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नहीं बढ़ रही ठंड, ग्लोबल वार्मिंग की है चेतावनी

मौसम वैज्ञानिक ने कहा, वृक्षों की कमी व बढ़ते प्रदूषण का है असर वूलेन बाजार पर भी पड़ रहा है प्रतिकूल असर सहरसा मुख्यालय : साल में तीन-तीन महीनों के चार मौसम होने की बात तो जैसे समाप्त ही हो गयी. अब शेष सभी मौसम के हिस्से से समय काट कर गरमी ने अपना दायरा […]

मौसम वैज्ञानिक ने कहा, वृक्षों की कमी व बढ़ते प्रदूषण का है असर

वूलेन बाजार पर भी पड़ रहा है प्रतिकूल असर
सहरसा मुख्यालय : साल में तीन-तीन महीनों के चार मौसम होने की बात तो जैसे समाप्त ही हो गयी. अब शेष सभी मौसम के हिस्से से समय काट कर गरमी ने अपना दायरा बढ़ा लिया है. दिसंबर महीने में तीन दिनों की शीतलहरी के बाद गयी ठंड अभी तक वापस नहीं आयी. तीन-चार दिनों के बाद कुहासे का कोहराम भी अब तक नहीं दिखा.
ओस की बूंदों का भी अधिक देर तक प्रभाव नहीं दिखता है. चौक -चौराहे पर सुबह-शाम जलने वाले अलाव की लौ भी नहीं दिख रही है. लोगों में सिकुड़न-ठिठुरन भी नदारद है. कंबल वितरण का कार्यक्रम भी नहीं के बराबर चल रहा है. यह आम इनसानों के साथ गरीब व लाचार लोगों के लिए राहत भरी बात जरूर हो सकती है. लेकिन पर्यावरण के लिए यह काफी घातक संदेश है.
ग्लोबल वार्मिंग की है चेतावनी: समय के अनुसार ठंड का न पड़ना ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी है. मौसम में यह परिवर्तन व जाड़े की ऋतु की यह बेरूखी बताती है कि इस साल एक बार फिर भीषण गरमी पड़ने वाली है. धरती का जलस्तर और नीचे जाने वाला है. वातावरण में धूल व जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है. गंभीर बीमारियों के प्रसार का खतरा बढ़ता जा रहा है.
मौसम वैज्ञानिक एसएस दूबे बताते हैं कि प्रकृति ने जाड़ा, वसंत, गरमी व बरसातके महीनों के लिए तीन-तीन महीनों का समय निर्धारित किया था. लेकिन लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण इनसानों ने प्रकृति से खूब छेड़छाड़ किया है. लिहाजा मौसम भी लगातार बेरूख होता जा रहा है. अभी दिसंबर और जनवरी के महीने में शीतलहर का प्रकोप होना चाहिए था.
लेकिन धूप में भी सामान्य गरमी मिल रही है और महज एक स्वेटर से काम चल जा रहा है. असंतुलित हो चुके पर्यावरण को संतुलित करने के लिए पौधरोपण व प्रदूषण रोकने के उपायों पर जोर देना ही होगा.

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