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मन की बात का सुना जाना
जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता में आते ही घोषणा की कि वे तकरीबन हर महीने रेडियो के माध्यम से जनता से सीधे रू-ब-रू होंगे, तो देश की जनता के लिए यह बड़ा सकारात्मक समाचार था़ आजादी के बाद पहली बार जनता के सीधे संपर्क में स्वयं प्रधानमंत्री थे़ शहर और दूर-दराज […]
जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता में आते ही घोषणा की कि वे तकरीबन हर महीने रेडियो के माध्यम से जनता से सीधे रू-ब-रू होंगे, तो देश की जनता के लिए यह बड़ा सकारात्मक समाचार था़ आजादी के बाद पहली बार जनता के सीधे संपर्क में स्वयं प्रधानमंत्री थे़
शहर और दूर-दराज के गांव के आम लोगों के साथ छात्र और बच्चों को भी सीधे प्रधानमंत्री के मन की भावनाओं को समझने और सुनने का अवसर प्राप्त हो रहा था़
लेकिन जल्द ही यह प्रक्रिया आलोचना का शिकार होने लगी कि मानसिकता सिर्फ कहने की ही नहीं होनी चाहिए, प्रधानमंत्री जी को जनता की समस्याओं को सुनना भी चाहिए और उसका समाधान भी देना चाहिए़ लेकिन श्री मोदी द्वारा लिये गये कुछ भावनात्मक फैसलों ने आलोचकों के मुंह बंद कर दिये़ गत वर्ष नवंबर महीने में जब दिल्ली की एक लड़की ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर अपने विवाह हेतु मदद की गुहार लगायी, तो प्रधानमंत्री जी ने तुरंत संज्ञान लेते हुए अपने जूनियर आॅफिसर को इसकी सत्यता का पता लगा कर मदद करने का निर्देश दिया़
एक और मामले में हृदय की बीमारी से पीड़ित आगरा की 12 वर्षीय तैयाबा ने पत्र लिख कर प्रधानमंत्री जी से अपने मन की बात का इजहार किया और इलाज हेतु अपने माता-पिता की वित्तीय असमर्थता से अवगत करवाया, तो प्रधानमंत्री जी ने तुरंत दिल्ली के अस्पताल में उसके मुफ्त इलाज की व्यवस्था कर उसकी जान बचायी़ समाज और देश के लिए ऐसे समाचार एक सुखद परिवर्तन का एहसास कराते हैं और कोई भी यकीन से कह सकता है कि प्रधानमंत्री जी सिर्फ मन की बात कह ही नहीं रहे हैं, आम लोगों की मन की बात सुन भी रहे हैं, जो आम जनता और देश के लिए एक शुभ संकेत है़
-अमित कुमार अम्बष्ट, कोलकाता
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