इस बार हालांकि राह इतनी आसान नहीं दिख रही है. कुमारी कुजुर को इस बार के विधानसभा चुनाव में न केवल भाजपा, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा. उत्तर बंगाल में अन्य स्थानों पर भाजपा भले ही कमजोर रही हो, लेकिन मदारीहाट में उसकी स्थिति काफी मजबूत है. वर्ष 2011 के चुनाव में कुमारी कुजुर ने भाजपा के मनोज टिग्गा को हराया था. तब तृणमूल समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार अतुल सुब्बा तीसरे स्थान पर थे. इस बार राजनीतिक समीकरण थोड़ा अलग है. भाजपा की ताकत तो बढ़ी ही है, साथ ही ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने भी अपना काफी विस्तार किया है. यह विधानसभा सीट अलीपुरद्वार लोकसभा सीट के अधीन है. ममता बनर्जी ने पिछले महीने यहां एक चुनावी जनसभा भी की थी.
इसमें अलीपुरद्वार जिले के सभी विधानसभा सीटों के उम्मीदवार उपस्थित थे. स्वाभाविक रूप से तृणमूल की निगाहें भी इस सीट पर लगी हुई हैं. मदारीहाट सीट पर एक बार को छोड़ दें तो कभी भी यहां से आरएसपी के अलावा किसी अन्य पार्टी की जीत नहीं हुई है. 1962 में इस सीट के गठन के बाद से सिर्फ एक बार 1967 में कांग्रेस के डीएन राई इस सीट से जीते थे. उसके बाद से लेकर वर्ष 2011 तक लगातार इस सीट पर आरएसपी का कब्जा रहा है. कुमारी कुजुर पहली बार इस सीट से 2001 में चुनाव जीती थी. उसके बाद 2006 तथा 2011 में भी उन्हीं की जीत हुई. इस बार इस सीट से कुल पांच उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस ने आरएसपी का समर्थन किया है. भाजपा के मनोज टिग्गा, तृणमूल कांग्रेस के पदम लामा के अलावा एसयूसीआईसी के सुदीष्ट बराइक तथा झामुमो के पदम उरांव भी मैदान में हैं. यदि भाजपा की बात करें तो वर्ष 2011 के चुनाव में मनोज टिग्गा भले ही कुमारी कुजुर से हार गये थे, लेकिन वह 34 हजार 430 मत लाने में कामयाब रहे थे. इस बार इस सीट पर गोजमुमो भी भाजपा का समर्थन कर रही है. ऐसे में मनोज टिग्गा यदि कोई कमाल दिखा दें, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.