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अब सर्फि जिला क्रिकेट क्लब का रह गया है नाम

अब सिर्फ जिला क्रिकेट क्लब का रह गया है नामन कैंप लगता, न ही मैच होते मैदान के अभाव में कुंठित हो रही प्रतिभाविद्यालयों व महाविद्यालयों से खेलों को नहीं मिल रहा बढ़ावा फोटो नंबर- 4,परिचय- शौचालय में तब्दील गांधी मैदान,फोटो नाम से औरंगाबाद (ग्रामीण).शहरों व गांवों में खेलों के आयोजन से प्रतिभा निखर कर […]

अब सिर्फ जिला क्रिकेट क्लब का रह गया है नामन कैंप लगता, न ही मैच होते मैदान के अभाव में कुंठित हो रही प्रतिभाविद्यालयों व महाविद्यालयों से खेलों को नहीं मिल रहा बढ़ावा फोटो नंबर- 4,परिचय- शौचालय में तब्दील गांधी मैदान,फोटो नाम से औरंगाबाद (ग्रामीण).शहरों व गांवों में खेलों के आयोजन से प्रतिभा निखर कर सामने आती है, जो समाज व देश का नाम राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित करती है. ये बातें कुछ सुनी-सुनी सी लगती है. यह बार-बार सुनने को मिले रहे हैं, कहते हैं किसी टूर्नामेंट का आयोजन करनेवाले या मुख्य अतिथि जो टूर्नामेंट का शुभारंभ कराते हैं. जनप्रतिनिधियों के मुख से ये बातें अक्सर आयोजन के दौरान सुनने को मिलती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या प्रतिभा को सामने लाने की बातें सच है, या सुर्खियों में रहने या वाह-वाही लूटने भर ही रहती है. औरंगाबाद जिले में खेलों का भविष्य पूरी तरह अधर में है. चाहे वह क्रिकेट हो, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन हो या कबड्डी. इन खेलों का कोई मां-बाप यहां नहीं है. प्रशिक्षक की तो बात ही दूर है. जिले के खेल पदाधिकारी का भी ध्यान क्रिकेट की ओर नहीं है. कभी-कभी बैडमिंटन का खेल हो जाया करता है. लेकिन, गली-गुच्ची में भी हो रहे क्रिकेट मैच का भविष्य तो पूरी तरह बरबाद ही हो गया है. कभी राज्य स्तरीय टूर्नामेंट से लेकर राष्ट्रीय टीम में शामिल होने का अरमान पाल चुके खिलाड़ियों की स्थिति अब ऐसी हो गयी है कि या तो बेरोजगार होकर रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं या किसी तरह का दुकान खोल कर बैठ गये हैं. सच कहा जाये तो अब युवाओं के लिए क्रिकेट मस्ती व मनोरंजन का साधन बन गया है. बिहार-झारखंड बंटवारे के पहले औरंगाबाद के गेट स्कूल व गांधी मैदान में दर्जनों की संख्या में क्रिकेट का प्रैक्टिस करते युवा नजर आते थे. मैट बिछा कर बैटिंग व बॉलिग का प्रदर्शन करते थे. उनमें बेहतर करने की होड़ सी लगी रहती थी. एक ही ग्राउंड में अलग-अलग टीमों को क्रिकेट के खेल में पसीना बहाते व प्रशिक्षक को प्रशिक्षण देते अच्छा लगता था, लेकिन जब से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन राजनीति की भेंट चढ़ी, तब से युवा क्रिकेटरों के सपने टूटते चले गये. अब तो जिला क्रिकेट क्लब भी नाम का रह गया है. न कैंप लगता है और न किसी तरह का मैच होते हैं. डयूज व कॉरकेट बॉल की जगह टेनिस बॉल ने ले ली है. विद्यालयों व महाविद्यालयों से भी खेल गायब : पढ़ाई से लेकर खेल की प्रारंभिक शिक्षा विद्यालय से मिलती है,महाविद्यालयों में इसका बढ़ावा मिलता है. उम्र दर उम्र खेल में युवा पारंगत होते हैं. कभी एक विद्यालय दूसरे विद्यालय से खेल के आयोजन में टकराते थे. उससे उनके मनोबल व प्रतिभा को आका जाता था,लेकिन अब विद्यालयों व महाविद्यालयों से भी खेल का नामोनिशान मिटता जा रहा है. सच कहा जाये तो खेल के नाम पर