नयी दिल्ली : जैसे-जैसे डिजिटलीकरण का क्रम आगे बढ़ रह है, वैसे-वैसे तकनीक पर हमारी आपकी निर्भरता बढ़ती जा रही है. आज की तारीख में हम अपने दैनिक जीवन के कई कामों के लिए तकनीक पर ही निर्भर हैं. चाहें, हमें ट्रेन का टिकट लेना हो या बस की सीट बुक करानी हो, बैंक से किसी को भुगतान करना हो,नयीडिश बनानी हो या फिर इंश्योरेंस का भुगतान करना हो या बतौर लेखक-पत्रकार कोई आलेख तैयार करना हो या फिर एक नागरिक के रूप में कुछ सूचनाएं जुटानी हो. डिजटलीकरण के इस दौर में अब तो नये-नये टर्म भी आ गये हैं. जैसे ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस, जहां आपको इंटरनेट पर ही प्लान लेना होता है, भुगतान करना होताहै और उसके ऑनलाइन दस्तावेज होते हैं, जो परंपरागत इंश्योरेंस से एक तिहाई तक सस्से होते हैं. लेकिन, क्या आपको पता है कि तकनीक पर निर्भर रहने की आपकी आदत कई बार आपको गहरी परेशानी में डाल सकते हैं?
गुगल बाबा भी अपडेट नहीं
प्रगति मैदान से होकर नयी दिल्ली जाना वाला रास्ता पिछले तीन दिनोंसे बंद है. गूगल मैप के सहारे इस रास्ते पर जाने वाले लोग अभी भी फंस रहे है. प्रगति मैदान पर बंद पड़े रास्ते को कई राष्ट्रीय अखबार ने अपनी पहले पन्ने पर रखा. लेकिन इन तीन दिनों में गूगल ने इसे अपडेट नहीं किया. गूगल के अनुसार आज भी इस रास्ते पर कोई परेशानी नहीं है. टेक्नोलॉजी पर बढ़ती लोगों की निर्भरता एक विश्वास पर टिकी होती है और गूगल जैसी कंपनी जिसके मैप के सहारे मेट्रो सिटी या छोटे शहरों में लोग अपना रास्ता ढुढ़ते हैं यह एक चिंता का विषय बन सकती है. हर सकेंड नयी जानकारी अपडेट करने वाला गूगल पिछले तीन दिनों से एक रास्ते के बंद होने की सूचना अपडेट नहीं कर पाया इससे तो यही लगता है कि गूगल बाबा भी अपडेट नहीं हैं.
स्मार्ट फोन के जमाने में हमारे लिए धीरे-धीरे सारे मर्ज की दवा एक मुठ्ठी में आने वाला फोन होता जा रहा है. मशहूर उद्योगपति धीरुभाई अंबानी ने शायद भविष्य का सटिक आकलन करते हुए ही अपने फोन के लिए कर लो दुनिया मुठ्ठी में का स्लोगन दिया था. स्मार्टफोनमेंगुगलबाबा का एपडाउनलोड कर लोग हर चीज उसी परढूंढतेहैं. आज के बच्चे क्या किसी युवा से पूछिए कि अकबर के पिता क क्या नाम था, तो वह झट से गुगल में टाइप करेगा : अकबर,स फादर नेम और आपको बता देगा. अब याद रखने का झंझट क्या लेना. इसी तरह लोग यात्रा करने में भी गुगल मैप का सहारा लेते हैं. उसमें यह देखते हैं कि फलाने जगह जाने का रास्ता क्या है या फलाने व्यस्त मार्ग पर इस वक्त कितना ट्रैफिक है. लेकिन, यह आदत कई बार आपके लिए धोखा खाने का कारण भी बन सकती है.
( तस्वीर गूगलमैप स्नैपशॉट – प्रगति मैदान से होकर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने वालारास्ताबंद है जबकि गूगल इसे अभी भी खुला दिखा रहा है)
दिल्ली में रहने वाले सौरभ किशोर (बदला हुआ नाम)को होली को लेकर 22 मार्च को बिहार आने के लिए नयी दिल्ली स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी, लेकिन उनकी ट्रेन गूगल मैप पर निर्भरता के कारण छूट गयी और वे अपने मां-पिता के साथ होली मनाने से वंचित रह गये.
