19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सफेद इमारतों के काले साये

रियल एस्टेट ऐसा क्षेत्र है, जहां अघोषित कैश आसानी से लगाया जा सकता है. चूंकि अधिकतर सौदे ऑफ-रिकॉर्ड होते हैं, इसलिए कालाधन इसमें जम कर आता है. पहले वह फर्जी कंपनियों के जरिये विदेश जाता है और फिर एफडीआइ बन कर देश में वापस आ जाता है. जहां चाह है, वहां धंधा है और ज्यादा […]

रियल एस्टेट ऐसा क्षेत्र है, जहां अघोषित कैश आसानी से लगाया जा सकता है. चूंकि अधिकतर सौदे ऑफ-रिकॉर्ड होते हैं, इसलिए कालाधन इसमें जम कर आता है. पहले वह फर्जी कंपनियों के जरिये विदेश जाता है और फिर एफडीआइ बन कर देश में वापस आ जाता है.
जहां चाह है, वहां धंधा है और ज्यादा चाह है, वहां काला धंधा है. देश में जमीन-जायदाद या रियल एस्टेट के धंधे का सालोंसाल से यही हाल है. उद्योग संगठन फिक्की के एक अध्ययन के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा कालाधन रियल एस्टेट में लगा है, सोने व चांदी से भी ज्यादा. कम-से-कम अगले छह सालों तक इस धंधे में मंदी के कोई आसार भी नहीं हैं. केंद्र सरकार ने बारंबार दोहराया है कि वह 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होने तक हर भारतीय को पक्का घर दे देगी. इस दौरान 100 स्मार्ट शहर भी बनाये जाने हैं. बीते हफ्ते ही कैबिनेट ने फैसला किया है कि अगले तीन सालों में ग्रामीण इलाकों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक करोड़ मकान बनाये जाएंगे.
सरकार ने गिना है कि इन करोड़ मकानों पर 81,975 करोड़ रुपये की लागत आयेगी, जिसमें से 60,000 करोड़ रुपये बजट से दिये जायेंगे और बाकी 21,975 करोड़ रुपये राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की तरफ से दिये जायेंगे. यही नहीं, उनके बाद के चार सालों में भी 1.95 करोड़ मकान बनाये जायेंगे. इस तरह अगले सात साल में गांव से लेकर शहर तक हर भारतवासी के पास अपना खुद का पक्का मकान होगा. इसमें काम में राज्य सरकारों को भी शामिल किया जायेगा और वे मकानों का 40 प्रतिशत बोझ उठायेंगी. यह इंतजाम उनके लिए है, जो अपना पक्का मकान बना नहीं सकते.
सरकार ने उनका भी ख्याल रखा है, जिनकी औकात खुद का मकान बनाने या खरीदने की है. दो हफ्ते पहले ही लोकसभा ने उस रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट) बिल को पास कर दिया, जिसे राज्यसभा पहले ही पारित कर चुकी है. अब कानून बनने के लिए इस पर राष्ट्रपति की मुहर लगने और अधिसूचना जारी होने तक की देर है. दावा किया जा रहा है कि कानून बन जाने के बाद यह बिल्डरों की तरफ से अब तक की जानेवाली सारी अंधेरगर्दी पर रोक लगा देगा और घर खरीदनेवालों के अच्छे दिन आ जायेंगे. हालांकि, यह बाद की बात है, क्योंकि रियल एस्टेट का नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है. इसलिए सारा दारोमदार इस पर निर्भर करता है कि हर राज्य केंद्रीय कानून पर अपने यहां कैसे अमल करता है.
लेकिन, इतना तय है कि अब बिल्डर की मनमानी पर लगाम लग जायेगी. हर राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र में बिल्डर को 500 वर्गमीटर से ऊपर के सभी आवासीय या व्यावसायिक प्रोजेक्ट को संबंधित रियल एस्टेट नियामक संस्था के पास पंजीकृत कराना पड़ेगा. उसे ग्राहक से लिये गये धन का 70 प्रतिशत हिस्सा अलग बैंक खाते में रखना पड़ेगा, जिसका इस्तेमाल वह निर्माण के काम में ही कर सकता है. मकान घोषित समय पर रहने के लिए नहीं दिया गया, तो जमा धन पर बिल्डर को ब्याज चुकाना होगा. मकान केवल कारपेट एरिया पर ही बेचे जा सकते हैं, अभी की तरह बिल्ट-अप या सुपर बिल्ट-अप एरिया पर नहीं. राज्यों के स्तर पर ट्रिब्यूनल बनाये जायेंगे, जिन्हें शिकायतों का निबटारा 60 दिन के भीतर करना होगा. कानून में ऐसी तमाम व्यवस्थाएं हैं, जिनसे मकान की खरीद में पारदर्शिता आ जायेगी और बिल्डर की जवाबदेही तय हो जायेगी. यह एक ऐतिहासिक कानून है, जिसका इंतजार दशकों से किया जा रहा था.
