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रोक लगते ही दलालों की मुट्ठी में कैद बालू

कालाबाजारी. 15 िदन में ही दोगुना हुए बालू के दाम अभी और दो महीने तक झेलना पड़ेगा बालू का संकट पटना : राज्य में बालू खनन पर रोक लगते ही दलालों की चांदी हो गयी है. 15 दिन पहले 2500 रुपये प्रति 100 फुट बिकने वाले बालू की कीमत 5000 रुपये हो गयी है. सबसे […]

कालाबाजारी. 15 िदन में ही दोगुना हुए बालू के दाम
अभी और दो महीने तक झेलना पड़ेगा बालू का संकट
पटना : राज्य में बालू खनन पर रोक लगते ही दलालों की चांदी हो गयी है. 15 दिन पहले 2500 रुपये प्रति 100 फुट बिकने वाले बालू की कीमत 5000 रुपये हो गयी है. सबसे बड़ी बात यह है कि कम-से-कम दो माह तक राहत मिलने की संभावना नहीं है.
कारण यह है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले के कारण पॉल्यूशन क्लीयरेंस के बिना राज्य में न तो बालू का उत्खनन होगा, न ही उसका उठाव. इससे राज्य में भवन, पुल-पुलिया व सड़क निर्माण के लिए कम-से-कम दो माह तक बालू का जबरदस्त टोटा झेलना होगा. साथ ही आम लोगों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट के फैसले ने सरकारी-गैर सरकारी-भवनों के निर्माण पर ग्रहण लगा दिया है. बिना पॉल्यूशन क्लीयरेंस के बालू उत्खनन और बिक्री पर रोक लगाने से एक सप्ताह में प्रति 100 फुट बालू के रेट में दोगुनी वृद्धि हुई है. दोगुनी कीमत देने के बाद भी खरीदने वालों को शुद्ध बालू नहीं मिल पा रहा है.
उन्हें सोन-गंडक के लाल बालू के बजाय मिलावटी लाल सफेद बालू मिल रहा है. कोर्ट के फैसले को देखते हुए खान एवं भूतत्व विभाग ने भी हाथ खड़े कर लिये हैं. सूत्रों ने कहा कि सरकार के पास फिलहाल कोई वैकल्पिक उपाय नहीं है. पर्यावरण क्लीयरेंस के बिना बालू खनन पर रोक लागू रहेगी.
खान एंव भूतत्व िवभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद ने बताया िक ‘बिना पर्यावरण क्लीयरेंस लिये बालू उत्खनन नहीं होगा. कोर्ट के आदेश का पालन तो हर हाल में संवेदकों को करना होगा. बालू खनन की बंदोबस्ती ले रखी कंपनियों ने पाॅल्यूशन क्लीयरेंस के लिए अप्लाई करना शुरू कर दिया है. उम्मीद है एक-दो माह में बालू खनन पर लगा विराम समाप्त हो जायेगा.’
केंद्र के समक्ष लंबित हैं बड़े मामले
पटना. जब तक बालू खनन करने वाली कंपनियां पर्यावरण क्लीयरेंस हासिल नहीं कर लेतीं तब तक खनन और ढुलाई पर लगी राेक नहीं हट सकती. क्लीयरेंस के लिए पचास हेक्टेयर से अधिक की रकबा वाली नदियों के मामले में केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के समक्ष अावेदन करना है. बालू खनन का ठेका हासिल करने वाले 10 से 11 बड़े ठेकेदारों ने महीनों पूर्व मंत्रालय के समक्ष आवेदन कर रखा है. लेकिन, अब तक उन्हें क्लीयरेंस नहीं मिल पाया है. पचास हेक्टेयर तक वाली नदियों से बालू खनन और ढुलाई की अनुमति राज्य सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग की एजेंसी एसइआइएए सिया को देना है. कुछ एजेंसी ने सिया के समक्ष भी आवेदन किया है.
किसानों की भी परेशानी बढ़ी
इधर, बालू उत्खनन और ढुलाई पर रोक लगने के कारण बिहार में बालू ढुलाई में लगे ट्रक और ट्रेलर ऑपरेटरों के समक्ष भी भुखमरी कि स्थिति बन गयी है. इसके अलावा किसानों को भी सिंचाई का गंभीर संकट झेलना पड़ रहा है. सोन और गंडक में बड़े पैमाने पर बालू उड़ाही होने के कारण दोनों नदियों के जल स्तर में तेजी से गिरावट आयी है. दोनों नदियों में बालू उड़ाही के ठेका लिये कंपनियों ने पोकलेन और जेसीसी मशीनों से बालू की उड़ाही करायी है. सबसे अधिक संकट बालू बंदोबस्ती लेने वाले ठेकेदारों को झेलनी पड़ रही है.
सुप्रीम कोर्ट में चिट्ठी बदल जायेगी पीआइएल में
पटना : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा बालू खनन पर रोक लगाने के बाद बिहार में बालू को लेकर हाहाकार मचा है. एक ओर जहां िबहार सरकार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है वहीं इसको लेकर सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर की चिट्ठी को सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका में बदल दिया है.
दफतुआर ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर को पत्र लिख कर बिहार के बालू संकट की ओर कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया था. दफतुआर ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर ने उनकी चिट्ठी को पीआइएल के तौर पर स्वीकार कर लिया है.
सुप्रीम कोर्ट के संबंधित विभाग से इस संबंध में उन्हें सूचित किया गया है कि आपके पत्र को जनहित याचिका में बदलने की प्रक्रिया आरंभ हो रही है. दफ्तुआर ने पत्र में लिखा है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले से आम लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. ट्रिब्यूनल ने बिहार में बालू खनन पर रोक लगा दी है. इससे सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में निर्माण कार्य बाधित हो गया है. आम आदमी जो बैंकों से ऋण लेकर अपना मकान बनवा रहा था, वह काम रुक गया है. इससे लोन की अवधि और ब्याज की रकम भी बढ़ जायेगी.

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