सियासत. पिछली बार खुद ही हार गये थे केपीपी सुप्रीमो
सिलीगुड़ी : कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी (केपीपी) द्वारा विधानसभा चुनाव में अचानक तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन की घोषणा के बाद इसके प्रभाव को जांचने में तमाम राजनीतिक विश्लेषक जुट गये हैं.
करीब एक सप्ताह पहले तक केपीपी भाजपा के साथ थी. इतना ही नहीं, पांच सीटों पर केपीपी के उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भी थे.
कुछ दिनों पहले एक संवाददाता सम्मेलन में केपीपी सुप्रीमो अतुल राय ने साफ-साफ कहा था कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ रहेगी. इतना ही नहीं, उन्होंने डाबग्राम-फूलबाड़ी सीट से चुनाव लड़ रहे तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार तथा उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव के खिलाफ मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की भी घोषणा की थी. अचानक उन्होंने पाला बदल लिया. शुक्रवार को उन्होंने गौतम देव के साथ संवाददाताओं से बातचीत की और चुनाव में तृणमूल उम्मीदवारों को समर्थन का ऐलान कर दिया. अतुल राय के इस निर्णय को विरोधी दलों के उम्मीदवार उतना अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि अतुल राय के पाला बदल से वोटों के बंटवारे का बहुत ज्यादा असर नहीं होगा. वास्तविकता यह है कि अलग कामतापुर राज्य बनाने की मांग को लेकर अतुल राय स्वयं तथा उनकी पार्टी के कई उम्मीदवार पिछले विधानसभा लड़े थे. जीतने की बात तो दूर, पार्टी किसी भी सीट पर अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी. और तो और, अतुल राय स्वयं ही चुनाव हार गये थे.
वह मात्र 7.23 प्रतिशत वोट पाने में सफल रहे थे. दार्जिलिंग जिले में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें से वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में केपीपी उम्मीदवारों ने दो सीटों पर अपनी किस्मत आजमायी थी. दोनों ही सीटों पर पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. केपीपी प्रमुख अतुल राय माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे. हालांकि पांच उम्मीदवारों में वह तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन तब उन्हें मात्र 11 हजार 906 वोटों से संतुष्ट होना पड़ा था. इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार शंकर मालाकार की जीत हुई थी. शंकर मालाकार तब कांग्रेस तथा तृणमूल कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार थे.
कुल एक लाख 64 हजार 483 मतदाताओं ने मतदान किया था और शंकर मालाकार 74 हजार 334 वोट लेकर चुनाव जीतने में सफल रहे थे. उन्होंने वाम मोरचा के झरेन राय को हराया था. श्री राय 67 हजार 501 वोट पाने में सफल रहे थे. इस बार इस सीट पर राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदला हुआ है. तृणमूल अकेले चुनाव लड़ रही है. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार शंकर मालाकार को वाम मोरचा का समर्थन भी हासिल है. तृणमूल की ओर से अमर सिन्हा तथा भाजपा की ओर से आनंदमय वर्मन इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुख्य मुकाबला इन्हीं तीनों के बीच होने की संभावना है. माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी सीट के अलावा दार्जिलिंग जिले में केपीपी ने फांसीदेवा सीट से भी अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा था. केपीपी के टिकट पर हिलेरियस एक्का इस सीट से चुनाव लड़े थे.
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर मात्र 2.89 प्रतिशत वोट लेकर श्री एक्का पांचवें स्थान पर रहे थे. इससे यह जाहिर है कि फांसीदेवा सीट पर भी केपीपी का कुछ अधिक प्रभाव नहीं है. हिलेरियस एक्का मात्र चार हजार 114 वोट पाने में सफल रहे थे और उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी. इस सीट से कांग्रेस के सुनील चन्द्र तिरकी 61 हजार 388 वोट लेकर चुनाव जीते थे. उन्होंने वाम मोरचा समर्थित माकपा उम्मीदवार छोटन किस्कू को हराया था. छोटन किस्कू को 59 हजार 151 वोट पाने में सफलता मिली थी.
इस सीट पर केपीपी के कम जनाधार का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिलेरियस एक्का से करीब डेढ़ गुना ज्यादा वोट अनाम समझी जाने वाली पार्टी राष्ट्रीय देशराज पार्टी के जुनस करकेट्टा ने हासिल की थी. इस बार इस सीट से कांग्रेस के सुनील चन्द्र वर्मन, तृणमूल के कारलोस लाकड़ा तथा भाजपा के दुर्गा मूरमू चुनाव मैदान में हैं. स्वाभाविक तौर पर तृणमूल के समर्थन की घोषणा के बाद अतुल राय विरोधियों के निशाने पर आ गये हैं.
कांग्रेस नेता शंकर मालाकार का कहना है कि केपीपी के तृणमूल के समर्थन से कोई खास असर नहीं पड़ेगा. वह केपीपी प्रमुख अतुल राय को अधिक महत्व भी नहीं देना चाहते. भाजपा ने भी अतुल राय पर निशाना साधा है. भाजपा के उपाध्यक्ष नंदन दास का कहना है कि अतुल राय तृणमूल कांग्रेस के किसी बड़े प्रलोभन का शिकार हुए हैं.