हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या पर राजनीति तो खूब हो रही है लेकिन रोहित की मानसिक स्थिति इस स्तर तक कैसे पहुंच गयी कि उसने आत्महत्या का फैसला ले लिया. रोहित के अंतिम खत से पहले भी उसने एक खत वीसी को लिखा था. उसमें उसकी मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक वैज्ञानिक की तरह सोच रखने वाला इंसान आत्महत्या के ख्याल को दबा नहीं पाया. आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला.
केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र संगठनों ने अफजल गुरू की फांसी समेत कुछ मुद्दों का विरोध किया था. इसमें अंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन समेत कुछ अन्य छात्र संगठन भी शामिल थे. इस प्रदर्शन से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद नाराज था और इसके अध्यक्ष सुशील कुमार के साथ इन छात्रों की धक्का मुक्की हो गयी.
इस धक्का मुक्की के बाद केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने वाइस चांसलर को चिट्ठी लिखी. साथ ही उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईऱानी को भी पूरे मामले से अवगत कराया. विश्वविद्यालय प्रशासन पर पूरी घटना पर कार्रवाई करते हुए रोहित समेत पांच छात्रों को हॉस्टल से सस्पेंड कर दिया गया. साथ ही उनकी फ़ेलोशिप भी रोक दी गई. पांचो छात्र विरोध स्वरूप हॉस्टेल के बाहर टेंट पर रहने लगे और विरोध करते रहे. उनसे हॉस्टल में भीड़ भाड़ वाली जगह पर जाने से भी रोक दी गयी. उन्हें 21 दिसंबर को हॉस्टल से बाहर निकाला गया. साथ ही मेस और दूसरी सुविधाओं से वंचित कर दिया गया था. इस घटना के बाद से रोहित बेहद उदास रहने लगा था.
अपने निलंबन को लेकर पांचो छात्रों ने भूख हड़ताल भी शुरू की लेकिन विश्विद्यालय ने उनकी नहीं. सुनी तीन दिनों के भूख हड़ताल के बाद रोहित वेमुला ने अपने छात्र संगठन के झंडे की मदद से ही आत्महत्या कर ली. इस पूरे मामले के दौरान उसने वीसी को भी एक पत्र लिखा उसमें उसने साफ लिखा, ‘कृपया दाखिले के समय सभी दलित छात्रों को 10 मिलीग्राम सोडियम एजाइड दे दीजिए. जब वे खुद को अंबेडकर की तरह महसूस करें, तो उन्हें इसके उपयोग की विधि बता दी जाए.
अपने सहयोगी, ग्रेट चीफ वार्डन से सभी दलित छात्रों के कमरों में एक अच्छी रस्सी भिजवा दें. ‘रोहित ने रूखे अंदाज में कहा है कि वह और उसके जैसे लोग दलित स्वाभिमान आंदोलन के सदस्य हैं और उनसे आसानी से छुटकारा नहीं मिलने वाला. इसलिए मैं अपने जैसे छात्रों के लिए इच्छामृत्यु की सुविधा उपलब्ध कराने का आग्रह कर रहा हूं. उसकी इस चिट्टी को भी अगर विश्विद्यालय प्रशासन गंभीरता से लेता तो रोहित की जान बच सकती थी. यूनिवर्सिटी ने रोहित समेत सभी को प्राथमिक जांच में निर्दोष करार दिया था, लेकिन बाद में यूनिवर्सिटी ने अपना फैसला पलट लिया था.