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आज देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए न जाने कितनी योजनाएं बनायी जा रही हैं. जिस देश की धरती को ही माता के समान पूजा जाता है, उस देश के लोग नारियों की आबरू से खिलवाड़ कर रहे हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाया गया है. इसके बावजूद अपराधियों की मंशा […]

आज देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए न जाने कितनी योजनाएं बनायी जा रही हैं. जिस देश की धरती को ही माता के समान पूजा जाता है, उस देश के लोग नारियों की आबरू से खिलवाड़ कर रहे हैं.
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाया गया है. इसके बावजूद अपराधियों की मंशा पर नकेल नहीं कसी जा सकी है. गली-मोहल्ले और शहरों में महिला, युवती, बालिका आदि की आबरू लूटी जा रही है. देश में निर्भया कांड के बाद लोगों में जागरूकता तो आयी. लेकिन, महिलाओं से हो रहे अपराध के ग्राफ में गिरावट नहीं आयी है. हालत यह है कि हमारे समाज के लोगों की मनोदशा पूर्ववत बनी हुई है. महिलाओं के शोषण करने की प्रवृत्ति से आज भी पितृसत्तात्मक समाज उबर नहीं पाया है. महिला अपराध के पीछे सबसे बड़ा कारण बदलता सामाजिक परिवेश और लोगों की सोच है.
सार्वजनिक व कार्यस्थलों पर महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं का होना तो आम है, महिलाएं अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं. कोई अपना जानकार या रिश्तेदार ही उसकी इज्जत से खिलवाड़ कर चला जाता है. देश में घटित होनेवाली इस प्रकार की कुछ घटनाएं ही खबरें बन कर लोगों के पास पहुंचती हैं. ज्यादातर घटनाएं तो लोक-लाज खोने और सामाजिक बदनामी होने के भय से या तो दबा दी जाती हैं या फिर उन्हें पीड़िता का परिजन संबंधित थाने में दर्ज ही नहीं कराता है. यह उसी देश का समाज है, जिस समाज में पहले महिलाओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था. लोग उसे लक्ष्मी समझ कर इज्जत देते और गली-मोहल्ले में किसी के घर की स्त्रियों के बाहर निकलने पर अपनी आंखें झुका लेते थे.
आज बदलते परिवेश में लोगों की बदलती सोच का दुष्परिणाम सामने आने लगा है. राह चलती अपने पड़ोस की ही महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करने से बाज नहीं आते. आज देश की बहू-बेटियां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं. आज उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत है.
-आलिया अंजुम, गुमला

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