20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार

छत्तीसगढ़ में पुलिस के पत्रकारों को सच्चे-झूठे आरोपों में गिरफ़्तार करने और धमकाने की ख़बरें सही हैं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया की एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम की जांच में यह नतीजा निकला है जिसने 13 से 15 मार्च के बीच जगदलपुर, बस्तर और रायपुर का दौरा किया था. कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है […]

Undefined
छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार 6

छत्तीसगढ़ में पुलिस के पत्रकारों को सच्चे-झूठे आरोपों में गिरफ़्तार करने और धमकाने की ख़बरें सही हैं.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया की एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम की जांच में यह नतीजा निकला है जिसने 13 से 15 मार्च के बीच जगदलपुर, बस्तर और रायपुर का दौरा किया था.

कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार, ख़ासकर पुलिस की ओर से, पत्रकारों पर वैसी ख़बरें छापने का दबाव बनाया जा रहा है जैसा वे चाहते हैं या ऐसी ख़बरें रोकने को कहा जा रहा है जिन्हें प्रशासन अपने ख़िलाफ़ मानता है. इन क्षेत्रों में काम कर रहे पत्रकारों को माओवादियों का भी दबाव झेलना पड़ता है.

जिस फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम (एफ़एफ़टी) में एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के महासचिव प्रकाश दुबे और कार्यकारी समिति सदस्य विनोद वर्मा ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था.

उन्होंने रायपुर में मुख्यमंत्री रमन सिंह, वरिष्ठ पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और बड़ी संख्या में पत्रकारों से बात की.

इस टीम को एक भी ऐसा पत्रकार नहीं मिला जो यकीन के साथ कह सके कि वह डर या दबाव के बिना काम कर पा रहा है. बस्तर और रायपुर में काम कर रहे सभी पत्रकार दोनों ओर से दबाव की बात करते हैं.

Undefined
छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार 7

सभी ने शिकायत की है कि प्रशासन उनके फ़ोन कॉल को टैप कर रहा है और अघोषित रूप से उनकी निगरानी की जा रही है. वे कहते हैं, "पुलिस हर उस शब्द को सुनती है जो हम कहते हैं."

लेकिन सरकारी अधिकारी इन आरोपों को सिरे से नकारते हैं.

प्रधान सचिव (गृह) बीवीके सुब्रमण्यम कहते हैं, "निगरानी रखने की हर अर्ज़ी की स्वीकृति मुझे देनी होती है और मैं यह आपको यक़ीन के साथ यह सकता हूं कि किसी भी सरकारी विभाग को किसी भी पत्रकार का फ़ोन टैप करने की इजाज़त नहीं है."

बस्तर में काम करने वाले पत्रकार कहते हैं कि वे संघर्ष वाली जगहों पर रिपोर्टिंग करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते क्योंकि वे ज़मीनी हक़ीक़त को बयां कर ही नहीं सकते. हालांकि जगदलपुर के कलेक्टर अमित कटारिया ने एफ़एफ़टी से कहा कि पूरे बस्तर में पत्रकारों समेत अब कोई भी व्यक्ति कहीं भी जा सकता है.

डिविज़नल जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ बस्तर के अध्यक्ष एस करीमुद्दीन पिछले तीन दशक से ज़्यादा समय से यूएनआई से जुड़े हैं.

Undefined
छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार 8

नक्सल प्रभावित इलाक़ों में पत्रकार दोनों पक्षों का दबाव झेल रहे हैं.

वह कहते हैं, "मैं पिछले छह साल से जगदलपुर के बाहर नहीं गया हूं. इसकी सीधी सी वजह यह है कि आप जो देखते हैं उसके बारे में सच लिख नहीं सकते तो फिर सूचनाएं एकत्र करने का फ़ायदा ही क्या है?"

स्क्रॉल डॉट इन की पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम के घर पर इसी साल 8 फ़रवरी को करीब 20 लोगों ने हमला कर दिया था. वह कहती हैं कि अगर कोई रिपोर्टिंग करने के लिए बाहर जाता भी है तो उससे लोगों से बात करने की उम्मीद नहीं की जाती है.

मालिनी कहती हैं, "पुलिस अधिकारी उम्मीद करते हैं कि वह जो भी दावा करें पत्रकार उस पर यकीन करें और छाप दें. वह बिल्कुल पसंद नहीं करते कि कोई तथ्य जानने के लिए अतिरिक्त प्रयास करे."

एक पुराने प्रतिष्ठित अख़बार के प्रमुख संपादक ललित सुरजन कहते हैं कि आज एक पत्रकार के लिए काम करना बेहद मुश्किल हो गया है, "अगर आप स्वतंत्र रूप से तथ्यों का विश्लेषण करना चाहें तो आप नहीं कर सकते क्योंकि वे आपकी मंशा पर सवाल उठाते हैं और सीधे-सीधे पूछ सकते हैं कि आप सरकार के साथ हो या माओवादियों के?"

Undefined
छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार 9

सामाजिक एकता मंच को सलवा जुडूम का ही नया चेहरा कहा जा रहा है.

कई वरिष्ठ पत्रकारों ने आरोप लगाया कि जगदलपुर के विवादित नागरिक संगठन ‘सामाजिक एकता मंच’ को बस्तर के पुलिस मुख्यालय से पैसा मिलता है और वहीं से इसे चलाया भी जाता है. उनके अनुसार यह सलवा जुडूम का ही नया रूप है.

एफ़एफ़टी ने इस संगठन की कार्यप्रणाली को समझने के लिए इसके एक संयोजक सुब्बा राव से बात की.

उन्होंने ख़ुद को दो दैनिक अख़बारों (एक सुबह और एक शाम को छपने वाला) का संपादक बताया. यह पूछे जाने पर कि क्या उनका मुख्य काम पत्रकारिता ही है, सुब्बा राव ने विस्तार से बताया कि मूल रूप से वह एक ठेकेदार हैं और कई सरकारी काम उनके पास हैं.

Undefined
छत्तीसगढ़ में खौफ़ में जी रहे हैं पत्रकार 10

बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक पर पत्रकारों को धमकाने का आरोप है.

एफ़एफ़टी जगदलपुर में एक दर्जन से ज़्यादा पत्रकारों से मिली लेकिन वही एकमात्र (तथाकथित) पत्रकार थे जिनका दावा था कि उन्हें कभी भी प्रशासन से किसी तरह का कोई दबाव नहीं झेलना पड़ा.

बीबीसी के लिए छत्तीसगढ़ में काम करने वाले आलोक पुतुल ने भी जब एक ख़बर के लिए आईजी एसआरपी कल्लूरी और एसपी का पक्ष जानना चाहा था तो ‘उन पर न सिर्फ़पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का आरोप लगाया गया था बल्कि यह भी कहा गया कि देशभक्त मीडिया पुलिस के साथ है.’

आलोक पुतुल ने एफ़एफ़टी को यह भी बताया कि इसके बाद उन्हें तुरंत वह इलाक़ा छोड़ देने की धमकी दी गई थी.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें