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नववर्ष से आस, कोसी में उद्योग का हो विकास

नववर्ष से आस, कोसी में उद्योग का हो विकास प्रमंडल के तीनों केबिनेट मंत्रियों से बनी है अपेक्षाउद्योग-धंधे के विस्तारीकरण से ही सुधरेगी बेरोजगारी की समस्याकुमार आशीष, सहरसा नगरकोसी क्षेत्र राज्य का पिछड़ा इलाका कहा जाता रहा है. गरीबी, बेरोजगारी यहां घर-घर समायी हुई है. गरीबी के कारण सरकार के प्रयास के बावजूद जमीन पर […]

नववर्ष से आस, कोसी में उद्योग का हो विकास प्रमंडल के तीनों केबिनेट मंत्रियों से बनी है अपेक्षाउद्योग-धंधे के विस्तारीकरण से ही सुधरेगी बेरोजगारी की समस्याकुमार आशीष, सहरसा नगरकोसी क्षेत्र राज्य का पिछड़ा इलाका कहा जाता रहा है. गरीबी, बेरोजगारी यहां घर-घर समायी हुई है. गरीबी के कारण सरकार के प्रयास के बावजूद जमीन पर शिक्षा की दशा सुधरती नहीं दिख रही है. उद्योग-धंधों के प्रति सरकार की शिथिलता के कारण पलायन यहां की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है, जबकि राजनैतिक रूप से यह क्षेत्र प्रारंभ से ही समृद्ध रहा है. राज्य सरकार के गठन में इन तीन जिलों की हमेशा से ही बेहतर सहभागिता रही है, लेकिन इस दशा को सुधारने में किसी विधायक या सांसद ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है. लिहाजा बढ़ती जनसंख्या के साथ समस्या और भी अधिक गहराती जा रही है. अधिसंख्य लोगों के समक्ष घर-बार व परिवार छोड़ परदेश के अनाज-पानी का ही आसरा बना हुआ है. बीते विधानसभा चुनाव में सहरसा, मधेपुरा व सुपौल तीनों जिलों से चार-चार सीटों पर राज्य में सत्तासीन महागंठबंधन के प्रत्याशी विजयी हुए. मुख्यमंत्री ने तीनों जिले से एक-एक विधायक को कैबिनेट मंत्री बनाया है. नये साल में लोगों की उनसे क्षेत्र में उद्योग के खास विकास की अपेक्षा बनी हुई है. —-पेपर मिल शुरू कराये सरकारजिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर बैजनाथपुर में पेपर मिल स्थापना 1975 में हुई थी. 48 एकड़ भूमि अधिग्रहण करके बिहार सरकार ने इसे चलाने के लिए निजी व सरकारी सहयोग के उद्देश्य से बिहार पेपर मिल्स लिमिटेड कंपनी का गठन किया. 1978 में निजी उद्यमियों से करार खत्म होने के कारण काम रूक गया. तत्कालीन सरकार ने पब्लिक क्षेत्र के अंतर्गत परियोजना को चलाने का निर्णय लिया, जिसके बाद बैजनाथपुर पेपर मिल बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी हो गयी. उस दिन से कंपनी के शत प्रतिशत शेयर की हकदार भी निगम हो गयी. बिहार सरकार और निगम की आपसी सहमति के बाद विदेश से एक पुरानी मशीन भी खरीदी गयी. भारत सरकार के प्रतिष्ठान हिंदुस्तान स्टील कंस्ट्रक्शन लिमिटेड को मिल में होने वाले असैनिक कार्यों की जिम्मेवारी दी गयी. 1987 में निगम द्वारा कार्य स्थल में दो वर्षों का लक्ष्य निर्धारित कर कार्य शुरू किया गया, लेकिन निगम व सरकार द्वारा सही समय पर राशि का आवंटन नहीं होने के कारण निर्माण कार्य की गति धीमी होती गयी. अंतत: सरकारी उदासीनता व बैंकों के असहयोग के कारण परियोजना कार्य बंद होता चला गया. 1996-97 में बैंक ऑफ इंडिया द्वारा स्वीकृत कर्ज सात करोड 40 लाख विमुक्त करने के बाद मिल का कार्य फिर से शुरू किया गया. इतनी राशि से मिल का 80 प्रतिशत कार्य ही पूर्ण हो पाया. पिछली सरकार में उद्योग मंत्री रहीं रेणु कुशवाहा ने भी कोसी महोत्सव के सार्वजनिक मंच से पेपर मिल शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन सब ढ़ाक के तीन पात साबित हुए. यह अकेला उद्योग होगा, जिससे क्षेत्र के हजारों लोगों को रोजगार का स्थायी अवसर मिल सकेगा.—मखाना-मछली को मिले उद्योग का दर्जाकोसी की पहचान पानी फल मखाना व मछली से भी होती है. प्रमंडल के तीनों जिलों में कोसी व उसकी सहायक नदियों का जाल बिछा हुआ है. लिहाजा बाढ़ प्रभावित इन जिलों में जलजमाव वाले क्षेत्रों की संख्या भी अधिक है, जहां बड़े पैमाने पर मखाना की खेती होती है. कोसी में उत्पादित मखाने की मांग भारत ही नहीं, देश के बाहर भी है, लेकिन इसे उद्योग का दर्जा नहीं दिये जाने के कारण व इन किसानों को सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण मखाना की खेती करने वाले किसान हतोत्साहित हो रहे हैं और औने-पौने दाम में उत्पादित मक्खन फल (मखाना) बेच रहे हैं. दूसरी ओर कोसी का तीनों जिला मछली उत्पादन में भी राज्य भर में स्थान रखता है. यहां रोहू, कतला, मिर्का, सिल्वर कॉर्प, रेवा, बुआरी, कांटी, सिंही, मुंगरी, बचवा, टेगरा, चेचरा, कबय, मारा, मरोर, इचना सहित 50 से अधिक प्रजाति की मछलियां मिलती है, लेकिन इन मछली उत्पादकों को भी सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जाती है. कोसी की मछलियां कोसी क्षेत्र में कम और बाहरी प्रदेश के बाजारों में अधिक सजती है. मत्स्य पालन को उद्योग का दर्जा नहीं देने और पालकों को सरकारी सुविधा नहीं दिए जाने के कारण ये भी औने-पौने दाम में बेचने को विवश होते हैं. फोटो- उद्योग 1- बंद पड़ा पेपर मिलफोटो- उद्योग 2- मखाना फोटो- उद्योग 3- मछली

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