उम्मीद है कि कांग्रेस यहां माकपा का समर्थन करेगी. एक जमाने में चोपड़ा कांग्रेस का गढ़ था. इस मुसलिम बहुल इलाके में समस्याओं की कोई कमी नहीं है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार विकास के नाम पर वोट पड़ता है या फिर सांप्रदायिक पहचान ही हावी रहती है. चोपड़ा इलाके में सबसे अधिक दुर्गति शिक्षा की है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि इलाके में पेयजल की भी काफी समस्या है. शत-प्रतिशत बिजली पहुंचाने का दावा करनेवाली तृणमूल सरकार के राज में यहां के कई गांवों में बिजली है ही नहीं. कई जगह पोल व तार पहुंच गया है, पर बिजली नहीं आती. सड़कें भी बदहाल हैं. यातायात के लिए अभी भी कच्ची सड़कों का इस्तेमाल किया जा रहा है. बारिश में कीचड़ और गर्मी में धूल से सड़कों पर चलना दुश्वार हो जाता है.तृणमूल की ओर से चुनाव की घोषणा होने के साथ ही उम्मीदवार घोषित किया जा चुका है. लेकिन इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गयी है. भाजपा की यहां कोई पूछ नहीं है. यहां कांग्रेस व माकपा में टक्कर होती रही है.
इस चुनाव में अब्दुल करीम चौधरी कांग्रेस से बागी होकर दूसरी जगह इस्लामपुर से निर्दलीय के रूप में चुनाव में उतरे एवं जीत हासिल की. मुहम्मद बच्चा मुंशी माकपा से लगातार दो बार बिधायक बने. 1987 के विधानसभा चुनाव में माकपा के मुहम्मदीन यहां से विजयी हुए और लगातार 2001 तक विधायक बने रहे. वर्ष 2011 में कांग्रेस के बागी नेता हमीदुल रहमान निर्दलीय विधायक बने. इसके बाद 2006 के विधानसभा चुनाव में माकपा के अनारूल हक विजयी हुए. लेकिन वर्ष 2011 के चुनाव में हमादुल रहमान ने फिर इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया. गौरतलब है कि कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव में उतरने के बाद भी रायगंज की कांग्रेस सांसद दीपा दास मुंशी ने हमीदुल रहमान के समर्थन में चुनाव प्रचार किया था. पिछले विधानसभा चुनाव में हमीदुल रहमान निर्दलीय निर्वाचित हुए थे, लेकिन बाद में वह तृणमूल में शामिल हो गये. उल्लेखनीय है कि राज्य के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुल 18 बागी नेता चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन जीत सिर्फ हमीदुल रहमान को ही मिली थी.