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वक्त के पन्नों पर जो दर्ज कर गये अपनी अमिट छाप

नियम यह है विधाता का / सभी आकर चले जाते / मगर कुछ लोग ऐसे हैं / जो जाकर भी नहीं जाते। न सब धनवान होते हैं / न सब भगवान होते हैं/ दयालु, लोकप्रिय, सतपाल / भले इनसान होते हैं।। … और ऐसा कोई इनसान जब वक्त के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ […]

नियम यह है विधाता का / सभी आकर चले जाते / मगर कुछ लोग ऐसे हैं / जो जाकर भी नहीं जाते।

न सब धनवान होते हैं / न सब भगवान होते हैं/ दयालु, लोकप्रिय, सतपाल / भले इनसान होते हैं।।

… और ऐसा कोई इनसान जब वक्त के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ कर हमारे बीच से विदा होता है, तो यह हम सबका साझा फर्ज बनता है कि हम न केवल उन्हें याद रखें, बल्कि उनके कार्यों और योगदान से नयी पीढ़ी को समय-समय पर अवगत भी कराते रहें. साल 2015 में हमारे बीच से सदा के लिए विदा हुईं ऐसी ही कुछ शख्सीयतों को विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा है इस साल का यह आखिरी विशेष पेज.

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

पहले ‘मिसाइल मैन’, फिर ‘जनता के राष्ट्रपति’ के रूप में प्रख्यात हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 27 जुलाई को शिलांग में आखिरी सांस ली. हमेशा अपने मिशन में जुटे रहनेवाले डाॅ कलाम का शिलांग में जिस वक्त निधन हुआ, उस समय भी वह छात्रों को संबोधित कर रहे थे.

25 जुलाई, 2002 से 25 जुलाई, 2007 तक राष्ट्रपति रहने से पहले वैज्ञानिक कलाम ने देश की रक्षा सेवा में व्यापक योगदान दिया. कलाम का जन्म अक्तूबर, 1931 में रामेश्वरम में हुआ था. एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद इन्होंने देश की रक्षा और विज्ञान से जुड़े अनेक संगठनों में योगदान दिया. वर्ष 1981 में इन्हें पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में सर्वाेच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, देश-विदेश में कई विश्वविद्यालयों ने इन्हें मानद डाॅक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की. भारत को आधुनिक हथियारों के मामले में समृद्ध बनाने में इनका योगदान सर्वाधिक रहा है.

इनके नेतृत्व में स्वदेशी उपग्रह निर्माण में देश ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की. देश को परमाणु हथियार बनाने में सक्षम बनाने में इनकी व्यापक भूमिका रही. 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण की पूरी तैयारी इनकी निगरानी में की गयी थी. डाॅक्टर कलाम ने 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति को अत्याधुनिक बनाने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की. उन्होंने अनेक किताबें भी लिखीं, जो युवा पीढ़ी को सदैव उत्साहित एवं प्रेरित करती रहेंगी.

डा कैलाश वाजपेयी

हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार कैलाश वाजपेयी का एक अप्रैल को निधन हो गया. डाॅ वाजपेयी का जन्म 11 नवंबर, 1936 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में हुआ था. लखनऊ यूनिवर्सिटी से वाचस्पति की उपाधि प्राप्त करने के बाद मुंबई में वे पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े. बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक नियुक्त हुए. इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्राएं की और वहां हिंदी साहित्य को प्रोत्साहित करने का काम किया. दार्शनिक मिजाज के कवि रह चुके डाॅक्टर वाजपेयी को ‘हवा में हस्ताक्षर’ काव्य संग्रह पर वर्ष 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. वर्ष 2008 से 2013 तक वे साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद के सदस्य भी रहे.

दूरदर्शन के लिए उन्होंने कबीर, हरिदास स्वामी, सूरदास, जे कृष्णमूर्ति, रामकृष्ण परमहंस और बुद्ध के जीवन-दर्शन पर फिल्में भी बनायीं. साथ ही वे दूरदर्शन की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे. भारतीय संस्कृति के ज्ञाता और कवि के रूप में उनकी ज्यादा ख्याति थी. उन्होंने कविता के शिल्प में भी बदलाव किया. उनकी कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. अपने अध्यापन काल के दौरान डाॅ वाजपेयी ने कई देशों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ किया था.

रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’

कविताओं में अपने तेवर के लिए जनकवि के रूप में जाने गये रमाशंकर यादव का नयी दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय कैंपस में बीते आठ दिसंबर को देहांत हो गया. ‘विद्रोही’ के नाम से लोकप्रिय हुए रमाशंकर यादव बीते 30 वर्षों से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय कैंपस में ही रह रहे थे. उन्हें कवि और कल्चरल एक्टिविस्ट के रूप में जाना जाता था. 1957 में उत्तर प्रदेश में जन्मे रमाशंकर यादव ने 1980 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. पाठ्यक्रम के दौरान छात्र आंदोलनों को बढ़ावा देने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया.

विद्रोही ने होस्टल छोड़ दिया और खुले आसमान को ही अपनी छत बना लिया. इस तरह से उन्होंने कई वर्षों तक अपना संघर्ष जारी रखा. हिंदी और अवधि में लिखी गयी उनकी कविताएं छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थीं. वर्ष 2011 में ‘मैं तुम्हारा कवि हूं’ के नाम से उन पर एक फिल्म भी बनायी गयी. ‘नयी खेती’ नाम से उनकी एक प्रसिद्ध कविता है, जिसकी एक पंक्ति बेहद लोकप्रिय है, ‘अगर जमीन पर भगवान जम सकता है, तो आसमान में धान भी जम सकता है.’

विनोद मेहता

वरिष्ठ पत्रकार और आउटलुक मैगजीन के संपादक रह चुके विनोद मेहता का आठ मार्च को निधन हो गया. मेहता का जन्म 1942 में वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था.

बाद में उनका परिवार लखनऊ आ गया और यहीं उन्होंने पढ़ाई की. लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीए करने के बाद ‘डेबोनियर’ पत्रिका से उन्होंने अपने पत्रकारिता कैरियर की शुरुआत की. बाद में उन्होंने पायनियर, द संडे आॅब्जर्वर, द इंडिपेंडेंस और इंडियन पोस्ट में भी काम किया. 1995 से लेकर 2012 तक वे आउटलुक के प्रधान संपादक रहे.

डाॅ महीप सिंह

सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ महीप सिंह का बीते 24 नवंबर को दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. डाॅ महीप सिंह का जन्म वर्ष 1930 में अविभाजित पंजाब में हुआ था. बाद में इनका परिवार पाकिस्तान से पलायन करके उत्तर प्रदेश के उन्नाव में बस गया.

कानपुर के डीएवी काॅलेज से पढाई करने के बाद उन्होंने पीएचडी की डिग्री आगरा यूनिवर्सिटी से हासिल की और फिर दिल्ली आ गये. हिंदी के लेखक और स्तंभकार के रूप में प्रसिद्ध डाॅ सिंह चार दशकों से संचेतना पत्रिका का संपादन कर रहे थे. डाॅ महीप सिंह ने करीब 125 कहानियां लिखीं.

एमएम कलबुर्गी

वाचन साहित्य के विद्वान और कर्नाटक में हंपी स्थित कन्नड़ विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर रह चुके एमएम कलबुर्गी की 30 अगस्त को उनके आवास के निकट हत्या कर दी गयी. कर्नाटक की राजनीति में वर्चस्व रखनेवाली जातीय समूह लिंगायत में उन्हें एक प्रोग्रेसिव व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता था. कलबुर्गी ने लिंगायत समुदाय और इतिहास के संबंध में नये दृष्टांत दिये.

इस कारण कई बार उन्हें अपने ही समुदाय में लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2014 में उन्होंने मूर्ति पूजा के विरोध में बयान दिया था, जिसकी व्यापक तौर पर निंदा की गयी. कलबुर्गी का जन्म वर्ष 1938 में बीजापुर जिले में हुआ था. 1962 में कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़ से इन्होंने गोल्ड मेडल के साथ ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की थी. एमए करने के बाद उन्होंने कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़ में पढ़ाना शुरू किया और 1982 में वे कन्नड़ विभाग के विभागाध्यक्ष बनाये गये.

कलबुर्गी कन्नड़ एपिग्राफीस्ट यानी पुरालेखविद के तौर पर भी प्रसिद्ध हुए. उन्होंने 103 किताबें और 400 से ज्यादा लेख लिखे. उनके अनेक लेखों व किताबों का अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुआ. अपने शोधकार्यों के दौरान उन्होंने लंदन, कैंब्रिज और आॅक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी का दौरा किया. 2006 में उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था. इसके अलावा भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिले थे.

आरके लक्ष्मण

इस वर्ष 26 जनवरी को दुनिया को अलविदा कह चुके आरके लक्ष्मण प्रमुख व्यंग्य-चित्रकार थे. अपने कार्टूनों के जरिये उन्होंने आम आदमी को व्यापक स्थान दिया और उसके जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और गम को शब्दों और रेखाओं की मदद से समाज के सामने रखा.

लक्ष्मण का आम आदमी पूरी दुनिया में खास हो गया. वर्ष 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गये, जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगायी गयी. वर्ष 1921 में कर्नाटक के मैसूर में जन्मे लक्ष्मण ने हाइस्कूल पास करने बाद ही यह तय कर लिया था कि वे कार्टूनिस्ट बनेंगे. उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं. भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण से नवाजा. लक्ष्मण को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

गोविंद पानसरे

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एवं लोकप्रिय लेखक गोविंद पंधारीनाथ पानसरे का 20 फरवरी को निधन हो गया. 16 फरवरी को अज्ञात बंदूकधारियों ने उन्हें गोली मार दी थी. वर्ष 1933 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पानसरे का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था. राष्ट्र सेवा दल नामक एक संगठन के सहयोग से वे हाइ स्कूल की शिक्षा हासिल कर पाये.

कोल्हापुर से काॅलेज की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान वे वामपंथी विचाराधारा से जुड़े और विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार कार्यों में भी हिस्सा लिया. एलएलबी की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने मजदूरों के हित में कानूनी लड़ाई शुरू की और अनेक श्रम संगठनों और मलिन बस्तियों में रहनेवालों का प्रतिनिधित्व किया. बाद में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नियुक्त किये गये.

अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के अलावा पानसरे ने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद उन्होंने ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ के सदस्यों से अपना कार्य जारी रखने का अनुरोध किया था. पानसरे ने 21 किताबें लिखीं, जिनमें मराठी में लिखी गयी किताब ‘शिवाजी कोण होता’ सबसे ज्यादा विवादों में रही थी. पानसरे ने अपनी इस किताब में शिवाजी को धर्मनिरपेक्ष शासक बताया था.

अशोक सिंघल

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के आंदोलन के नायक रहे विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक अशोक सिंघल का 17 नवंबर को 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. 1926 में आगरा में जन्मे सिंघल करीब 20 वर्षों तक विश्व हिंदू परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे. अस्वस्थ रहने के कारण दिसंबर, 2011 में उन्होंने यह पद छोड़ दिया था.

बीएचयू से 1950 में इंजीनियरिंग में स्नातक करने से पहले ही वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे और स्नातक करने के बाद पूर्णकालिक प्रचारक बन गये. 1984 में उन्हें संगठन का महासचिव नियुक्त बनाया गया. उसके बाद से उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन तेज किया.

जानकी वल्लभ पटनायक

ओड़िशा के मुख्यमंत्री और असम के राज्यपाल रह चुके जानकी वल्लभ पटनायक का 21 अप्रैल को तिरुपति में देहांत हो गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रह चुके 88 वर्षीय पटनायक जून, 1980 से दिसंबर, 1989 तक और फिर मार्च, 1995 से फरवरी, 1999 तक ओड़िशा के मुख्यमंत्री रहे.

वर्ष 1947 में उत्कल यूनिवर्सिटी से संस्कृत में बीए की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1949 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए डिग्री हासिल की. 1950 में उन्हें ओड़िशा राज्य कांग्रेस की युवा ब्रिगेड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 1980 में पटनायक ने केंद्रीय पर्यटन, नागरिक उड्डयन और श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभाला. ओड़िशा में सड़क परिवहन के बुनियादी ढांचे के विकास में इनका व्यापक योगदान रहा है.

रामसुंदर दास

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास का छह मार्च को 93 वर्ष की उम्र में पटना में निधन हो गया. 21 अप्रैल, 1979 से 17 फरवरी, 1980 तक वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे़ इनका जन्म 1921 में सारण जिले में हुआ था.

1991 में 10वीं लोकसभा चुनावों के दौरान वे हाजीपुर सीट से विजयी रहे थे. इसी लोकसभा सीट से 2009 में वे 15वीं लोकसभा चुनावों के दौरान भी िवजयी हुए. हालांकि, वर्ष 2014 में यानी पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान वे एक बार फिर हाजीपुर सीट से जदयू के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े थे, लेकिन रामविलास पासवान से पराजित हो गये.

सुभाष घिसिंग

गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सुभाष घीसिंग का 29 जनवरी को 78 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया. भारतीय सेना की गोरखा राइफल में वे योगदान दे चुके थे. पश्चिम बंगाल में वे दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल के चेयरमैन रहे थे.

