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वन विकास निगम: पहली बोली में ही 51 करोड़ का राजस्व

रांची : वन विकास निगम को इस साल पहले टेंडर में ही 51 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व मिला है़ पहले टेंडर में करीब 70 फीसदी केंदू पत्ते की नीलामी हो गयी है. शेष 30 फीसदी पत्ते के लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू होनेवाली है. निगम ने पहली बार ई-टेंडर के माध्यम से केंदू पत्ते […]

रांची : वन विकास निगम को इस साल पहले टेंडर में ही 51 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व मिला है़ पहले टेंडर में करीब 70 फीसदी केंदू पत्ते की नीलामी हो गयी है. शेष 30 फीसदी पत्ते के लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू होनेवाली है. निगम ने पहली बार ई-टेंडर के माध्यम से केंदू पत्ते की नीलामी की. इससे निगम को काफी फायदा हुआ.
इसमें दूसरे राज्यों के विक्रेताओं ने हिस्सा लिया. पिछले 14 साल में निगम ने 231 करोड़ रुपये राजस्व के रूप में प्राप्त किये़ 2002-03 से निगम लाभ कमा रहा है. पूरे राज्य में लाभ कमानेवाला एक मात्र निगम यही है. हर साल केंदू पत्ते की नीलामी से वन विकास निगम को राजस्व प्राप्त होता है. राज्य में निगम के जिम्मे ही केंदू पत्ते की नीलामी और बिक्री का काम है. अब वन विभाग को अन सोल्ड (जो नहीं बिकेगा) केंदू पत्ते की नीलामी करने की जिम्मेदारी सौंपने का प्रस्ताव है. इसके लिए वन विभाग को सरकार के अनुदान भी मिलेगा. केंदू पत्ते के संग्रहण के काम में लगे मजदूरों के बीच भी अब तक करीब 400 करोड़ रुपये मजदूरी के रूप में बांटे गये हैं. जब अधिक मानक बोरे का संग्रहण होता है, तब अधिक मजदूरी के रूप में राशि बांटी जाती है. सबसे अधिक मजदूरी का वितरण 2012-13 में हुआ था. इस वर्ष निगम ने मजदूरी के रूप में करीब 54 करोड़ रुपये बांटे थे़.
समय पर नीलामी नहीं होने से मिलता है कम राजस्व : केंदू पत्ते की नीलामी समय से नहीं होने से कम राजस्व की प्राप्ति होती है. इस कारण सरकार को प्राप्त होने वाला राजस्व समय-समय पर घटता व बढ़ता रहा है. 2012-13 में समय पर केंदू पत्ते की नीलामी हो गयी थी़ उस वर्ष कुल 7.69 लाख मानक बोरा केंदू पत्ते का संग्रहण हुआ था. इससे पूर्व निगम को 41.24 करोड़ रुपये राजस्व के रूप में प्राप्त हुए थे. वहीं 2014-15 में समय पर नीलामी नहीं हो पाने के कारण मात्र 2.94 लाख मानक बोरा ही संग्रह हो पाया था. इससे निगम को मात्र 16.29 करोड़ रुपये की राजस्व मिले थे़.
केंदू पत्ते की नीलामी से वन विकास निगम को प्राप्त राजस्व
वर्ष राजस्व (लाख रुपये में)
2002-03 768
2003-04 648
2004-05 641
2005-06 561
2006-07 753
2007-08 1529
2008-09 1511
2009-10 1693
2010-11 2106
2011-12 2912
2012-13 4124
2013-14 2404
2014-15 1629
2015- 16 1912
इस बार पिछली बार की तुलना में बहुत अच्छी कीमत मिली है. ई-टेंडर के माध्यम से नीलामी हुई. इसका लाभ निगम को मिला. 70 फीसदी लॉट की नीलामी हो गयी है. शेष 30 फीसदी में और राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है.
लाल रत्नाकर सिंह
एमडी, वन विकास निगम

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