16वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा से तीन चीज़ें सामने आई हैं.
पहला, आर्थिक साझेदारी पर ज़ोर देते हुए द्विपक्षीय संबंधों को और व्यापक बनाना. दूसरा, भारत-रूस रणनीतिक गठजोड़ में बदलाव करके विक्रेता-ख़रीदार के बजाय रिश्तों को साझेदारी के स्तर पर ले जाना.
तीसरा यह कि विदेश नीति में बदलावों के बावजूद भारत-रूस संबंधों की ख़ासियत को फिर बहाल करना.
जब मोदी रूस दौरे पर जा रहे थे तो कई विशेषज्ञों ने कहा था कि भारत-रूस के रिश्ते में असैन्य या व्यावसायिक संपर्कों के मुक़ाबले राजनीतिक-सामरिक पहलू पर ज़्यादा तवज्जो होती है, इसलिए इसके आधार में कोई दम नहीं है.
इसके बाद नाभिकीय रिएक्टर, सौर ऊर्जा संयंत्र, रेलवे और हेलिकॉप्टर निर्माण जैसे 16 समझौते दिखाते हैं कि मोदी ने इन बातों पर ग़ौर किया था.
द्विपक्षीय व्यापार
हैरानी यह कि भारत-रूस के बीच आर्थिक क्षेत्र में परस्पर निर्भरता की व्यापक गुंजाइश के बावजूद दोनों के बीच व्यापार महज़ 10 अरब डॉलर का है.
रूस आज बेहद दिलचस्प आर्थिक मोड़ पर है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का यह दूसरा साल है. बेहद अहम व्यापारिक साझेदार तुर्की के साथ उसका व्यापार अब तक के सबसे निचले स्तर पर चला गया है.
भारत और रूस अगले 10 साल में अपना व्यापार 30 अरब डॉलर के दायरे तक पहुंचाना चाहते हैं. मोदी ने द्विपक्षीय प्रेस वक्तव्य में कहा भी कि, "मैं भारत के आर्थिक बदलाव में रूस को एक प्रमुख साझेदार की तरह देखता हूँ."
भारत को सबसे पहले देखना होगा कि रूस में ऐसी कितनी संभावनाएं हैं जिन पर पश्चिमी देशों और तुर्की की नज़र नहीं है.
भारत के लिए रूस, मध्य एशिया का मार्ग अहम है. इसी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय-यूरेशियन आर्थिक संघ (ईईयू) और मुक्त व्यापार समझौता (एफ़टीए) की तरफ बढ़ने पर ज़ोर दिया.
ईईयू के अंतर्गत रूस, बेलारूस, आर्मीनिया, किर्गिस्तान और कज़ाकिस्तान आते हैं. ऐसे में भारत और ईईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौते से भारत को 10.80 करोड़ की आबादी वाले बाज़ार में अपनी पहुंच बनाने का मौक़ा मिलता है जिनका संयुक्त जीडीपी अनुमानतः 2.7 ख़रब डॉलर है.
भारत मददगार
रूस आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एशिया का रुख कर रहा है. ऐसे में जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में तेज़ी से उभरता भारत उसके लिए बड़ा मददगार साबित हो सकता है.
विशेषज्ञों की राय में भारत का राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा कोष रूस के अमीर अरबपतियों को बड़े निवेश के मौक़े देता है, जो परंपरागत यूरोपीय वित्तीय बाजार से निकलने में मुश्किलें झेल रहे हैं.
एक साझा बयान में पुतिन ने कहा, "भारत और रूस के बीच सहयोग के लिए तकनीक, नए प्रयोग, ऊर्जा, विमान निर्माण, फ़ार्मा और हीरे जैसे क्षेत्रों में गुंजाइश है."
सम्मेलन में रणनीतिक सहयोग अहम मुद्दा था पर इस बार स्थानीय विनिर्माण पर भी काफ़ी ज़ोर था.
मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना को इस सम्मेलन में तब बड़ा बढ़ावा मिला जब कामोव 226 हेलिकॉप्टरों को भारत में बनाने के लिए दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी.