महाघोटाला हो रहा है. आज भी खेलों के नाम पर व खेल सामग्री के खरीद के लिए पैसों का आवंटन होता है, लेकिन वह पैसा कहां गया और कहा खर्च हुआ, इसका जवाब देनेवाला शायद ही कोई हो. जब तक विद्यालयों व महाविद्यालयों में खेल की गतिविधियां नहीं बढ़ेगी तब तक प्रतिभा निखर कर सामने नहीं आयेंगे. टूर्नामेंट में बिहार को नहीं मिला मौका : जिला क्रिकेट संघ के सचिव रवींद्र कुमार रवि ने बताया कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन काफी बुरे दौर से गुजर रहा है. उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अवकश प्राप्त जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की देखरेख में एक माह पहले चुनाव कराया गया था. अब्दुल बारी सिद्धिकी को अध्यक्ष, रविशंकर प्रसाद सिंह सचिव बनाये गये. इसमें पूर्व सचिव अजय नारायण शर्मा की हार हुई थी. अभी बीसीसीआइ के आदेश का इंतजार हो रहा है. दुख की बात तो यह है कि बिहार को बीसीसीआइ टूर्नामेंट कैलेंडर में भी शामिल नहीं किया गया. अन्य सभी राज्य की टीमें अंतराज्जीय टूर्नामेंट खेल रही है,पर बिहार को मौका नहीं दिया गया. पिछले 10 वर्षों से किसी तरह क्रिकेट को जिंदा बचाये रखने का प्रयास भर किया जा रहा है. ———————खेल को बढ़ावा देनेवाला ही कोई नहीं क्रिकेट की दीवानगी और नाम कमाने की ललक ने सब कुछ बरबाद कर दिया. जब बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का कोई पावर ही नहीं तो जिले में क्रिकेट खेल कर क्या करते. क्रिकेट के चक्कर में पढ़ाई भी छुट गयी. कम से कम अभी भी यहां के युवाओं को एक मौका मिल जाता.अमरदीप गुप्ता, खिलाड़ीजिले में टेनिस बॉल का क्रिकेट सिर्फ मनोरंजन साबित हो रहा है. भीड़ लगाने के लिए मैचों का आयोजन होता है. फुटबाल व बैडमिंटन तो दूर की बात हो गयी. शिवगंज को छोड़ कर फुटबॉल का आयोजन होता ही नहीं. खेल मैदान की भी कमी है. रंजीत कुमार, खेल प्रेमीवॉलीबॉल व बैडमिंटन का खेल सिर्फ शरीर को चुस्त-दुरूस्त रखने के लिए खेला जा रहा है. इन दोनों खेलों का आयोजन जिले में होता ही नहीं है. साल-दो साल पर हुआ भी तो सिर्फ नाम का. खेल को बढ़ावा देने वाला ही कोई नहीं है. मन्ना गुप्ता, खेल प्रेमीऔरंगाबाद में खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए मैदान ही नहीं है. एक गेट स्कूल का मैदान है तो व्यवस्था नदारद है. गांधी मैदान तो शौचालय का रूप ले लिया है. 15 अगस्त व 26 जनवरी को छोड़ कर यहां कोई आयोजन नहीं होता है. हेमंत कुमार, खेल प्रेमीगांधी मैदान में 10 साल पहले खिलाड़ियों की भीड़ लगी रहती थी. क्रिकेट से लेकर फुटबॉल व कबड्डी में युवा हाथ अजमाते थे. लेकिन अब स्टेडियम के अभाव में सब बरबाद हो गया. जनप्रतिनिधि से लेकर शासन व प्रशासन के पदाधिकारियों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया. गांधी मैदान की चहारदीवारी भी टूट गयी है. यहां सैकड़ों लोग प्रतिदिन खेल के लिए नहीं ब्लकि शौच के लिए पहुंचे हैं.सुमन कुमार,खिलाड़ी————-स्कूलों में खेल कराया जायेगा अनिवार्य जिला खेल पदाधिकारी जय नारायण कुमार ने बताया कि विद्यालयों व महाविद्यालयों में खेलों के प्रति ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अगले वर्ष से प्रत्येक विद्यालयों को खेलों के आयोजन को अनिवार्य कराया जायेगा. शारीरिक शिक्षकों के साथ बैठक कर खेलों को बढ़ावा देने के लिए वार्ता की जायेगी.

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