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एक अच्छी पहल

नये साल की पहली तारीख से केंद्र सरकार की तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरियों में साक्षात्कार की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है. गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे 29 लाख से अधिक नौकरियों में भ्रष्टाचार और अभ्यर्थियों को बेमतलब की मुश्किलों से निजात मिलेगी. उन्होंने इस पहल का उल्लेख पिछले […]

नये साल की पहली तारीख से केंद्र सरकार की तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरियों में साक्षात्कार की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है. गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे 29 लाख से अधिक नौकरियों में भ्रष्टाचार और अभ्यर्थियों को बेमतलब की मुश्किलों से निजात मिलेगी.
उन्होंने इस पहल का उल्लेख पिछले स्वतंत्रता दिवस पर दिये गये अपने संबोधन में पहली बार किया था. यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि चयन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार के कारण योग्य युवाओं को नौकरी पाने में अकसर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरियों के अधिकतर अभ्यर्थी सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से आते हैं. इस कारण भ्रष्ट व्यवस्था में वे आसानी से शोषण का शिकार बन जाते हैं. उम्मीद है कि साक्षात्कार के खात्मे से उन्हें कुछ राहत मिलेगी और इसकी सफलता के बाद राज्य सरकारें भी इस पर विचार करेंगी. लेकिन, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि नियुक्तियों में पारदर्शिता के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
आवेदन भरने से लेकर अंतिम चयन के बीच कई चरण होते हैं, जिनमें लिखित परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण है. इसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. ऐसा कदम अब और जरूरी हो गया है, क्योंकि साक्षात्कार न होने पर भ्रष्टाचार में लिप्त लोग लिखित परीक्षा को प्रभावित करने के लिए जोर लगायेंगे. पारदर्शिता लोकतंत्र की सफलता और उसके उत्तरोत्तर मजबूत होने की महत्वपूर्ण शर्त है. सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की शुरुआत बहाली के स्तर से ही हो जाती है, जिसके नकारात्मक नतीजे पूरे देश को भुगतना पड़ता है.
बहाली में धांधली का मामला तीसरी और चौथी श्रेणियों तक ही सीमित नहीं है. ऐसे अनगिनत मामले सामने आये हैं, जिनमें तकनीकी, शैक्षणिक और प्रशासनिक पदों पर भी गलत तरीके से लोगों को चयनित किया गया है. सरकारी नौकरियां युवाओं की पहली प्राथमिकता होती हैं, इस कारण उनमें रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद और फर्जीवाड़ा भी खूब होता है. ऐसे में बहुत से सक्षम युवा नौकरी पाने से वंचित रह जाते हैं.
आवेदन पत्रों को राजपत्रित अधिकारी या समकक्ष व्यक्ति से सत्यापित कराने की अनिवार्यता समाप्त करने की प्रक्रिया भी जारी है. अच्छी बात है कि ऐसे निर्णयों से भ्रष्टाचार और अनावश्यक औपचारिकताओं की समाप्ति के प्रयास हो रहे हैं. आशा की जानी चाहिए कि नियुक्तियों की प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने की दिशा में इस तरह के और भी कदम लगातार उठाये जायेंगे.

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