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पानी संताल का, सिंचाई बंगाल की
देवघर : संतालपरगना के किसान आज भी बारिश के आसरे खेती करते हैं. सिंचाई के अभाव में इस इलाके के किसान मुश्किल से एक ही फसल उगा पाते हैं. हजारों तालाब, कुएं, चेकडैम फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं और किसानों के खेत प्यासे हैं. हालांकि नयी सरकार का संकल्प है कि नये बजट में […]
देवघर : संतालपरगना के किसान आज भी बारिश के आसरे खेती करते हैं. सिंचाई के अभाव में इस इलाके के किसान मुश्किल से एक ही फसल उगा पाते हैं. हजारों तालाब, कुएं, चेकडैम फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं और किसानों के खेत प्यासे हैं. हालांकि नयी सरकार का संकल्प है कि नये बजट में किसानों और कृषि को प्राथमिकता दी जायेगी. इस कारण किसान आशान्वित हैं.
संतालपरगना में जितनी सिंचाई परियोजनाएं स्वीकृत हैं, उन्हें पूर्ण करवाने की दिशा में सरकार और प्रशासन ठोस पहल करे तो आने वाले समय में संताल के किसानों के खेत प्यासे नहीं रहेंगे. यहां के किसानों के खेत भी लहलहायेंगे.
तोरई जलाशय योजना, पाकुड़ : 1991 की योजना पर लगा है ग्रहण : यह योजना पाकुड़ जिलांतर्गत लिट्टीपाड़ा प्रखंड के निकटवर्ती गांव विशाली में तोरई नदी पर 647.70 मी लंबा एवं 24.40 मी ऊंचा मिट्टी बांध निर्माण का प्रस्ताव है. इस योजना के बायीं एवं दायीं और मुख्य नहरों की कुल लंबाई 83.00 किमी तथा वितरण प्रणाली की लंबाई 35.00 किमी है. इस योजना से पाकुड़, हिरणपुर, लिट्टीपाड़ा तथा अमरापाड़ा प्रखंड के 7200 हे क्षेत्र में खरीफ एवं 800 हे क्षेत्र में रब्बी सिंचाई उपलब्ध होगी. विस्थापितों की पुनर्वास की समस्या के कारण डैम निर्माण के कार्य में वांछित प्रगति नहीं हो सकी.
डैम संताल में, पानी जाता है बंगाल
यह विडंबना ही है कि संतालपरगना में अजय बराज योजना, मसानजोर डैम सहित कई ऐसे छोटे-बड़े डैम हैं. लेकिन इस डैम से संतालपरगना के खेतों को पानी नहीं मिलता है. इस डैम के पानी से बंगाल के खेत लहलहाते हैं. क्योंकि डैम तो बना है लेकिन कनाल बनाकर संताल के खेतों तक यह पानी ले जाने की व्यवस्था नहीं है.
वर्षों से पेंडिंग हैं बड़ी सिंचाई परियोजनाएं
35 सालों में नहीं पूरी नहीं हुई पुनासी जलाशय योजना : पुनासी जलाशय योजना का काम 35 साल बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं हो सका है. 1979 से शुरू होने वाली इस परियोजना में अब तक 121 करोड़ खर्च हो चुका है. जब काम शुरू हुआ था तब इसकी प्राक्कलित राशि मात्र 26 करोड़ रुपये थी. योजना की वर्तमान स्थिति यह है कि अब प्राक्कलित राशि 900 करोड़ रुपये हो गयी है. मुख्यत: यहां स्पील-वे का काम बाधित है. फॉरेस्ट लीयरेंस नहीं होने के कारण स्पील-वे का काम पूरा नहीं हो पा रहा है. काम तो चल रहा है लेकिन यहां के विस्थापितों का पुनर्वास अबतक नहीं हो पाया है.
क्या होगा फायदा
इस महत्वाकांक्षी योजना से 15384 हेक्टेयर भूमि में खरीफ व 8907 हेक्टेयर में रबी फसल की सिंचाई होगी.
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