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साइकिल के पैसे से बच्चे खरीद रहे मोबाइल, चश्मा
रांची: सरकारी स्कूलों के अाठवीं कक्षा में पढ़ रहे विद्यार्थियों को सरकार साइकिल देती है. एससी, एसटी व अल्पसंख्यक बच्चों को कल्याण विभाग तथा जेनरल केटेगरी के बच्चों को मानव संसाधन विभाग की अोर से साइकिल मुहैया करायी जाती है. इधर, बच्चे साइकिल के लिए मिलने वाले पैसे से मोबाइल, जूते व चश्मे खरीद रहे […]
रांची: सरकारी स्कूलों के अाठवीं कक्षा में पढ़ रहे विद्यार्थियों को सरकार साइकिल देती है. एससी, एसटी व अल्पसंख्यक बच्चों को कल्याण विभाग तथा जेनरल केटेगरी के बच्चों को मानव संसाधन विभाग की अोर से साइकिल मुहैया करायी जाती है. इधर, बच्चे साइकिल के लिए मिलने वाले पैसे से मोबाइल, जूते व चश्मे खरीद रहे हैं. अनगड़ा प्रखंड के कुछ स्कूलों के सैंपल सर्वे से इसका खुलासा हुआ है.
राजकीय मध्य विद्यालय हेसल की अाठवीं कक्षा में पढ़ रहे 39 विद्यार्थियों की सूची विभागों को भेजी गयी थी, जिसमें से 28 बच्चों को ही साइकिल वितरण योजना के तहत तीन हजार रुपये मिले. उक्त 28 बच्चों में से सिर्फ तीन ने ही साइकिल खरीदी. शेष बच्चों खास कर लड़कों ने उक्त पैसे से मोबाइल व अन्य सामान खरीद लिये. प्राचार्य बैद्यनाथ महतो के कहने पर भी बच्चे साइकिल खरीद की रसीद तथा साइकिल के साथ अपनी फोटो स्कूल में जमा नहीं कर रहे हैं. उधर, राजकीयकृत मध्य विद्यालय, राजाडेरा में भी यही हुआ है. यहां 16 बच्चों के एकाउंट में साइकिल खरीदने के लिए तीन-तीन हजार रुपये जमा किये गये थे.
इनमें से मात्र पांच बच्चों ने ही साइकिल खरीदी है. एेसा स्कूल के प्राचार्य पंकज कुमार द्वारा पूरी सावधानी बरतने तथा जरूरी निर्देश देने के बावजूद हुआ है. प्राचार्य ने सभी बच्चों व उनके अभिभावकों से यह लिखित ले लिया था कि इस पैसे से साइकिल ही खरीदनी है. किसी अन्य चीज पर पैसे खर्च करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. पर बच्चे रसीद व साइकिल के साथ खुद की तसवीर स्कूल में जमा नहीं कर रहे. प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी (बीइइअो) अनगड़ा को भी मामले की जानकारी है. उन्होंने इस संबंध में 18 जनवरी को सभी मध्य विद्यालय के प्राचार्यों के नाम एक चिट्ठी निकाली थी, पर बच्चों के मामले में सब लाचार हैं.
ऐसा क्यों हो रहा
ऐसे मामले मध्य विद्यालयों में ज्यादा हैं, जहां बच्चे अाठवीं के बाद उच्च विद्यालय चले जाते हैं. गड़बड़ी का दूसरा कारण पैसे मिलने में विलंब होना है. लगभग सभी बच्चों को यह पैसे तब मिलता है, जब वे आठवीं की परीक्षा दे चुके होते हैं. अाठवीं पास कर चुके बच्चों को खोजना तथा उनसे रसीद व फोटो लेना संबंधित मध्य विद्यालय के प्राचार्य के लिए मुश्किल होता है. पैसा बच्चों के खाते में जमा होता है, जिसमें उनके साथ उसके पिता का नाम होता है. 10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे खुद भी पैसा निकाल सकते हैं, इसलिए ज्यादातर मामले में पैसों का दुरुपयोग हो रहा है.
सुधार संबंधी सुझाव
विभाग पहले खुद साइकिल खरीद कर बच्चों को उपलब्ध कराते थे. पर साइकिल खरीद में धांधली से संबंधित खबर आने के बाद अब राज्य सरकार डीबीटी स्कीम के तहत बच्चे के खाते में पैसे ट्रांसफर करती है. यह योजना प्रभावी हो, इसके लिए शिक्षक व ग्रामीणों ने कुछ सुझाव भी दिये हैं. अपने इलाके के सभी स्कूलों पर नजर रखनेवाले तथा हेसल ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष मुमताज अंसारी ने कहा कि पैसा बच्चे व उसके अभिभावक के ज्वाइंट एकाउंट में डाला जाये, जिसमें निकासी दोनों के हस्ताक्षर करने पर हो. एेसा करने से अभिभावकों को भी जिम्मेवार बनाया जा सकता है. दूसरा सुझाव यह था कि पैसे किसी बच्चे के आठवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही उपलब्ध कराये जाएं. इससे साइकिल खरीद की मॉनिटिरिंग संभव होगी.
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