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संस्कृ‍त बोलनेवाला छात्र बना आतंकी

आलमजेब अफरीदी का मोस्ट वांटेड आतंकी बनने का सफर वर्ष 2008 में अहमदाबाद और 2014 में बेंगलुरु सीरियल ब्लास्ट में शामिल रहा एक शख्स करीब आठ वर्षों तक अपनी पहचान छिपा कर देश के अलग-अलग हिस्सों में आजाद घूमता रहा़ इस दौरान उसने आजीविका चलाने के लिए हलवाई से लेकर एक्स-रे टेक्नीशियन और एसी मेकैनिक […]

आलमजेब अफरीदी का मोस्ट वांटेड आतंकी बनने का सफर
वर्ष 2008 में अहमदाबाद और 2014 में बेंगलुरु सीरियल ब्लास्ट में शामिल रहा एक शख्स करीब आठ वर्षों तक अपनी पहचान छिपा कर देश के अलग-अलग हिस्सों में आजाद घूमता रहा़ इस दौरान उसने आजीविका चलाने के लिए हलवाई से लेकर एक्स-रे टेक्नीशियन और एसी मेकैनिक तक का काम किया़ फिलहाल वह सलाखों के पीछे कैद है, जहां आतंक से उसके कनेक्शन के बारे में उससे पूछताछ जारी है़
पांच साल पहले दक्षिण बेंगलुरु थाने में आलमजेब अफरीदी जब पुलिस के पास अपने मालिक के खिलाफ मारपीट की शिकायत लेकर पहुंचा, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि यह वही शख्स है, जिसने 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद के हीरा मार्केट में आइइडी से लदी साइकिल खड़ी की थी. गौरतलब है कि उन धमाकों में कुल 56 लोग मारे गये थे. बहरहाल, आलमजेब को राहत पहुंचाते हुए पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था.
लेकिन एनआइए ने 2014 बेंगलुरु ब्लास्ट मामले में पिछले महीने जब अफरीदी को गिरफ्तार किया था, तब जाकर इस बात का खुलासा हुआ. अफरीदी से हुई पूछताछ में पता चला कि कैसे 2004 में स्कूल में अच्छी संस्कृत बोलनेवाले छात्र से वह एक खतरनाक आतंकी बन गया.
यही नहीं, दो आतंकी हमलों में आरोपी आलमजेब, 12 साल बाद अातंकी संगठन इसलामिक स्टेट (आइएस) के लिए भी काम करने लगा था़ उसने स्वीकार किया है कि वह एक आइएस हैंडलर के संपर्क में आया, जिसके कहने पर उसने बेंगलुरु में इस्राइली वीजा सेंटर में आगजनी की़ दो बम धमाकों में उसकी अहम भूमिका रही है, जिसके लिए वह सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर लंबे समय से था़
जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि अफरीदी अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के बाद साढ़े सात साल तक आजाद घूमता रहा.
इस दौरान वह उत्तर प्रदेश में मिट्टी ठेकेदार, महाराष्ट्र में सिक्योरिटी गार्ड, हरियाणा में हलवाई की दुकान पर, गुजरात में एक्स-रे टेक्नीशियन और बेंगलुरु में एसी मेकैनिक बन कर रहा. बेंगलुरु में उसके पास आधार कार्ड, एक जीवन बीमा पॉलिसी और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में अकाउंट भी था, जिसमें 70 हजार रुपये जमा थे. वहां उसके पास एक मोटरसाइकिल और स्मार्टफोन के साथ दोस्तों का एक बड़ा ग्रुप भी था, जिसमें से एक दोस्त की बहन से 2015 में उसने निकाह किया था. बेंगलुरु में वह मोहम्मद रफीक के नाम से एसी मैकेनिक के रूप में इतना मशहूर हो चुका था कि उसके मालिक ने वर्ष 2013 में उसका कारोबार खत्म करने के लिए 10 लोगों को उसके नाम की सुपारी दी थी़
सितंबर 1986 में अहमदाबाद के जुहापुरा में जन्मे इस शख्स ने अहमदाबाद के ही सनफ्लावर स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई की थी,जहां उसने संस्कृत, उर्दू और अरबी सीखी़
एक शख्स को चाकू मारने के आरोप में 1993 में उसके पिता को जेल हो गयी थी, फिर भी उसने पढ़ाई जारी रखी़ उसने एनआइए को दिये अपने बयान में बताया है कि गुजरात दंगों की वजह से उसकी जिंदगी बदल गयी़
अफरीदी ने जांचकर्ताओं को बताया, नरोदा पाटिया नरसंहार में मैंने परिवार के तीन लोगों को खो दिया़ मेरे ननिहाल का परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गया़ 2004 में अफरीदी 12वीं में फेल हो गया़ इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और जमात-ए-इसलामी में शामिल हो गया, जहां पर उसका झुकाव इसलािमक कट्टरपंथ की ओर बढ़ गया़ उसने वडोदरा के पास हलोल में आतंकी कैंप में भी हिस्सा लिया़
इस दौरान वह एक पीसीओ पर काम करता रहा़ उसके दोस्त कयामुद्दीन ने उसे साइकिलें खरीदने के लिए छह हजार रुपये दिये, जिससे उसने साइकिलों पर आइइडी लगायी और हीरा मार्केट में खड़ा कर दिया़ इसके तुरंत बाद वह फर्रूखाबाद भाग गया़ उसने सिमी से भी अपने रिश्ते तोड़ लिये़ जब उसका नाम मीडिया में आया तो उसके माता-पिता ने उसे सरेंडर करने को कहा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया़ इसके बाद वह देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग काम करता रहा़
आलमजेब ने जांचकर्ताओं को बताया कि उसने इंटरनेट पर कट्टरपंथी इसलामिक साहित्य पढ़े और तालिबान, अल कायदा और चेचेन्या आतंकियों के वीडियो देखे़ 2014 तक अफरीदी ने कट्टर इसलाम और इसलामिक स्टेट से संपर्क के लिए अलग-अलग नाम से करीब 40 फेसबुक और 24 जीमेल अकाउंट बना लिये थे.
साढ़े सात वर्षों तक सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंक कर देश के अलग-अलग हिस्सों में नाम बदल कर रहनेवाले अफरीदी के बारे में जांचकर्ताओं ने बताया कि अगर वह एक और वारदात को अंजाम नहीं देता तो शायद कभी पकड़ में ही नहीं आता़. (इनपुट: द इंडियन एक्सप्रेस)

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