बरही : कोई भी काम छोटा नहीं होता. मेहनत की रोटी की मिठास मांगे के गुड़ से कहीं ज्यादा होती है. कुछ ऐसा ही मानना है एस (पूरा नाम क्या है) खलखो का. स्नातक पास खलखो बरही चौक पर चाय का ठेला लगाती हैं. उनके हाथ की बनी चाय की चुस्की के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग.
लातेहार की खलखो को जीवन ने कई रंग दिखाये, पर उन्होंने सिर्फ एक रंग चुना, मेहनत का रंग. अपने बारे में कुछ खास नहीं बतातीं. किसान पिता की बेटी खलखो ने रांची के वीमेंस कॉलेज से बीए तक की पढ़ाई की.
पिता की गरीबी आड़े आयी, तो पढ़ने में तेज होने के बाद भी आगे की पढ़ाई नहीं कर पायी. फिर शुरू हुई खुद को प्रमाणित करने की कोशिश. पहले सरकारी नौकरी के लिए भटकी, पर सफलता नहीं मिली. कुछ दिनों तक प्राइवेट नौकरी भी की, लेकिन संतुष्टि नहीं हुई. पास में पैसे नहीं थे, कि कुछ बड़ा काम करे. पर काम कोई भी छोटा नहीं होता, इसी अंत:प्रेरणा से उन्होंने चाय का ठेला लगा लिया. अपने स्वभाव अौर अच्छी चाय के बल उनकी पहचान बन गयी. आज सब उनकी इज्जत करते हैं. कहती हैं कि इतने पैसे आ जाते हैं कि घर ठीक से चल जाता है.
अपने बारे में कुछ बात करना खलखो को पसंद नहीं. पांच भाई व तीन बहनों के साथ खलखो खुश हैं. शादी के संबंध में चर्चा होने पर कहती हैं, कि पति न थे अौर न ही हैं. हां इतना जरूर कहती हैं कि खुद को किसी मुकाम पर पहुंचाना उनकी चाहत है अौर इसके लिए वह पैरवी नहीं, मेहनत पर विश्वास करती हैं.