श्रीनगर : एक गूढ वकील से लेकर देश के अब तक के एकमात्र मुस्लिम गृहमंत्री बनने तक का सफर तय करने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक मंझे हुए राजनीतिक खिलाडी की तरह राष्ट्रीय राजनीति और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपने लिए एक अलग मुकाम बनाया. लगभग छह दशक तक के अपने राजनीतिक करियर में सईद ताकतवर अब्दुल्ला परिवार के खिलाफ प्रतिद्वंदी शक्ति का केंद्र बनकर उभरे. राजनीति के खेल में हमेशा अपने पत्ते छिपाकर रखने वाले सईद अपने राजनीतिक एजेंडे के अनुरुप चलने के लिए विरोधाभासी विचारधाराओं वाले दलों के साथ भी दोस्ती में गुरेज नहीं करते थे.
सईद के राजनीतिक सफर में दो सबसे अहम पडाव वर्ष 1989 और वर्ष 2015 में आए. वर्ष 1989 में वह स्वतंत्र भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने और बीते साल वह दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. आगामी 12 जनवरी को 80 साल के हो जाने वाले सईद ने इस बार जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभालने के लिए उस भाजपा के साथ गठबंधन किया, जिसके लिए इस मुस्लिम बहुल राज्य में सत्ता में आने का यह पहला मौका था.
सईद ने गृहमंत्री के रुप में पदभार उस समय संभाला था, जब उनके इस गृहराज्य में आतंकवाद ने अपने घिनौना रुप दिखाना शुरु किया था. गृहमंत्रालय में उनके इस कार्यकाल को जेकेएलएफ द्वारा उनकी तीसरी बेटी रुबइया के अपहरण किए जाने के साथ जोडकर याद किया जाता है. आतंकियों ने रुबइया की रिहाई के बदले में अपने पांच साथियों को छोडने की मांग की थी और अपनी मांग पूरी होने पर ही रुबइया को छोडा था. सईद के प्रतिद्वंद्वियों के अनुसार, इस अपहरण और फिर आतंकियों की रिहाई ने पहली बार भारत को एक ‘‘कमजोर देश’ के रुप में पेश किया.
2015 में दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले सईद की पार्टी पीडीपी ने इन विधानसभा चुनावों में अच्छी-खासी सीटें जीती थीं. यहां भाजपा लहर का असर पीडीपी ने ही कम किया था लेकिन वह सरकार बनाने में असमर्थ थे क्योंकि उनके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें मौजूद नहीं थी. इस वजह से उन्हें राज्य में सरकार गठन के लिए उन्हें वैचारिक रूप से विपरीत भाजपा के साथ गठबंधन करना पड़ा.