कोलकाता : पश्चिम बंगाल, खास तौर पर कोलकाता में दीवार पर लिखे राजनीतिक नारे भी राजनीतिक विमर्श का एक अहम तरीका है. वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है, लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में भी दीवार पर नारे लिखने का चलन नहीं बदला है. अब भी उसमें ताजगी बनी हुई है. सभी दल आकर्षक नारे गढने और उन्हें और भी आकर्षक तरीके से दीवार पर उतारने की होड कर रहे हैं. तृणमूल नेता सुब्रत मुखर्जी मानते हैं कि आम जनता तक अपनी बातें पहुंचाने के मामले में दीवारों पर लिखे ये नारे अद्वितीय हैं. श्री मुखर्जी ने बताया : दीवारों पर लिखे नारे मतदाताओं के दिमाग पर बहुत जल्दी प्रभाव डालते हैं. बंगाल में प्रचार का यह एक बहुत पुराना तरीका है.
पश्चिम बंगाल में 1952 से ले कर अब तक चुनावों में व्यंग्यात्मक और कुछ विचारोत्तेजक नारों का इस्तेमाल किया जाता रहा है.माकपा के राज्य सचिव मंडली के सदस्य सुजन चक्रवर्ती ने बताया : सोशल मीडिया के युग में भी दीवारों पर लिखे नारे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह तत्काल प्रभाव छोडता है. चुनाव नजदीक आते जाने के साथ दीवारों पर लिखे इन नारों की जंग भी गहराती जा रही है. तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने स्टिंग के खिलाफ जवाबी नारा लिखा है- ‘‘एतो बंचना, एतो लांक्षना, एतो कुत्सा ढेयू… तोबु तृणमूल कांग्रेसेर एगिए चलो रुकते पारबेना केयू” (इतने फरेब, इतने आरोप, इतना मिथ्या प्रचार…फिर भी विजय पथ पर तृणमूल कांग्रेस की प्रगति थामी नहीं जा सकती) .
तृणमूल कार्यकर्ताओं ने दीवार लेखन की अपनी इस मुहिम में कांग्रेस और माकपा के बीच के चुनावी तालमेल को भी निशाना बनाया है. उनका एक नारा है- ‘‘जतोइ करो जोठ, पाबे ना एकटाओ वोट” (जो भी करोगे गंठजोड, मिलेगा नहीं एक भी वोट)
माकपा के राज्य सचिव सूर्य कांत मिश्रा ने पश्चिम बंगाल के शहरों, कस्बों और गांवों में जारी दीवार लेखन की इस जंग के बारे में कहा : आज आप इस नये वाल या दीवार (फेसबुक के पन्ने) पर चुनावी अभियान पाएंगे, लेकिन युगों पुराने ये तरीके अब भी आम अवाम तक पहुंचने के लिए बहुत लोकप्रिय हैं.