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थोपी गयी नैतिकता से कोई लाभ नहीं
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया महान समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास (बेंगलुरु में उनके आवास के पास ही मेरा घर है) ने एक बार कहा था कि शराब पर निषेध एक सांस्कृतिक कृत्य है. भारत की विभिन्न सरकारों ने इसे एक नैतिक दृष्टिकोण के आधार पर लागू किया था और वे इसके आर्थिक परिणामों को […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
महान समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास (बेंगलुरु में उनके आवास के पास ही मेरा घर है) ने एक बार कहा था कि शराब पर निषेध एक सांस्कृतिक कृत्य है. भारत की विभिन्न सरकारों ने इसे एक नैतिक दृष्टिकोण के आधार पर लागू किया था और वे इसके आर्थिक परिणामों को अनदेखा करने के लिए तैयार थे. बहरहाल, शराबबंदी दुनिया में हर जगह असफल हुई है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है. लेकिन, व्यक्ति पर नैतिकता थोपने की मनोवृत्ति हमेशा से रही थी और उसे नियंत्रित रख पाना बहुत कठिन था.
वर्ष 2015 में हमने पाया कि सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भारतीय राज्य का आकर्षण मजबूत बना हुआ है. यह मनोवृत्ति सभी राजनीतिक दलों में है और उनमें वे पार्टियां भी शामिल हैं, जो खुद को सेक्युलर कहती हैं. जदयू, राजद एवं कांग्रेस के महागंठबंध द्वारा शासित बिहार और कांग्रेस द्वारा शासित केरल में राज्य एक बार फिर शराबबंदी की ओर अग्रसर है. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे एक बेहतर समाज का निर्माण होगा.
वर्ष 2015 में हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे हिंदुत्ववादियों द्वारा शासित कई राज्यों में गोजातीय पशुओं को मारे जाने पर पाबंदी लगा दी गयी. ऐसा करते हुए उन्होंने संविधान की आड़ ली. हमारे संविधान-निर्माताओं ने यह कहते हुए हमसे झूठ बोला था कि आर्थिक कारणों से राज्य को गो-हत्या पर रोक लगाना चाहिए. यह पूरी तरह से गलत है और अगर इसमें सच्चाई होती, तो दूसरे देश भी ऐसा ही करते. पर, उन्होंने ऐसा नहीं किया है.
यह सांस्कृतिक उच्च जाति की मनोवृत्ति है, जो इस प्रतिबंध के लिए उकसाती है और हममें इतनी ईमानदारी होनी चाहिए कि हम इसे स्वीकार करें. किसी व्यक्ति की नैतिक प्रवृत्ति स्वयं में सबसे अधिक मजबूती से प्रदर्शित नहीं होती, बल्कि दूसरों के क्रिया-कलापों में दिखती है और इस बात में कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. धार्मिक राज्य लोगों को प्रार्थना करने या उपवास करने या खास तरह का कपड़ा पहनने के लिए मजबूर कर धार्मिकता थोपता है.
यह भारतीय राज्य से कतई अलग नहीं है, जो किसी व्यक्ति को अपनी पसंद से प्रेम करने की अनुमति नहीं देता है. समलैंगिकता को अपराध मानने को गो-हत्या पर प्रतिबंध के समान ही माना जाना चाहिए. यह कहा जा सकता है कि वास्तव में कोई भी हिंदू शास्त्र ऐसे किसी प्रतिबंध का आह्वान नहीं करता है. लेकिन, धर्म और संस्कृति को लेकर हमारी समझ से ही नैतिकता पैदा होती है, न कि इस तथ्य से कि सचमुच में वे क्या हैं.
परदे पर कितना रोमांस दिखाया जाना चाहिए, यह निर्धारित करने की सेंसर बोर्ड की प्रवृत्ति इसका एक और उदाहरण है. एक बहुत अपरिष्कृत और कम शिक्षित व्यक्ति को सेंसर बोर्ड का प्रमुख बना कर हमारे ऊपर थोप दिया गया है (इसी तरह के एक अन्य अपरिष्कृत व्यक्ति को भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान का मुखिया बनाया गया है). बताया जाता है कि इन्हें नियुक्त करने का एक कारण इनका चमचा होना है.
यह ठीक है और सभी सरकारें चापलूसी करनेवालों को पुरस्कृत करती हैं. लेकिन, इस प्रकरण में ये दोनों लोग नैतिक हिंदुत्व की भावना का भी पालन करते हैं, या ऐसा करने का दावा करते हैं. भारत का सेंसर बोर्ड यह तय करता है कि जेम्स बॉन्ड का किसी को कितनी देर चूमना नैतिक या अनैतिक कहा जा सकता है. यह हमारे समय की मूर्खता का सिर्फ एक सूचक है और इस तरह से सोचनेवालों में भाजपा अकेली नहीं है.
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर पिछले सप्ताह समलैंगिक संबंधों को अपराध न मानने का विधेयक प्रस्तावित करने में असफल रहे. यह सही है कि भाजपा ने उन पर हंगामा किया, लेकिन यह भी सही है कि जब मनमोहन सिंह की सरकार के समय यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया, तब कांग्रेस ने ही इसका विरोध किया था. दुनिया के हर हिस्से में दूसरों को अपनी मर्जी के मुताबिक जीवन जीने को विवश करने की इच्छा बहुत मजबूत है. ऐसा होने का विशेष कारण यह है कि हमने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विचार को अभी तक पूरी तरह आत्मसात नहीं किया है.
भारत में और आम तौर पर दक्षिण एशिया में, पहचान सामूहिक और सांप्रदायिक होती है तथा सामाजिक सदभाव के लिए व्यक्ति और उसके अधिकार हमेशा कमतर कर दिये जाते हैं. इस लिहाज से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं यूरोपीय व्यवस्थाओं से अलग हैं. वहां भी कुछ व्यक्तिगत अधिकार नहीं दिये जाते हैं, पर ऐसा उस हद तक नहीं होता है, जैसा कि यहां होता है.
सच तो यह है कि हमारा नैतिकवाद हमें परेशानी की ओर ले जायेगा. गुड़गांव में कई कोरियाई और जापानी रेस्त्रां हैं, जहां खुलेआम बीफ परोसी जाती है. इन जगहों पर ज्यादातर विदेशी ही जाते हैं और यह तय है कि हरियाणा का कोई अतिउत्साही पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री को प्रसन्न करने के लिए इन जगहों पर छापा मारेगा और गिरफ्तारियां करेगा, जिससे कि भारत वैश्विक स्तर पर उस तरह से खबर बनेगा, जैसा कि हम पसंद नहीं करते हैं.
बिहार में शराबबंदी की घोषणा के बाद एक टेलीविजन बहस में मैंने कहा था कि शराबबंदी ने गुजरात पुलिस को पूरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है और कभी-कभार शराब पीनेवालों को अपराधी बना दिया है. इससे शराब अर्थव्यवस्था भूमिगत हो गयी है और संगठित गिरोहों को अवैध शराब के वितरण के लिए उकसावा मिला है.
गुजरात में पुलिस अधिकारियों के सामने दो वास्तविक विकल्प हैं या तो इन गतिविधियों से वे मुंह फेर लें या फिर इसमें शामिल हो जाएं. शराब के खिलाफ कोई सही ईमानदार लड़ाई नहीं हो रही है, क्योंकि इस लड़ाई को जीता नहीं जा सकता है. यही बात हमारी ढोंगी और थोपी गयी नैतिकता के सभी पहलुओं पर लागू होती है.
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