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न घर-न खाना, खिंच रही है डेला की जिंदगी

कर्रा : कर्रा ब्लॉक से महज 200 मीटर की दूरी पर फोरेस्ट ऑफिस के पीछे रहता है 72 वर्षीय डेला लोहरा. दाने-दाने को मोहताज है. न तो रहने को घर है न सोने को बिस्तर. जेठ की तपिश हो या आषाढ़ की बारिश. बस प्लास्टिक का तंबू ही सिर छुपाने का आसरा है. डेला लोहरा […]

कर्रा : कर्रा ब्लॉक से महज 200 मीटर की दूरी पर फोरेस्ट ऑफिस के पीछे रहता है 72 वर्षीय डेला लोहरा. दाने-दाने को मोहताज है. न तो रहने को घर है न सोने को बिस्तर. जेठ की तपिश हो या आषाढ़ की बारिश. बस प्लास्टिक का तंबू ही सिर छुपाने का आसरा है. डेला लोहरा ((पिता स्व बुधवा लोहरा) की सुधि लेनेवाला कोई नहीं है. वह बताता है कि बेटे-बेटियों से भरा-पूरा परिवार था. परंतु घर नहीं रहने व पेट पालने के लिए वे मजदूरी के खोज में अन्यत्र चले गये.
चलने-फिरने में लाचार डेला लोहरा कहता है कि उसे किसी योजना का लाभ नहीं मिलता. न तो वृद्धा पेंशन मिलता है न ही विकलांग पेंशन. राशन कार्ड नहीं बना है. इंदिरा आवास भी नहीं मिला. उसे कोई पूछता भी नहीं. राहगीर कुछ खाने को दे देते हैं. उसी से जिंदगी की गाड़ी चल रही है. मायूस डेला लोहरा कहता है कि उसे शीघ्र सहायता नहीं मिली, तो भूखे मरने के सिवा कोई चारा नहीं है.

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