कुछ ऐसी समस्याएं होती है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को सकती हैं. डिप्रेशन और स्ट्रेस भी ऐसी ही समस्या है. बड़ों के लिए इन्हें झेलना आसान हो सकता है लेकिन बच्चों को यदि ये समस्याएं हो जाएं तो बड़ी ही समझदारी की जरुरत होती है.
हालाकि हम सभी जानते हैं कि बाज़ार में मिलने वाली डिप्रेशन की दवाओं का व्यक्ति के शरीर पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है. यही नहीं, इसका दिमाग पर भी नेगेटिव असर देखने को मिलता है. ऐसे में अगर आपका बच्चा डिप्रेशन जैसी समस्या से पीड़ित है, तो आप डिप्रेशन की दवाओं से अपने बच्चे को दूर रखें. क्यों? आइये आपको बताते हैं…
हालिया हुए एक शोध के अनुसार, इस तरह की दवाएं बच्चों और किशोरों को अक्रामक और तेज़ गुस्सेल बना सकती हैं. यहां तक कि उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति भी पनप सकती है.
डेनमार्क के शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी देते हुए बताया कि अवसादरोधी या एंटी-डिप्रेशन दवाओं से बच्चों और किशोरों में आक्रामकता और आत्महत्या की प्रवृत्ति का खतरा दोगना हो जाता है.
जबकि उन्हें अवसादरोधी दवाओं का आक्रामकता और अवसाद में कोई सीधा संबंध नहीं मिला है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए शोध टीम ने 18,526 मरीजों की जांच की. जांच के दौरान उन्हें अवसादरोधी दवाएं दी गई थीं.
शोध बताता है कि बच्चों, किशोरों और नवयुवकों को कम से कम अवसादरोधी दवाएं देनी चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें गंभीर हानि पहुंच सकती है. इसलिए अवसाद का इलाज दवाओं के जरिए करने की बजाय वैकल्पिक इलाज जैसे व्यायाम और साइकोथेरेपी के जरिए किया जाना चाहिए. ताकि डिप्रेशन से तो छुटकारा मिलेगा, साथ ही व्यायाम आदि से बॉडी भी फिट हो जाती है.
यह शोध बीएमजे जर्नल में प्रकाशित किया गया है.