नयी दिल्ली : रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज कहा कि सरकार ने एक खाते की प्रबंधन व्यवस्था में सुधार किया है जिसका उपयोग विदेशी सैन्य बिक्री मार्ग के तहत अमेरिका को रक्षा खरीद के भुगतान में किया जाता है. इस खाते की समीक्षा में यह पाया गया कि इसमें करीब 2.3 अरब डालर की जमा राशि पर कोई ब्याज नहीं आ रहा था. उसके बाद यह कदम उठाया गया.
रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिये रक्षा बजट पेंशन संबंधी आवंटन को छोड कर 2.59 लाख करोड रुपये है और यह मंत्रालय की जरुरत के हिसाब से है और पर्याप्त है.भारत और अमेरिका एफएमएस प्रक्रिया को दुरुस्त कर लिया है जहां बिल प्रत्येक तिमाही मामला-दर-मामला के बजाए विभिन्न मामलों के संदर्भ में पूरी राशि को एक साथ मिला कर एक कोष में ला दिये गये हैं.
रक्षा सूत्रों ने बताया कि कोष का गठन पिछले साल सितंबर में किया गया था. मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार जब भी किसी अनुबंध के लिए धन के भुगतान की जरुरत होती है, उसे उक्त कोष से निकाला जाता है. अमेरिकी सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद गठित इस कोष से वित्त वर्ष 2015-16 की पिछली दो तिमाहियों में कोई भी भुगतान नहीं किया गया. मंत्रालय ने कहा, ‘‘कोष में 2.3 अरब डालर जमा है.
ऐसे में उम्मीद है कि जबतक 2.3 अरब अमेरिकी डालर खत्म नहीं हो जाता और उसमें जब तक नयी राशि डालने की आवश्यकता नहीं पडती किसी भुगतान की जरुरत नहीं पडेगी. ” इसके फलस्वरुप अमेरिकी सरकार अनुबंधात्मक बाध्यताओं को पूरा करना जारी रखेगी, इस खाते को लेकर भारत सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पडेगा. बयान के अनुसार यह ईमानदार और समग्र वित्तीय प्रबंधन से संभव हुआ है.मंत्रालय ने कहा कि इससे दुर्लभ कोष के अन्य परियोजनाओं पर उपयोग तथा प्रतिकूल विनिमय दर के जोखिम से बचाव संभव हुआ है. इससे पहले, दिन में पर्रिकर ने इस रिपोर्ट को खारिज किया कि मंत्रालय 2015-16 के पूंजी बजट से 11,000 करोड रुपये के उपयोग में विफल रहा। उन्होंने कहा कि वास्तव में देश का धन बचाया गया है.
उन्होंने कहा कि हालांकि बजट में पूंजी अधिग्रहण 77,000 करोड रुपये था, वास्तविक खर्च करीब 66,000 करोड़ रुपये होगा. अगले वित्त वर्ष के लिये रक्षा बजट के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए पर्रिकर ने कहा, ‘‘हमने कुछ उपाय किये, जिससे 11,000 करोड रुपये बचत दिख रही है