केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि सरकारी विभागों में कदाचार और अनियमितताओं की शिकायत करनेवाले अधिकारियों को प्रताड़ित किया जा रहा है. आयोग ने भ्रष्टाचार को लेकर आगाह करनेवालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान की जरूरत को रेखांकित किया है.
मौजूदा प्रशासनिक ढांचे में खामियों को गंभीरता से लेते हुए प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और यूयू ललित की खंडपीठ ने व्हिसल-ब्लोअरों की सुरक्षा और गोपनीयता की बेहतरी के लिए सरकार से हलफनामा मांगा है.
इंजीनियर सत्येंद्र दूबे की हत्या के बाद 2004 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को इस संबंध में समुचित कदम उठाने का निर्देश दिया था. 2004 में केंद्र ने सतर्कता आयोग को शिकायतें लेने और कार्रवाई करने का अधिकार दिया था, किंतु सीमित संसाधनों और क्षमता के कारण आयोग सभी शिकायतों के समाधान में असमर्थ है.
इस बाबत व्हिसल-ब्लोअर सुरक्षा कानून, 2011 में प्रस्तावित संशोधन संसद में लंबित हैं, जिनके पारित हुए बगैर सतर्कता आयोग के लिए कोई भी कार्रवाई करना संभव नहीं है. भ्रष्टाचार के चलते सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाता है. पारदर्शिता के अभाव ने स्थिति को विकट बना दिया है. आये दिन ईमानदार अधिकारियों को स्थानांतरित कर दिया जाता है और उनकी पदोन्नति को बाधित किया जाता है. व्यापमं घोटाले में अनेक
व्हिसल-ब्लोअर मारे गये हैं या उन पर जानलेवा हमले हुए हैं. कई लोगों को प्रशासनिक तरीके से दंडित किया गया है. अदालतों में भय और प्रताड़ना के कारण गवाहों के मुकरने की घटनाएं आम हैं.
ऐसे में अगर आवाज उठानेवालों की सुरक्षा के पुख्ता कानूनी उपाय नहीं किये गये, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई असफल हो जायेगी, क्योंकि लोग इससे भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत करने से परहेज करने लगेंगे. उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय और केंद्रीय सतर्कता आयोग की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए सरकार लंबित विधेयक को तुरंत पारित करने की पहल करेगी तथा ईमानदार कर्मचारियों, गवाहों और शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठायेगी.