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और ले जाओ बुके, छंट गये न!

रामजी कपड़े के बड़े थोक व्यापारी हैं. अथाह धन-दौलत और साधनों के मालिक. भरा-पूरा संयुक्त परिवार. आये दिन किसी का जन्मदिन और कभी किसी का मुंडन या छठी होती ही रहती है. जबरदस्त जश्न. सौभाग्य से बंदे की झोपड़ी रामजी के महल के पड़ोस में है. लिहाजा आये दिन दावतें खाने को मिलती हैं. रामजी […]

रामजी कपड़े के बड़े थोक व्यापारी हैं. अथाह धन-दौलत और साधनों के मालिक. भरा-पूरा संयुक्त परिवार. आये दिन किसी का जन्मदिन और कभी किसी का मुंडन या छठी होती ही रहती है. जबरदस्त जश्न. सौभाग्य से बंदे की झोपड़ी रामजी के महल के पड़ोस में है. लिहाजा आये दिन दावतें खाने को मिलती हैं.

रामजी फूल-पत्ती के नये फैशन के बहुत विरुद्ध हैं. उनका बस चले तो फूल की दुकानें ही बंद करा दें. जन्मदिन हो या सगाई-शादी की दावत, कई लोग बुके लिये चले आ रहे हैं. वे भनभनाते हैं कि इनको सर पर मारूं क्या? नकद दिये होते तो कुछ काम भी आते. चार सौ रुपये प्रति प्लेट दस आदमी का पूरा परिवार हड़प गया. लेकिन रामजी भी कोई कम नहीं. अगली पार्टी में फूल वाले कई भरे-पूरे परिवार नहीं दिखे. सबको छांट दिया. मगर बंदे को गर्व है कि उसने कभी नकदी वारी, तो कभी रंग-बिरंगी चमकीली पन्नी में लिपटा बड़ा सा गिफ्ट.

उस दिन खास पार्टी थी. रामजी पिचहत्तर के हो गये. बंदा टूर कट-शार्ट कर ऐन मौके पर वापस पहुंचा. मार्किट की साप्ताहिक बंदी थी. सो फूलों का बढ़िया सा बुके लिया और चल पड़ा सपरिवार. रामजी ऊंचे मंच पर बादशाहों वाली शानदार कुर्सी पर विराजमान थे. बगल में बैठी पत्नी नकदी वाले लिफाफे एक बड़े बैग में भर रही थी. गुलदस्ते मंच के पीछे फेंके जा रहे थे. गुलदस्ते की जगह नकदी होती, तो कुछ और बात होती. लेकिन बंदे को यकीन था कि चचा को दो-चार दिन बाद बढ़िया गिफ्ट देकर मस्त कर देगा. लेकिन, दुर्भाग्यवश यह हो न सका. कभी यहां जाना पड़ा, तो कभी वहां.

रामजी परिवार से हरदम चिढ़ी रहनेवाली वीरांगना मेमसाब ने भी कह दिया – छोड़ो भी. बुढ़ऊ के पास बहुत कुछ है. तुम्हारे ढाई-तीन सौ रुपये के फोटोफ्रेम का क्या महत्व उनके लिए? फिर कौन याद रखता है कि फूल-पत्ती कौन लाया था और गोभी का फूल कौन? अभी न जाने कितने जन्मदिन और मुंडन होने हैं. यों भी लिफाफे का वजन देख कर रिटर्न गिफ्ट देते हैं. हमारा तो नंबर कभी आया नहीं और न आयेगा. तुम्हें तो वे प्रजा समझते हैं. कुर्सी यहां से वहां रखो.

बंदा मेमसाब के उवाच से सहमत नहीं है. रामजी बड़े आदमी हैं. उनके सानिध्य में रहना उपलब्धि है. पिचहत्तर पार के बावजूद हट्टे-कट्टे हैं, बिलकुल लाल-सुर्ख. उनका महल हमारा लैंडमार्क है. दुख-सुख में काम भी वही आयेंगे. कल जरूर जायेंगे उनको गिफ्ट देने.

उसी शाम बंदे को रामजी मिल गये पार्क में टहलते हुए. गुड न्यूज दी उन्होंने. पोते की शादी है. तिलक, शादी और रिसेप्शन तीनों में सपरिवार जरूर आना है. आज-कल में न्यौता पहुंच जायेगा. बंदे ने बड़ी शिद्दत से न्यौते का इंतजार किया. जरा सी आहट हुई नहीं कि फौरन उठ बैठा. आ गया, आ गया, न्यौते का कार्ड. लेकिन आहट कभी चूहे की निकली, तो कभी बिल्ली की. इधर तिलक भी हो गया, शादी और रिसेप्शन भी निपट गया. लेकिन न्यौता नहीं आया. बंदे की मेमसाब कतई नाराज न होती, अगर पड़ोस वाले छिद्दू बाबू विद फैमिली तीनों फंक्शन में निमंत्रित न होते. उसकी वाणी में तंज है- और ले जाओ फूलों का बुके. छंट गये न!

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

chhabravirvinod@gmail.com

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