पहाड़ी इलाकों में लोगों की परेशानियों को सरकार तक पहुंचाने और उनके निदान के लिए लिए उन्होंने ‘नीलो झंडा’ नामक राजनीतिक संगठन शुरू किया. बंगाल के उत्तरी हिस्से में स्थित दार्जीलिंग के आसपास के पहाड़ी इलाकों को शामिल करते हुए 1980 के दशक में उन्होंने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया़

ब्रजमोहन मुंजाल

साइकिल और बाइक बनानेवाली प्रमुख कंपनी हीरो ग्रुप के चेयरमैन ब्रजमोहन मुंजाल का लंबी बीमारी के बाद 92 साल की उम्र में एक नवंबर को निधन हो गया. फोर्ब्स’ ने इस वर्ष अक्तूबर में उन्हें एशिया के धनी लोगों में शामिल किया था. वर्ष 1923 में मुंजाल का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था, लेकिन 1943 में उनका परिवार अमृतसर आ गया.

बाद में मुंजाल लुधियाना आ गये और वहीं अपना कारोबार शुरू किया. साइकिल बनाने का लाइसेंस मिलने से पहले वे उसके पुर्जे बनाते थे. अपने तीन भाइयों के साथ मिल कर उन्होंने हीरो साइकिल शुरू की, जो दुनिया की सबसे बडी साइकिल निर्माता कंपनी बन गयी. वर्ष 1984 में ‘होंडा मोटर’ के साथ साझेदारी करते हुए मुंजाल ने ‘हीरो होंडा’ के रूप में ज्वाइंट वेंचर शुरू किया और यह कंपनी भारत में मोटरसाइकिल निर्माण में अग्रणी बन गयी. अगस्त, 2013 तक इस कंपनी ने पांच करोड़ बाइक का निर्माण कर लिया था. कारोबारी क्षेत्र में नये आयाम गढ़नेवाले मुंजाल को अनेक पुरस्कार भी हासिल हो चुके हैं. व्यापार और उद्योग जगत में व्यापक योगदान को देखते हुए वर्ष 2005 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ दिया गया.

सईद जाफरी

‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘मासूम’ और ‘राम तेरी गंगा मैली’ समेत 100 से अधिक फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के अलावा हॉलीवुड और ब्रिटिश फिल्मों में भी काम कर चुके प्रख्यात अभिनेता सईद जाफरी का 16 नवंबर को लंदन में देहावसान हो गया. पंजाब के मलेर कोटला में 1929 में जन्मे जाफरी ने एक रंगमंच अभिनेता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी. वह रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामाटिक आर्ट में अध्ययन के लिए लंदन गये थे और उन्होंने द कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका से ड्रामा में परा-स्नातक की डिग्री हासिल की थी.

रवींद्र जैन

जाने-माने संगीतकार एवं गायक रवींद्र जैन का 71 वर्ष की आयु में नौ अक्तूबर को निधन हो गया. रामानंद सागर के प्रख्यात धारावाहिक ‘रामायण’ में संगीतकार और गायक के रूप में उन्हें काफी ख्याति मिली. हालांकि, इससे पहले 70 के दशक में ही वे ‘चोर मचाये शोर’, ‘गीत गाता चल’, ‘चितचोर’ और ‘अंखियों के झरोखों से’ जैसी हिट फिल्मों की धुन तैयार कर सफल संगीतकारों में शुमार हो गये थे. 1980 और 1990 के दशकों के दौरान उन्होंने कई पौराणिक फिल्मों और धारावाहिकों के लिए संगीत तैयार किया था.

आदेश श्रीवास्तव

संगीतकार एवं गायक आदेश श्रीवास्तव कैंसर से जूझ रहे थे. पांच सितंबर को महज 51 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. 1993 में ‘कन्यादान’ फिल्म से उन्होंने कैरियर की शुरुआत की थी. हालांकि, यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो सकी. बाद में आदेश श्रीवास्तव ने ‘क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो’, ‘हाथों में आ गया जो कल’, ‘सोना सोना’, ‘शावा शावा’, ‘गुस्ताखियां’, ‘मोरा पिया’ समेत अन्य अनेक हिट गीतों की धुन तैयार की.

साधना : बालीवुड की मशहूर अदाकारा साधना का 25 दिसंबर को मुंबई में निधन हो गया. 1941 में कराची में जन्मी साधाना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. ‘आरजू’, ‘मेरे महबूब’, ‘लव इन शिमला’, ‘मेरा साया’, ‘वक्त’, ‘आप आये बहार आयी’, ‘वो कौन थी’, ‘राजकुमार’, ‘असली नकली’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदाओं से उन्होंने दर्शकों पर अपना जादू चलाया. मुंबई में आरके नैयर से इन्होंने शादी की. उनका हेयर स्टाइल ‘साधना कट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ था, जो आज भी लोकप्रिय है.

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