गाजियाबाद में रहने वाले सौरभ ने जब गुगल मैप पर देखा था, उन्होंने पाया कि वे पुराना किला, प्रगति मैदान वाले रास्ते से 50 मिनट में अपने गाड़ी से नयी दिल्ली स्टेशन पहुंच जायेंगे. उन्होंने इसी आधार पर घर से निकलने की तैयारी की, लेकिन जब वे घर से निकले तो उन्हें पुराना किला के पास जबरदस्त जाम का सामना करना पड़ा, जहां वे काफी देर तक फंसे रहे और उनकी गाड़ी छूट गयी. इसकी वजह क्या थी? इसकी वजह थी रिंग रोड को मथुरा रोड से जोड़ने वाली सड़क धंसने से बना 20 फट का गड्ढा. इस कारण होली के त्यौरहार से ठीक पहले 22 मार्च को पुलिस ने भैरों मार्ग पर ट्रैफिक बंद कर दिया. ट्रैफिक डायवर्ट होने से रिंग रोड, भैरों मार्ग, मथुरा रोड और विकास मार्ग पर जबरदस्त ट्रैफिक जाम लग गया, जिसमें लोगों को काफी परेशानी हुई, खासकर वैसे लोग जिन्हें डॉक्टर के पास इलाज कराने जाना था या फिर किसी अन्य बेहद जरूरी कार्य से या फिर ट्रेन पकड़ कहीं बाहर जाना था. लेकिन, गड्ढे के कारण हो रही परेशानी की जानकारी गुगल मैप पर उपलब्ध नहीं थी.
टेक्नोलॉजी पर निर्भरता की लत
लोग टेक्नोलॉजी पर निर्भरता के लती होते जा रहे हैं. दशक भरे पहले लोग कहते थे कि टीवी में व्यस्तता के कारण उन्हें अपनों के लिए समय नहीं है, अब यह बात स्मार्टफोन के लिए कही जाती है. आपका सामना कई बार ऐसे लोगों से पड़ा होगा, जो आपके घर पर आपसे मिलने आया हो, लेकिन वह लगातार अपने स्मार्टफोन पर व्यस्त हो, वाट्सएप पर मैसेज कर रहा हो या गेम खेल रहा हो या फिर इंटरनेट पर कोई जरूरी काम. अब तो लोग स्मार्टफोन पर चलते-फिरते यात्रा करते आॅफिस का काम निबटाते हैं. पिछले दिनों तो इस संवाददाता की भेंट एक पार्टी में एक ऐसी महिला व उनकी बेटी से हुई जो मोबाइल फोन व टैब पर सर्च कर खाना बनाती हैं. अब व्यंजन के परंपरागत तरीके या किताबें व महिला पत्रिकाएं पुराने दिनों की बातें हो चुकी हैं.
परेशानी से बचने एक सीमा रेखा अवश्य अपनाएं
यह जरूरी है कि बदलते दौर में तकनीक से आप न आंखें मूंद सकते हैं और न ही उसे ना कह सकते हैं. तो फिर रास्ता क्या है? रास्ता है, तकनीक व परंपरागत तरीके दोनों को समन्वय बनाते हुए जिंदगी जीना. आप अगर छोटे शहरों में रहते हों तो कई बार आंधी-तूफान के कारण बिजली जाने पर आपके बैंक में पैसे रहने पर भी एटीएम के काम नहीं करने के कारण आपके पास पैसे की दिक्कत हो जाती है. ऐसे में हर दूसरे-तीसरे दिन एटीएम की ओर रुख करने से ज्यादा जरूरी है कि आप 10-15 दिन के लिए तो नकदी रखें ही. आप सिर्फगूगलमैप के जरिये ही नहीं, बल्कि अपने हित-मित्र जो किसी कारणसेउधर से आ-जा चुके हों उनसे रास्ते के बारे में पूछें या किसी अन्य स्रोत से जानकारी जुटाएं. और हां, अपनी याददास्त को दुरुस्त रखने के लिए सर्च इंजन पर पूरी तरह निर्भर नहें बल्कि अधिक से अधिक पढ़ने-लिखने पर जरूर ध्यान दें व सूचनाओं को अपनी स्मृति में रखने के मानव स्वभाव की हजारों-लाखों साल पुरानी दुर्लभ पद्धति को न लुप्त होने दें.