कराची : पाकिस्तान के सिंध प्रांत मेंअल्पसंख्यक हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण का मुद्दा अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. सिंध एसेंबली में जबरन धर्म परिवर्तन से जूझते हिंदुओं के लिए नये कानून के प्रस्ताव से वहां की राजनीतिगरमा गयी है और इसकेखिलाफ एक गुट लामबंद हो रहा है, जो इस कानून को काला कानून बता रहे हैं.बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सिंधएसेंबली में एक प्रस्ताव रखा गयाहै, जिसमें कहा गया है किनाबालिग अल्पसंख्यक लड़कियों का जबरन धर्मांतरण स्वीकार्य नहीं होगा और इसके इसके लिए दोषी को पांच साल की सजाहोगी. इस मामले में लड़की को 24 घंटे के अंदर अदालत में पेश करना होगा और 90 दिन में सुनवाई पूरी करनी होगी.
एक मोटे अनुमान के अनुसार, 18 करोड़की आबादी वाले पाकिस्तान में 80 लाख हिंदू हैं, जिसमें ज्यादातर सिंध प्रांत में रहते हैं.नाबालिग हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण औरफिर उनकाविवाह कराया जाना हमेशा से वहां एक अहम मुद्दा रहा है. कई मामलों में ऐसे कृत्य करने का आरोप वहां के राजनेताओं से जुड़े लोगों पर लगे हैं. पाकिस्तानी मानवाधिकार संगठन व अल्पसंख्यक संस्था इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. इसी के मद्देनजर वहां कानून का नया मसौदातैयार किया गया है.
2012 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भी सिंध सरकार को इस संबंध मेंनिर्देश दिये थे कि वह प्रांत के अल्पसंख्यक समुदाय को लोगों का जबरन धर्मांतरणरोकने के लिए कानून का मसौदा तैयार करे, ताकि संविधान में संशोधन किया जा सके. कराची में आयोजित एक बैठक के दौरान ही जरदारी ने तब यह निर्देश सिंध के मुख्यमंत्री को दिया था.
जबरन धर्मपरिवर्तन, अपहरण और वसूली के कारण हिंदू समुदाय के लोगों में बड़ी संख्या में पलायन की खबरें आने के बाद जरदारी ने तबएक केंद्रीय मंत्री के नेतृत्व में तीन सांसदों की एक समिति भी बनायी थी, जिसे यहजिम्मेवारी दी गयी थी किवहसिंध में हिंदू समुदाय के लोगों से भेंट कर उनकी परेशानी जाने. दरअसल, जरदारी ने यह सक्रियता तब उन खबरों के मीडिया में आने के बाद बाद दिखायी थी, जिसमें कहा गया था कि पाक के हिंदू समुदायके लोगभारत पलायन कर रहेहैं.