछी का कलरव और वंशी की तान है.