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सीरिया में 10 लाख से अधिक लोग फंसे हुए हैं

न्यूयॉर्क : युद्धग्रस्त सीरिया के प्रतिद्वन्द्वी सेनाओं से घिरे हुए इलाकों में दस लाख से भी अधिक लोगों के फंसे होने का एक रिपोर्ट में दावा किया गया है. इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए एक ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में घिरे […]

न्यूयॉर्क : युद्धग्रस्त सीरिया के प्रतिद्वन्द्वी सेनाओं से घिरे हुए इलाकों में दस लाख से भी अधिक लोगों के फंसे होने का एक रिपोर्ट में दावा किया गया है. इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए एक ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में घिरे हुए लोगों की संख्या इससे आधी बतायी गयी है. संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट पर कुछ सहायता समूहों ने इस संकट को कम आंकने का आरोप भी लगाया था. इन फंसे हुए लोगों की किस्मत का फैसला अब 25 फरवरी को होने वाली शांति वार्ता में होगा. पिछले सप्ताह जिनेवा में ऐसी वार्ता विफल हो गयी थी.

विपक्ष के वार्ताकारों ने वार्ता के सही मायनों में शुरू होने तक सीरियाई सरकार से नागरिकों की घेराबंदी नहीं करने का आग्रह किया है. नीदरलैंड स्थित सहायता समूह ‘पीएएक्स’ और वाशिंगटन स्थित सीरिया संस्थान द्वारा मंगलवार को यह रिपोर्ट जारी की गयी. सीज वॉच की यह नयी रिपोर्ट युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंसे हुए कमजोर बच्चों और वयस्कों की तस्वीरें ऑनलाइन जारी होने के एक माह बाद आई है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्वीरों के जारी होने के बाद काफी हाय तौबा मची थी और इन सीरियाई समुदायों की मदद के लिए कुछ सहायता काफिले भी रवाना किये गये. सीज वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक सीरीया में 46 घिरे हुए क्षेत्रों में लगभग 10.9 लाख लोग फंसे हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में केवल 18 घिरे हुए इलाकों का जिक्र है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक ये इलाके मुख्यत: सीरियाई सरकार की घेरा बंदी में हैं.

दीर अल जोर के पूर्वी शहर को इस्लामिक स्टेट समूह और सीरियाई सरकार दोनों ने घेर रखा है जिससे लगभग दो लाख लोग वहां फंसे हैं. इनमें कुछ समुदाय ऐसे भी हैं जो कई महीनों और सालों से फंसे हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने पिछले माह अपने अनुमान को लगभग 100,000 बढाते हुए कहा था कि लगभग 486,700 लोग इससे प्रभावित हैं. सीज रिपोर्ट के मुताबिक ‘कई इस बात से बेखबर हैं कि यह संकट कितना बढा है. वही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसके लिए कोई आवाज नहीं उठायी जा रही.’

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