आर्थिक समृद्धि की राह पर महिला सशक्तीकरण
Advertisement
जज्बा . सुमित्रा व संगीता हर दिन लिख रहीं संघर्ष की गाथा
आर्थिक समृद्धि की राह पर महिला सशक्तीकरण यह लड़ाई,जो की अपने आप से मैंने लड़ी है. यह घुटन,यह यातना,केवल किताबों में पढ़ी है. यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते, इरादों में चढ़ी है. कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,अब तो पथ यही है. कवि दुश्यंत कुमार की ये पंक्तियां हर दिन संघर्ष की गाथा लिखती महिलाओं के […]
यह लड़ाई,जो की अपने आप से मैंने लड़ी है. यह घुटन,यह यातना,केवल किताबों में पढ़ी है. यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते, इरादों में चढ़ी है. कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,अब तो पथ यही है. कवि दुश्यंत कुमार की ये पंक्तियां हर दिन संघर्ष की गाथा लिखती महिलाओं के नाम है,जो अन्य महिलाओं के बीच उदाहरण हैं.महिलाओं के संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अर्थात् आधी आबादी के हक व संघर्ष के संकल्प का दिवस आठ मार्च के पूर्व प्रभात खबर अपने पड़ताल के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.
सीवान : शहर की शुक्ल टोली ब्रह्म स्थान निवासी सुदामा प्रसाद की बेटी सुमित्रा की दिनचर्या सूर्य उदय के साथ ही शुरू हो जाती है. अपने पांच भाई व पांच बहनों में एक सुमित्रा ने ऊंची तालीम तो नहीं हासिल की, लेकिन संघर्ष की राह ने उसे कुशल कारोबारी बना दिया. अपने बड़े भाई पप्पू के साथ शहर के डीएवी मोड़ पर अखबार बिक्री से लेकर स्टेशनरी व किताब की दुकान चलाने वाली सुमित्रा कहती है कि आर्थिक बदहाली के बीच हमने होश संभाला. गरीबी के दर्द को हमने बहुत ही करीब से महसूस किया है. गरीबी की मार सबसे अधिक परिवारों में महिलाओं को झेलनी पड़ती है.
महिला सशक्तीकरण की राह आर्थिक समृद्धि से ही तय की जा सकती है.अपने कारोबार में हमें कभी महिला होने का अफसोस नहीं रहा. पिछले पांच वर्ष में कारोबार बढ़ने से अब हम बूढ़ी मां सरस्वती देवी व पिता सुदामा प्रसाद से लेकर अपने भाई व बहनों की हर जरूरत पूरा करने में सक्षम हूं. हमें ऊंची तालीम नहीं हासिल करने का अफसोस है,पर अपने अधूरे सपने को छोटे भाई व बहनों में देखती हूं. उन्हें ऊंची शिक्षा दिलाना चाहती हूं. अपने दुकान से प्रत्येक माह 30 से 40 हजार रुपये मिल जाता है.अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हमारी अपील है कि हर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए पहल करनी चाहिए.
गम के बीच तय की अपनी राह : शहर के सिसवन ढाला के समीप इस्लामिया कॉलेज मोहल्ला की संगीता श्रीवास्तव के दर्द को सुन हर किसी की आंखें नम हो जायें. रजिस्ट्री कचहरी के कातिब नंद किशोर श्रीवास्तव ने हर बाप की तरह अपनी बेटी की डोली सजाने व उसके सुनहरे भविष्य का सपना देखा था.अपनी बेटी संगीता का एक दशक पूर्व धूमधाम से विवाह सदर प्रखंड के ओझा के बढ़या गांव में किया.लेकिन शादी के तीन वसंत गुजरे थे कि अचानक पति सुनील की बीमारी से मौत हो गयी.
उस दौरान संगीता को पांच माह का लड़का था.संगीता की जिंदगी में अचानक पहाड़ टूट पड़ा,पर उसने हार नहीं मानी. उसने अपनी जिंदगी के अधूरे दिन अपने बेटे की खुशियों में देखे. शादी के बाद छूट चुकी पढ़ाई को संगीता ने आगे बढ़ाया. अब वह शहर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में अध्यापन का कार्य करती है.बेटा अंकेश अब कक्षा सात में है.
संगीता का कहना है कि पति की मौत के बाद एक बार मुझे ऐसा लगा कि मेरी जिंदगी जीने का अब कोई मकसद नहीं रहा. लेकिन अंतरात्मा की आवाज से अचानक एक संकल्प ने हमें ताकत दी. विपरीत हालात में आगे बढ़ना ही जिंदगी का नाम है. मेरा सभी महिलाओं से कहना है कि वे आर्थिक रूप से समृद्ध बनें. यही महिला सशक्तीकरण का बेहतर रास्ता हो सकता है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement