15.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

परेशानी. सच्चाई जान होगी हैरानी, लेकिन किसी को नहीं है चिंता

जहानाबाद : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा कर इसे विकसित करने का दंभ तो सरकार लंबे समय से भरती रही है, लेकिन इस दिशा में कोई भी कारगर कदम नहीं उठाये जाने से जिले की ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व लुप्त हो जा रहा है. जिले का संपूर्ण क्षेत्र सत्ता का केंद्र न होकर भी […]

जहानाबाद : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा कर इसे विकसित करने का दंभ तो सरकार लंबे समय से भरती रही है, लेकिन इस दिशा में कोई भी कारगर कदम नहीं उठाये जाने से जिले की ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व लुप्त हो जा रहा है. जिले का संपूर्ण क्षेत्र सत्ता का केंद्र न होकर भी अपनी विशिष्टताओं के कारण आकर्षण का केंद्र रहा है.

गया और बोधगया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है, लेकिन इसके आसपास का क्षेत्र भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. जिले के धराउत, धरनई, घेजन, केउर, अमैन, दावथू, लाट, मीरा बिगहा, क्षतियाना, कंदौल देहुनी सहित कई स्थान ऐसे हैं जिसके पुरातात्विक महत्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. विडंबना यह है कि ऐसे पुरातात्विक महत्व वाले स्थलों की उपेक्षा हो रही है. इन स्थानों में बौद्ध और पालकालीन दुर्लभ मूर्तियां उपेक्षित पड़ी हैं. ऐसी धरोहरों पर तस्कर गिरोह की भी नजर है.

तीन श्रेणियों में बांटे गये हैं पुरातात्विक स्थल : जानकारी के अनुसार ऐसे पुरातात्विक स्थलों को तीन श्रेणी न्यून ज्ञात स्थल, न्यूनाधिक ज्ञात स्थल और ज्ञात स्थल में बांटा गया है. जिले के ये वैसे स्थल हैं जिनकी खुदाई अभी तक विधिवत वैज्ञानिक ढंग से नहीं हो सकी है. परिणाम यह है कि यहां से निकली धरोहर उपेक्षित हैं.
जिले के मखदुमपुर प्रखंड अंतर्गत मोरहर नदी के किनारे स्थित है घेजन गांव. यह स्थान बौद्ध और सनातन(हिंदू) दोनों धर्मों से संबंधित है. इस गांव के दक्षिणी छोर पर बौद्ध धर्म से संबंधित कई मूर्तियां पुरातत्व विभाग की देख-रेख में करकट के बने छप्पर के नीचे हैं. कुछ दिनों पूर्व लोहे के ग्रिस से घेर कर इसे संरक्षित रखने की कोशिश की गयी है. घेजन की कुछ मूर्तियों को भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में बहुत पहले से ही भेज दी गया, जिनमें बौद्ध देवता अवलोकितश्वर की मूर्ति प्रधान है.
ऐतिहासिक स्थल केउर : जानकारी के मुताबिक इतिहासकार और पुराविद् ए बनर्जी शास्त्री ने इस स्थान का निरीक्षण और सर्वेक्षण 1929 में किया था. यहां एक बड़ा दूह (टिला) है, जहां पालकालीन कई मूर्तियां मिली हैं, जो दसवीं से बारहवीं सदी की हैं. इसके विस्तृत क्षेत्र के अवशेषों को देख कर पुराविद् ए बनर्जी शास्त्री ने इसकी तुलना नालंदा से की थी. यदि यहां की खुदाई वैज्ञानिक ढंग से की जाये, तो पालकालीन इतिहास की अच्छी जानकारी मिलने की संभावना है.
कंदौल व देहुनी भी है महत्वपूर्ण : यह एक ऐसा स्थल है जहां ईसा पूर्व छह सौ से ईसा पूर्व दो सौ वर्ष के अवशेष मिले थे, जिनमें विभिन्न प्रकार की मिट्टी के बरतन थे. घोसी प्रखंड क्षेत्र के देहुनी गांव में 10वीं और 11वीं शताब्दी की बहुतेरी मूर्तियां उपेक्षित पड़ी हैं और शासन-प्रशासन के द्वारा पुरातात्विक महत्व दिये जाने के दावे को झुठला रही हैं. यहां भगवान विष्णु, सूर्य, सिंहवाहिनी दुर्गा, चामुंडा और श्रीगणेश की टूटी मूर्तियां मिली हैं.
धरनई : एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है जहां पालकाल के अवशेष मिले हैं. इस गांव में दसवीं सदी की हाथ में कमल का फूल लिये सूर्य, ललितासन में उमा-महादेव बैठे कुबेर और खड़े विष्णु की मूर्तियां भी मिली हैं. इसका कला की दृष्टि से बड़ा महत्व है. गांव के निवासी दीपक कुमार बताते हैं कि मक्के की खेती के दौरान मुगलकालीन सिक्के मिले थे. वाणासुर के एक वक्त का एक मंदिर है. गढ़ भी है जिसकी खुदाई की जरूरत है.
धराउत : यह गांव सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासतों की श्रेणी में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. बुजुर्ग बताते हैं कि राजा चंद्रसेन ने इस गांव में मंदिर की स्थापना और तालाब की खुदाई करायी थी. बाबा नरसिंह एवं भगवान शंकर के मंदिर से सटे पश्चिम तालाब है जिसे चंदोखर तालाब के नाम से जाना जाता है. धराउत स्थित मंदिर कितना वर्ष पुराना है यह कोई नहीं जानता.
इस ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा व रख-रखाव की फिक्र किसी को नहीं है. सुरक्षा की कमी का ही नतीजा है कि पूर्व में मंदिर से राधा-कृष्ण की पीतल की मूर्ति चोरी कर ली गयी थी. एक अन्य मूर्ति के मुकुट और जेवर भी चोर चुरा कर ले भागे थे.
नंदी और गणेश की मूर्तियां भी चोरी हो चुकी हैं. इसी तरह अमैन में संरक्षण के अभाव में काले पत्थर की आधी दर्जन कीमती मूर्तियां उपेक्षित पड़ी हैं. पूर्व में दो मूर्तियों की चोरी हो गयी थी. अमैन के पूर्व मुखिया नरेश प्रसाद सिंह बताते हैं कि यहां की मूर्तियों के रख-रखाव की जरूरत है. लाट गांव में एक बड़ा स्तंभ खेत में पड़ा है.
गांव के निवासी अजय सिंह टुन्नू का कहना है कि खेत में पड़ी धरोहर को सहेजने की आवश्यकता है, लेकिन किसी का ध्यान उस ओर नहीं जा रहा है. जारू, हुलासगंज, नेर, दावथू, छतियाना ऐसे गांव हैं, जहां की धरोहरों ने अपना वजूद लगभग खो दिया है. जिले के इन सभी गांवों की दुर्लभ मूर्तियां अपने को सहेजे जाने की आस में हैं. जरूरत महसूस की जा रही है एक ऐसे तारणहार की जो इन ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए सार्थक कदम उठा सके.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें