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किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी कर सकती हैं कंसीव

डॉ मीना सामंत प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना कई रोगों के कारण कम उम्र में ही किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट कराने की नौबत आ जाती है. महिलाएं भी इससे अछूती नहीं है. ट्रांसप्लांट के बाद प्रेग्नेंसी में कई प्रकार की सावधानियां बरतनी पड़ती […]

डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली
हॉस्पिटल, पटना
कई रोगों के कारण कम उम्र में ही किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट कराने की नौबत आ जाती है. महिलाएं भी इससे अछूती नहीं है. ट्रांसप्लांट के बाद प्रेग्नेंसी में कई प्रकार की सावधानियां बरतनी पड़ती हैं.
किडनी ट्रांसप्लांट के कई कारण हो सकते हैं. ट्रांसप्लांट के बाद महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान कई परेशानियां हो सकती हैं, जैसे-गर्भपात, हाइ बीपी, पीआइएच, का वजन कम होना (एलबीडब्ल्यू). प्रेग्नेंसी में किडनी ग्राफ्ट का रिजेक्शन एक बहुत ही खतरनाक समस्या है.
अत: इन्हीं कारणों से ऐसी महिलाओं की डिलिवरी ऐसे अस्पताल में करानी चाहिए जहां स्त्री रोग विशेषज्ञ, नेफ्रोलॉजिस्ट, फिजिसियन, अच्छी लेबोरेटरी, आइसीयू आदि की सुविधा उपलब्ध हो. मरीज को नियमित डॉक्टर की देख-रेख में रहना पड़ता है. इस दौरान दवाइयों के प्रयोग में भी कई तरह की सावधानियां रखनी पड़ती हैं.अत: दवाएं डॉक्टर की सलाह से लें.
बच्चे में समस्याएं : बच्चे के जन्म के समय वजन कम हो सकता है. समय से पूर्व जन्म के कारण-बच्चे की मौत भी हो सकती है. साथ ही नजवान में संक्रमण भी हो सकता है. अगर प्रत्यारोपित किडनी ठीक प्रकार से कार्य कर रही है, तो ऐसी महिलाओं में सुरक्षित गर्भावस्था एवं स्वस्थ बच्चे को जन्म देने की संभावना एक सामान्य महिला जैसी ही होती है.
गर्भावस्था में देख-रेख
प्रेग्नेंसी में देख-रेख अच्छे और बड़े अस्पताल में होनी चाहिए. इससे िकसी भी प्रकार की समस्या से िनबटने के लिए वहां पर्याप्त व्यवस्था होती है. मां के हाइ बीपी का रिकार्ड रखना चाहिए क्योंकि हाइ बीपी मां एवं बच्चे के लिए हानिकारक होता है. इसके लिए ‘मिथाइल कोपा’ क्लोनिडिन एवं कैल्शियम चैनल ब्लॉकर का प्रयोग किया जाता है. डिलिवरी हमेशा नॉर्मल ही कराने की कोशिश रहती है, पर कभी-कभी जब मां या बच्चे की जान को खतरा होता है, तब सिजेरियन किया जाता है.
बरतें ये सावधानियां
– प्रत्यारोपण के दो वर्ष बाद गर्भ धारण करना चाहिए. गर्भ धारण करते वक्त महिला का सीरम क्रीयेटिनिन कम होनी चाहिए. पेशाब में प्रोटीन की मात्रा 24 घंटे में 500 ग्राम या उससे कम होनी चाहिए. महिला में किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होना चाहिए, अन्यथा यह बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.
– कुछ कारणों से गर्भावस्था में किडनी ठीक से कार्य नहीं कर पाती, जैसे-हाइ बीपी, ग्राफ्ट रिजेक्क्शन, डीहाइड्रेशन, संक्रमण, हानिकारक दवाएं आदि. स्टडी के अनुसार 14% मामलों में गर्भपात देखा गया है.
– दो वर्ष तक स्वस्थ्य रहना चाहिए. पिछले एक वर्ष में ‘ग्राफ्ट’ रिजेक्शन नहीं होना चाहिए.
– इनका प्रयोग गर्भावस्था में जारी रहता है. इनका कार्य मां के शरीर के इम्यून सिस्टम को सप्रेस करना है, जिससे शरीर, प्रत्यारोपित किडनी को रिजेक्ट नहीं करता है और किडनी अपना काम करता रहता है.

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