ब्राज़ील की 24 साल की अना कैरोलिना कैकरस का जन्म अविकसित मस्तिष्क (माइक्रोसेफली) के साथ हुआ था.
यह जन्म से होने वाली एक विकृति है जिसमें बच्चे छोटे आकार के सिर के साथ पैदा होते हैं और उनके दिमाग का विकास देर से हो सकता है.
हाल में अमरीकी और लातिन अमरीकी देशों में आए ज़ीका वायरस को इस बीमारी से जोड़ कर देखा गया है.
ज़ीका वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए ब्राज़ील में वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के दल ने गर्भपात से जुड़े क़ानून को बदलने के लिए याचिका डाली है.
अभी वहां लागू क़ानून के मुताबिक़ गर्भपात की इजाज़त सिर्फ बलात्कार, मां की ज़िंदगी खतरे में होने या बिना मस्तिष्क वाले भ्रूण (एनेनसेफली) की हालत में दी जाती है.
अना कैरोलिना कैकरस ब्राज़ील के दक्षिणी राज्य मैटो ग्रोसो के कैंपो ग्रांडे शहर में रहती हैं.
उन्होंने बीबीसी ब्राज़ील के फेसबुक पेज पर आकर कहा कि वे इस बीमारी के साथ अपने हर दिन के अनुभवों को बताना चाहती हैं.
उनका कहना है कि जब उन्होंने इस बीमारी की हालत में गर्भपात कराने की इजाज़त वाली याचिका के बारे में एक लेख पढ़ा, तब वो इसे लेकर भावुक हो गईं.
उनका कहना है, "मैंने काफ़ी अपमानित महसूस किया. मुझे लगा कि मेरे ऊपर हमला किया गया है."
यहां अना कैरोलिना कैकरस अपनी ज़िंदगी की दास्तां सुना रही हैंः
जिस दिन मैं पैदा हुई थी उस दिन डॉक्टर ने कहा था कि मेरे ज़िंदा रहने की कोई संभावना नहीं है. मैं माइक्रोसेफली से पीड़ित थी. मेरा सिर औसत से छोटा था. डॉक्टर ने कहा, "मैं चल नहीं पाउंगी, मैं बात नहीं कर पाउंगी, और समय गुज़रने के साथ मरने तक मैं एक निष्क्रिय अवस्था में पहुंच जाऊंगी."
लेकिन वो भी दूसरे लोगों की तरह ग़लत थे.
मेरे पिता का कहना है कि मैंने एक दिन चलना शुरू कर दिया. जब मैं एक साल की थी तो मेरी नज़र एक कुत्ते के बच्चे पर पड़ी और मैं उसके पीछे जाने के लिए उठ खड़ी हुई.
मैं बड़ी हुई और स्कूल जाना शुरू कर दिया. उसके बाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हुई. आज मैं एक पत्रकार हूं और अपना ब्लॉग लिखती हूं.
मैंने पत्रकारिता का चुनाव अपने जैसे उन लोगों की आवाज़ बनने के लिए किया है जिन्हें लगता है कि उनका प्रधिनिधित्व नहीं हो रहा है.
मैं माइक्रोसेफली की प्रवक्ता बनना चाहती हूं और अपने फाइनल कोर्स प्रोजेक्ट के रूप में अपनी ज़िंदगी और इस पीड़ा से गुजरने वाले पांच दूसरे लोगों पर किताब लिखना चाहती हूं. माइक्रोसेफली बीमारी नहीं है बल्कि यह एक सिंड्रोम है.
ब्राज़ील में माइक्रोसेफली के मामलों की बाढ़ आ गई है. ऐसे में, यह जानकारी काफी महत्वपूर्ण है. लोगों को अपने पूर्वाग्रह एक तरफ़, रखकर इस सिंड्रोम के बारे में जानने की ज़रूरत है.
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि माइक्रोसेफली के कारण ब्राज़ील की पूरी एक पीढ़ी इससे प्रभावित रहेगी.
इस बारे में अना कहती हैं कि अगर मुझे मंत्रालय से बात करने का मौक़ा मिलेगा तो मैं उनसे कहूंगी, "सर, जो बात नुकसान पहुंचाने वाली है, वो है आपका ये बयान."