लेकिन, समुद्र में तैरते हिमखंड का 8/9वां भाग सतह के नीचे दबा होता है. यही हाल जमीन-जायदाद के धंधे का है. हमें समझने की जरूरत है कि अगर अगले तीन साल में केंद्र सरकार गांवों में एक करोड़ पक्के मकान बनाने पर 81,975 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है, तो उसका किसको और कितना लाभ मिलेगा? ठेकेदारों से लेकर राजनेताओं तक होते हुए कितने धन का वास्तविक इस्तेमाल होगा, यह सोचने व समझने की बात है. यह भी सोचिए कि सरकारी हिसाब से गांव के एक मकान में 81,975 रुपये ही केंद्र व नाबार्ड से मिलेंगे. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक, इन मकानों की लागत 1.20 लाख से 1.30 लाख रुपये से 10 प्रतिशत इधर-उधर हो सकती है. मान लीजिए कि इतने में मकान बन भी गया, तो क्या वह भारतीय मौसम में रहने लायक होगा? सवाल उठता है कि क्या सरकार भारतीय परंपरा को सम्मान देनेवाले मशहूर आर्किटेक्ट लॉरी बेकर का मॉडल अपनाते हुए गांवों में मिट्टी, खप्पर, लकड़ी और पत्तियों के इस्तेमाल से घर नहीं बना सकती थी?
अब रियल एस्टेट के अंधेरे पक्ष की बात. नये बिल में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआइ) के लिए दरवाजा पूरा खोल दिया गया है. इस बिल के पास होने के बाद विदेशी फर्म नोमुरा सिक्यूरिटीज ने एक रिसर्च नोट में कहा था कि अब एफडीआइ को पहले से कहीं ज्यादा प्रोत्साहन मिल सकता है. मालूम हो कि रियल एस्टेट में एफडीआइ का रास्ता देश में साल 2005 में ही खोल दिया गया था. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि 2005 से 2010 के बीच भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र में आये विदेशी निवेश की मात्रा 80 गुना बढ़ गयी थी. उसके बाद का आंकड़ा सामने नहीं आया है. लेकिन, यह यकीनन इससे भी ज्यादा रफ्तार से बढ़ा होगा. कारण यह है कि रियल एस्टेट ऐसा क्षेत्र है, जहां अघोषित कैश आसानी से लगाया जा सकता है. चूंकि अधिकतर सौदे ऑफ-रिकॉर्ड होते हैं, इसलिए कालाधन इसमें जम कर आता है. पहले वह फर्जी कंपनियों के जरिये विदेश जाता है और फिर एफडीआइ बन कर देश में वापस आ जाता है.
यह ऐसा खुला सच है, जिससे नजरें मिलाने की कोशिश सरकार नहीं कर रही है. नेताओं-बिल्डरों का नापाक गंठबंधन हर जगह सक्रिय है. चुनावों में इस धंधे का प्रताप जम कर दिखता है. हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां और बैंक भी इस हकीकत से वाकिफ हैं. उनको पता है कि घोषित रूप से जिस 40-50 लाख रुपये के मकान पर उन्होंने 25 लाख का लोन दिया है, उसकी असली कीमत एक करोड़ रुपये है और डिफॉल्ट की सूरत में वे मकान बेच कर अपना लोन आसानी से वसूल लेंगे. सार की बात यह है कि जब तक ऊंची-ऊंची सफेद इमारतों के इन काले सायों से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक मकान तो बहुत बन सकते हैं, लेकिन घर का सपना दूर की कौड़ी बना रहेगा.
अनिल रघुराज
संपादक, अर्थकाम.काॅम
anil.raghu@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें