II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : वज़ीर
निर्माता : विधु विनोद चोपड़ा और रिलायंस एंटरटेनमेंट
निर्देशक : बिजॉय नाम्बियार
कलाकार : अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर, अदिति राव हैदरी, नील नितिन मुकेश, मानव कौल और अन्य
रेटिंग : तीन
‘दिलवाले’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ के तीन हफ्ते बाद बॉक्स ऑफिस पर अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की फिल्म ‘वज़ीर’ ने दस्तक दी है. शतरंज के खेल को फ़िल्म की कहानी में बुना गया है. किस तरह से प्यादा एक एक घर चल दूसरी तरफ पहुचकर वज़ीर बन जाता है और हाथी अपने सामने वाले सैनिक के मर जाने से पागल होकर बादशाह को भी तख़्त से उठाकर फेंक देता है.शतरंज के इन किरदारों और चालों को बहुत खूबी के साथ इंसानी फितरत के साथ जोड़ा गया है.
फ़िल्म एटीएस ऑफिसर दानिश अली (फरहान अख्तर)की कहानी है. उसकी एक हैप्पी फॅमिली है लेकिन एक हादसा उससे उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी छिन लेता है इसी बीच दानिश की मुलाकात ओंकार नाथ धर(अमिताभ बच्चन)से होती है. दोनों का दर्द एक ही है. दानिश ओंकार की मदद करता है. उसके बदले को अपना बदला मानकर. क्या है वह बदला,किस तरह से दानिश उस बदले से जुड़ता है. शतरंज के खेल का वज़ीर, अहम् मोहरा बनकर यहाँ कहानी की नयी दिशा को तय करता है.
कौन है वज़ीर, क्यों वह दानिश के साथ खेल खेल रहा है. फ़िल्म में कहानी को थ्रिलर अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है. फ़िल्म का पहला भाग बहुत प्रॉमिसिंग है दूसरे भाग में कहानी कमज़ोर हो जाती है और पहले से पता क्लाइमेक्स पर कहानी खत्म हो जाती है. फ़िल्म के कुछ सीन्स अन रियल से भी लगते हैं लेकिन फिर भी अभिजात जोशी और विधु विनोद चोपड़ा की तारीफ करनी होगी जो उन्होंने शतरंज के खेल के बैकड्रॉप बनाकर यह कहानी लिखी है. फ़िल्म 103 मिनट की है. फ़िल्म का कम लंबाई फ़िल्म को ज़रूर प्रभावी बना जाती है.
अभिनय की बात करें तो अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर से जिस तरह अपने लुक, लहजे और बॉडी लैंग्वेज सभी को बहुत ही खूबसूरती से आत्मसात किया है. वह काबिलेतारीफ है. अपने किरदार की बेबसी हो या उससे जुड़ा गुस्सा वह उन्होंने अपने आँखों से बहुत ही प्रभावी तरीके से परिभाषित किया है. फरहान अख्तर भी अपने किरदार में पूरी तरह से रच बस गए हैं. फ़िल्म में इनदोनों का अभिनय फ़िल्म की यूएसपी है. मानव कौल ने भी इनदोनो का बखूबी साथ दिया है. अदिति के लिए करने को कुछ ख़ास नहीं था.
फ़िल्म के शुरुआती 15 मिनट तक उनकी मुस्कान नज़र आ रही है तो बाकी की फ़िल्म में वह उदास चेहरा बनाए हैं. नील नितिन मुकेश पूरी फ़िल्म में सिर्फ एक बार ही नज़र आए हैं. फ़िल्म के सवांद ख़ास हैं. उनको भी शतरंज के खेल को ध्यान में रखकर लिखा गया है. फ़िल्म का संगीत का कहानी के साथ तालमेल अच्छा बन पड़ा कुलमिलाकर वज़ीर कुछ खामियों के बावजूद एक एंगेजिंग फ़िल्म है. शतरंज के खेल पर आधारित इसका प्रस्तुतिकरण इसे खास बना देता है.