वो बताती हैं कि आप माइक्रोसेफली की वजह से गंभीर समस्याओं से गुज़र भी सकते हैं और नहीं भी.
मैं मानती हूं कि जो लोग गर्भपात करवाते हैं वे अपने बच्चों को जीने और कामयाब होने का मौक़ा नहीं देते हैं. मैं ज़िंदा रही हूं और अपनी ज़िंदगी को काम, पढ़ाई, और आम चीजों को करते हुए जिया है जैसे माइक्रोसेफली से प्रभावित दूसरे कई लोग भी करते हैं.
मेरी मां ने गर्भपात नहीं करवाया था इसलिए मैं आज आपके बीच में हूं.
यह वाक़ई आसान नहीं है. मेरे और मेरे परिवार के लिए ज़िंदगी कठिन थी. मेरा परिवार धनी और संपन्न परिवार नहीं था. मेरे पिता एक लैब टेक्नीशियन है और जब मैंने जन्म लिया तब वे बेरोजगार थे.
मेरी मां एक सहायक नर्स थीं और एक अस्पताल में काम करती थीं. भला हो स्वास्थ्य बीमा का, जो हमारे पास था.
स्वास्थ्य बीमा के तहत कुछ चीजें तो आती थी लेकिन कुछ महंगे टेस्ट भी थे जो बीमा के अंदर नहीं आते थें.
मेरा पूरा परिवार हमारे साथ था इसलिए ये खर्च उनकी मदद से पूरा हो सका. मैं इलाज के दौरान कुल पांच ऑपरेशन से गुज़री हूं. पहला ऑपरेशन मेरे जन्म लेने के नौ दिन बाद हुआ था क्योंकि सही से सांस नहीं ले पा रही थी.
बचपन में मुझे मिर्गी भी थी. यह माइक्रोसेफली से पीड़ित लोगों में अक्सर होता है लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं थी. इसे नियंत्रित रखने के लिए दवा थी.
मैं 12 साल की उम्र तक दवा लेती रही और उसके बाद दोबारा मुझे दवा की जरूरत नहीं पड़ी. अब मैं वायलिन भी बजा लेती हूं.
इसलिए जब मैंने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में दायर होने वाली याचिका के बारे में पढ़ा तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आया.
इसके बाद मैंने शांति से पूरे लेख को पढ़ा. मैंने पाया कि यह याचिका सिर्फ गर्भपात को लेकर नहीं है. याचिका डालने वाले यह भी चाहते हैं कि सरकार मच्छर को ख़त्म करने, मांओं को बेहतर माहौल मुहैया कराने और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में व्यापक रणनीति अपनाए.
इस बात ने मुझे शांत किया. मेरा मानना है कि गर्भपात इस समस्या को ख़त्म करने के लिए एक कारगर क़दम नहीं है.
जब से हम पैदा होते हैं तब से काउंसलिंग, फिजियोथेरेपी और न्यूरोलॉजिकल उपचार सबसे अहम है.
मैं इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हूं कि जो मैंने झेला है उससे भी अधिक गंभीर परेशानियां किसी के साथ हो सकती हैं.
मुझे पता है कि हर माइक्रोसेफली से पीड़ित इंसान मेरी तरह ख़ुशकिस्मत नहीं होगा.
इसलिए मैं मांओं के लिए कहना चाहती हूं कि वे अपनी ओर से कोशिश करें और शांत बनी रहें. लोग निराश ना हों.
गर्भावस्था से जुड़ी सभी जांच देर से कराने के बजाए जल्दी करा लें और बच्चे के जन्म से पहले न्यूरो विशेषज्ञ की सलाह लें.
माइक्रोसेफली से पीड़ित बच्चों की मांओं से मिलें और जानकारी हासिल करें.
अगर इसके बावजूद कोई ऐसे माता-पिता है जो गर्भपात चाहते हैं तो मैं कुछ नहीं कह सकती. मैं सोचती हूं कि यह उनका फ़ैसला है.
लेकिन यह फ़ैसला पूरी जानकारी के साथ लेने की ज़रूरत हैं.
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