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संसद का बजट सत्र

मंगलवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के सुचारू संचालन के लिए सरकार और विपक्षी दलों की बैठकों का सिलसिला जारी है. ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि पठानकोट में सैन्य ठिकाने पर आतंकी हमला, हैदराबाद विश्विद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रकरण, हरियाणा में आरक्षण के लिए जाट समुदाय […]

मंगलवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के सुचारू संचालन के लिए सरकार और विपक्षी दलों की बैठकों का सिलसिला जारी है. ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि पठानकोट में सैन्य ठिकाने पर आतंकी हमला, हैदराबाद विश्विद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रकरण, हरियाणा में आरक्षण के लिए जाट समुदाय का हिंसक प्रदर्शन, दिल्ली में वकीलों के एक गुट द्वारा पत्रकारों पर हमला, अरुणाचल प्रदेश में सरकार-गठन आदि मुद्दों को लेकर दोनों सदनों में हंगामा हो सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 फरवरी को विपक्षी नेताओं से मिल चुके हैं. राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सरकार और विपक्ष के साथ 20 फरवरी को बैठक की थी. सोमवार को संसदीय कार्यमंत्री एम वैंकैया नायडू भी विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात करेंगे. इस सत्र में आम बजट के अलावा रेल बजट पर भी चर्चा होनी है. सत्र के प्रारंभ में राष्ट्रपति का अभिभाषण होगा, जिस पर दोनों सदनों में चर्चा होगी. देश की मौजूदा आर्थिक समीक्षा को भी प्रस्तुत किया जाना है.

मॉनसून और शीतकालीन सत्रों में सरकार और विपक्ष की तनातनी के कारण संसद का कीमती समय भी बरबाद हुआ था और कुछ जरूरी विधेयकों पर चर्चा भी बाधित हुई थी. उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे सबक लेते हुए दोनों पक्ष अड़ियल रवैये को किनारे रख कर अपने संसदीय दायित्व का निर्वाह करेंगे. वस्तु एवं सेवा कर, दिवालिया और रियल इस्टेट से संबंधित विधेयकों पर आम राय न बन सकने के कारण मार्च में समाप्त होनेवाले बजट-सत्र के पहले चरण में इन पर चर्चा नहीं की जायेगी.

सरकार ने किसी विधेयक पर चर्चा से पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के मामले में राज्य सभा में बहस कराने की विपक्ष की मांग भी मान ली है. इन पहलों से संकेत तो यही मिलता है कि सरकार और विपक्ष अपने रुख को नरम कर रहे हैं, पर राजनीतिक विमर्श में जो तेवर दिख रहे हैं, उनसे चिंता भी पैदा होती है कि सहमति कभी भी टूट सकती है.

लेकिन, सवाल यह भी है कि अगर देश की सर्वोच्च पंचायत में ही बहस और चर्चा नहीं होगी, निर्णय और संकल्प नहीं लिये जायेंगे, कानून और नियम नहीं बनाये जायेंगे, तो फिर यह सब क्रियाकलाप कहां संपन्न किये जायेंगे. इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बहसें चाहे जितनी तीखी हों, मतभेद चाहे जितने गहरे हों, संसद का कामकाज बाधित नहीं होना चाहिए़

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