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अब हिल ऑफ ज्‍वॉय बन रहा मैकलुस्कीगंज

घोस्ट टाउन का कलंक मिटाने आगे आये लोग मैकलुस्कीगंज से लौट कर जीवेश jivesh.singh@prabhatkhabar.in मैकलुस्कीगंज की वादियों में छायी विरानी छंटने लगी है. सप्ताहांत व अन्य छुट्टी के दिन हर उम्र व वर्ग के लोगों की आवाजाही यहां बढ़ी है. खास कर अक्तूबर से मार्च मध्य तक आनेवालों की संख्या अब यहां के लोगों को […]

घोस्ट टाउन का कलंक मिटाने आगे आये लोग
मैकलुस्कीगंज से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
मैकलुस्कीगंज की वादियों में छायी विरानी छंटने लगी है. सप्ताहांत व अन्य छुट्टी के दिन हर उम्र व वर्ग के लोगों की आवाजाही यहां बढ़ी है. खास कर अक्तूबर से मार्च मध्य तक आनेवालों की संख्या अब यहां के लोगों को उत्साहित करने लगी है. हाल ही में एक माह (फरवरी 16 से मार्च 16 के बीच) यहां एक फिल्म की शूटिंग हुई.
इस दौरान अोम पूरी सहित कई नामचीन कलाकार व उनकी पूरी टीम यहां रही. कलाकारों ने बिना किसी दिक्कत इलाके का पूरा आनंद उठाया. स्वतंत्रता की लड़ाई में मंगल पांडेय से मुकाबला करने स्कॉटलैंड से आये विलियम पर्थ गार्डेन के परपोता नेलसन पॉल गार्डेन (1942 में यहां आये) के अनुसार, अब मैकलुस्कीगंज का गौरव लौटाने में सब लगे हैं. खास कर इलाके के सौंदर्य व शांति को बरकरार रखने के साथ-साथ पर्यटकों के लिए अलग व्यवस्था की जा रही है.
शीघ्र ही यहां म्यूजियम, एंग्लो इंडियन फूड अौर एंग्लो इंडियन की संरक्षित कोठियों को देखने व उनमें रहने का आनंद उठा सकेंगे पर्यटक. इसकी योजना स्थानीय लोगों ने बनायी है.
यहां रह चुके महाश्वेता देवी, बुद्धदेव गुहा जैसे नामचीन की निशानियों व उनके घरों (इनमें अब दूसरे रहते हैं) से भी पर्यटकों का नाता बने, इसकी तैयारी त्रिपुरा स्टेट से संबंधित अौर 1972 से यहां रह रहे दीपक राणा व नेलसन पॉल गार्डेन कुछ लोगों के साथ मिलकर कर रहे हैं. झारखंड सरकार ने भी इनकी पहल में मदद का आश्वासन दिया है. सड़क के चौड़ीकरण अौर निर्माण से भी स्थानीय लोग उत्साहित हैं. अब डेढ़ घंटे में रांची से मैकलुस्कीगंज का सफर तय किया जा सकता है. इससे भी पर्यटकों की संख्या बढ़ी है.
रांची से 55 किलोमीटर दूर समूद्र तल से 2200 फीट की ऊंचाई पर स्थित मैकलुस्कीगंज 1995 तक पहले एंग्लो इंडियन, बाद में बंगालियों अौर सेना तथा अन्य उच्च सेवा से अवकाश प्राप्त समृद्ध लोगों से गुलजार रहा. देर रात पार्टियों व विद्वतापूर्ण गोष्ठी का दौर चलता था. महाश्वेता देवी, बुद्धदेव गुहा, अर्पणा सेन जैसी शख्सियत यहां की शान हुआ करती थी. ऐसे में 1996 में पहली बार राकेशजी के नेतृत्व में नक्सली यहां घुसे. फिर तो नक्सली हर-अोर दिखने लगे. हथियार के लिए यहां के एक प्रोफेसर की जर्मन पत्नी काे अगवा कर लिया.
इन सबसे भय का माहौल बन गया. अंतिम कील 2006 में एक सीरियल की शूटिंग करने आयीं रूपा गांगुली की टीम के साथ दुर्व्यवहार अौर लूट-पाट की घटना साबित हुई. इसके बाद बाहर से आनेवालों की संख्या कम होती गयी. पलायन करनेवाले भी बढ़ गये. हंसी-ठहाकों व पार्टियों के लिए प्रसिद्ध मैकलुस्कीगंज घोस्ट टाउन कहा जाने लगा. पर अब पुलिसिंग के कारण नक्सली गतिविधियां कमी हैं. डॉन बॉस्को व अन्य सरकारी स्कूलों के आने से रोजगार के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा की भी अच्छी व्यवस्था हुई है. इन सबसे उत्साहित हैं यहां के लोग.
कैसे बसा मैकलुस्कीगंज
देश के एंग्लो इंडियन को एक जगह बसाने की योजना ब्रिटिश सरकार में एमएलसी रहे इटी मैकलुस्की की थी. इसके लिए उन्होंने क्लोनाइजेशन सोसाइटी इंडिया लिमिटेड नामक संस्था बनायी. इसी संस्था के नाम उन्होंने रातू महाराज से 10 हजार एकड़ जमीन ली. चार नदियों (दामोदर, सफी, बाला व चट्टी) के बीच बसे सात गांव (हरहू, बसरिया, दुली, कदल, लपरा, कोणका, हेसालौंग, नवाडीह व मायापुर) में बसनेवाले मैकलुस्कीगंज की नींव तीन नवंबर 1933 को रखी गयी. 80 किलोमीटर के दायरे में 380 घर का निर्माण हुआ. यहीं से 1934 में साप्ताहिक द क्लोनाइजेशन अॉब्जर्बर की शुरुआत हुई. इलाके के विकास के लिए एक पंचवर्षीय योजना बनायी गयी. इसके लिए क्लोनाइजेशन सोसाइटी का गठन किया गया. इसके सदस्य बनने के लिए पांच रुपये देने पड़ते थे. इसके सदस्यों को इसका शेयर होल्डर भी बनाया गया था. एक शेयर की कीमत 12.08 रुपये थी. इन पैसों से इलाके का विकास होता था. उस समय सारी सुविधाएं थीं.
यह हुई थी भूल
अॉल इंडिया एंग्लो इंडियन एसोसिएशन की मैकलुस्कीगंज शाखा के अध्यक्ष हैं मैलकम होरीजन. उनके अनुसार इलाका बसानेवाले लगभग सभी लोग अवकाशप्राप्त या बड़े पद पर रहनेवाले थे.
इस कारण उन लोगों ने मैकलुस्कीगंज को सिर्फ आनंद का स्थान बनाया. शिक्षा व रोजगार जैसी दो सबसे जरूरी अवश्यकताअों की यहां कोई व्यवस्था नहीं की गयी. इस कारण बाद में पैसे की कमी से लोग पलायन करने लगे. बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर भेजना पड़ा. बाहर पढ़नेवाले बच्चे नौकरी की सुविधा नहींहोने के कारण वापस नहीं आये. मैलकम कहते हैं कि यहां कोई एंलो इंडियन दुखी नहीं. सबको मिल कर काम करना होगा.
जिनका है सहयोग
डॉन बॉस्को स्कूल के कारण बाहर से बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे. अब इलाके में लगभग 50 हॉस्टल हैं. इससे लोगों को रोजगार मिला. शिक्षाविद सच्चिदानंद उपाध्याय ने जागृति बिहार की स्थापना की.
इसने भी इलाके का विकास किया. जानेमाने खिलाड़ी शेखर बोस ने यहां वालीबॉल का गुलमोहर नामक कोचिंग संस्थान खोला. यहां भी देश के विभिन्न भाग से खिलाड़ी आते अौर रहते हैं. एक आइटीआइ की भी स्थापना हो रही. इसके अलावा सभी स्थानीय लोगों ने अपना पूरा योगदान दिया है.
यहां चाहिए सरकारी मदद
मैकलुस्कीगंज में ईंट-भट्ठों की संख्या काफी बढ़ गयी है. अधिकतर अवैध इन भट्ठों के कारण नदी का पानी भी सूख रहा है. प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हो गयी है. इनके मालिक दबंग हैं, इस कारण कोई बोलता भी नहीं. जंगल की अवैध कटाई जोरों पर है. जानकारों के अनुसार जंगल के बीच में ही हाथ से चलनेवाली आरा मशीन लगा कर पेड़ के टुकड़े कर बाहर भेज देते हैं दबंग. पर्यटकों की सुविधा के लिए यहां पर्यटन केंद्र का निर्माण किया गया है.
लाखों खर्च के बाद बने इस केंद्र को आज तक चालू नहीं किया जा सका है. यह टूटने भी लगा है. यह तत्काल चालू हो अौर यहां कर्मचारी भी तैनात हो, ताकि देश-विदेश से आनेवाले पर्यटकों को सूचना मिल सके. मैकलुस्कीगंज रेलवे स्टेशन पर अन्य ट्रेनों का भी ठहराव हो.
यहां स्वास्थ सेवा की स्थिति भी खराब है. सिर्फ एक नर्स के भरोसे अस्पताल है. पहले सप्ताह में एक-दो दिन डॉक्टर आते भी थे, पर जनवरी से कोई डॉक्टर नहीं आ रहा. किसी की स्थिति गंभीर हो गयी, तो मरना तय है.
(साथ में सुनील कुमार व रोहित)

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