प्रधानमंत्री का कहना था कि, "मेक इन इंडिया के तहत रक्षा क्षेत्र में यह पहली परियोजना है."
इसके तहत रूस 60 तैयार हेलिकॉप्टर भारत को देगा और 140 हेलिकॉप्टरों का निर्माण भारत में होगा.
‘मेक इन इंडिया’ पर ज़ोर
इसके अलावा भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग और रूसी राज्य परमाणु ऊर्जा निगम मिलकर भारत में 12 परमाणु रिएक्टर बनाएंगे.
विश्लेषकों का कहना है कि द्विपक्षीय शिखर सम्मेलनों की सामान्य रूपरेखा से अलग हटते हुए मोदी ने जानबूझकर अपनी रणनीतिक साझेदारी में निजी क्षेत्र को शामिल किया है.
दरअसल इसके ज़रिये यह तय करना था कि भारत और रूस के बीच क़रार में ‘मेक इन इंडिया’ अहम हिस्सा है.
रक्षा क्षेत्र की कई कंपनियों के सीईओ जिनमें रिलायंस और टाटा भी हैं, प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में मौजूद थे.
मोदी-पुतिन के बीच एक और अहम समझौता हुआ. रिलायंस डिफ़ेंस और वायुरक्षा प्रणाली बनाने वाली रूसी कंपनी एल्माज़-आंते के बीच छह अरब डॉलर का समझौता हुआ.
साथ ही रूस के उद्योग और व्यापार उपमंत्री आंद्रे बोगिन्स्की ने कहा कि रूसी हेलिकॉप्टर और उसके पुर्ज़े बनाने वाली कंपनियां भारत को इससे जुड़े किट्स देने को तैयार हैं, जिससे वहीं उनकी फ़िटिंग हो सके और इसे स्थानीय तौर पर तैयार किया जा सके.
2014 में रूसी सैन्य उपकरणों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत रही, जो 4.7 अरब डॉलर थी.
वहीं टाटा समूह और रूसी कंपनी सुखोई में चर्चा चल रही है कि दोनों भारत में सुखोई लड़ाकू विमान के पुर्ज़े बना सकें. हालांकि रूस अभी भी भारत को अपने अहम एस-400 एयर डिफ़ेंस मिसाइल सिस्टम की तकनीकी जानकारी देने में हिचकिचा रहा है.
अमरीका की ओर झुकाव
तकनीकी जटिलता समझने की भारत की क्षमता को हाल में भारत के रक्षा गठजोड़ों में विविधता लाने की बड़ी वजह मानी जा सकती है और इसीलिए रक्षा साझेदारी में ख़ासकर अमरीका की ओर झुकाव बढ़ रहा है.
वहीं रूस और पाकिस्तान के बीच बढ़ती रक्षा साझेदारी भी भारत को रास नहीं आ रही.
हालांकि दोनों देशों ने दोतरफ़ा उम्मीदों की ओर इशारा करते हुए संकेत दिए कि दोनों संतुलन बनाए रखेंगे और एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील होंगे क्योंकि वे भू-राजनीतिक स्थितियों में बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं.
पुतिन में भी अपने बयान में कहा, "भारत एक बड़ी शक्ति है जो संतुलित और जवाबदेह विदेश नीति को बढ़ावा देता है."
आने वाला साल भारत और रूस के बीच 2015 से ज़्यादा गर्मजोशी लेकर आएगा क्योंकि कई घोषित बड़े क़रारों पर काम होगा, जिनमें एस-400 भी शामिल है.
फ़िलहाल यह कहने की ज़रूरत नहीं कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों का आधार हमेशा रक्षा सौदे ही रहेंगे.
जैसे-जैसे भारत चीज़ों की आपूर्ति का आधार बन रहा है, वैसे-वैसे वह पहले के मुक़ाबले तकनीक हस्तांतरण और सह-उत्पादन के मामले में बेहतर समझौते कर सकता है.
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