जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने अपने उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसके तहत राज्य सरकार को सभी सरकारी इमारतों और वाहनों पर राज्य के झंडे को भी फ़हराने की छूट दी गई थी.
27 दिसंबर को हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी इमारतों पर भारत के राष्ट्रीय झंडे के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का झंडा भी फ़हराया जाए.
अपने इस आदेश में अदालत ने कहा था, "ये भूतकाल को वर्तमान और भविष्य से जोड़ता है. झंडा न सिर्फ़ हमें लोगों के संघर्ष और त्याग की याद दिलाता है बल्कि हमारी महत्वकांक्षाओं से भी परिचय करवाता है."
जम्मू कश्मीर में सत्ताधारी पीडीपी की सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने इस फ़ैसले पर सवाल उठाया था और राज्य का झंडा भी फ़हराए जाने पर एतराज़ जताया था.
शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने अपने इस आदेश पर रोक लगा दी.
इसी साल मार्च में जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक सर्कुलर जारी करके सभी संवैधानिक इमारतों और सरकारी वाहनों पर जम्मू-कश्मीर के प्रांतीय झंडे को फ़हराने का आदेश दिया था.
हालांकि एक दिन बाद ही बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार ने उस सर्कुलर को वापस ले लिया था.
जिसके बाद एक नागरिक अब्दुल क़य्यूम ख़ान की याचिका पर हाई कोर्ट की डिवीज़नल बैंच ने ये भारत के राष्ट्रीय झंडे के साथ-साथ, राज्य के झंडे को भी फ़हराने का आदेश दिया था.
अब हाई कोर्ट ने उस आदेश पर रोक लगा दी है.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर कहा, "जब तक जम्मू-कश्मीर भारत का अंग है दो झंडे फ़हराए जाते रहेंगे और हमें इस पर गर्व है."
एक अन्य ट्वीट में अब्दुल्ला ने कहा, "सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर से ही उम्मीद क्यों की जाती है कि वो भारत से विलय की शर्तों को माने जबकि देश के बाक़ी हिस्से उनकी अनदेखी करते रहते हैं."
उमर ने एक और ट्वीट में कहा, "अगर मुफ़्ती मोहम्मद सईद राज्य के सम्मान और ध्वज की अपने सहयोगियों की साज़िशों से रक्षा नहीं कर सकते हैं तो उन्हें पद छोड़कर ऐसा व्यक्ति खोजना चाहिए जो ऐसा कर सके."
जम्मू-कश्मीर ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ असेसन’ या विलय की शर्तों के साथ भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बना था. इन शर्तों के तहत जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत भारतीय संविधान में विशेष दर्जा प्राप्त है.
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के लगभग छह दशक बाद भारतीय जनता पार्टी पहली बार राज्य की सरकार में शामिल है.
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