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नेपाल में उग्र हुआ मधेशी आंदोलन

नेपाल में उग्र हुआ मधेशी आंदोलन -मधेशी आंदोलन के अंत का इंतजार कर रहे हैं पर्यटक – नेपाल के खाद्य संकट पर संयुक्त राष्ट्र खाद्य कार्यक्रम में भी की गयी है चिंता व्यक्त प्रतिनिधि, अररिया मधेशी आंदोलन की आग में जल रहे नेपाल के सामने इस समय खाद्यान्न संकट से उबरने की है. नेपाल के […]

नेपाल में उग्र हुआ मधेशी आंदोलन -मधेशी आंदोलन के अंत का इंतजार कर रहे हैं पर्यटक – नेपाल के खाद्य संकट पर संयुक्त राष्ट्र खाद्य कार्यक्रम में भी की गयी है चिंता व्यक्त प्रतिनिधि, अररिया मधेशी आंदोलन की आग में जल रहे नेपाल के सामने इस समय खाद्यान्न संकट से उबरने की है. नेपाल के सीमा क्षेत्र में रहने वाले लोग हों या फिर नेपाल के पहाड़ों में बसने वाले नेपाली मूल के नागरिकों के लिए पेट्रोलियम पदार्थ, एलपीजी, दवाई आदि की आपूर्ति कुछ सीमा क्षेत्रों से हो पा रही है. लेकिन चार माह से मधेशी आंदोलन के कारण सीमा चौकियों पर आंदोलनकारियों द्वारा की गयी आर्थिक नाकांबदी का असर नेपाल की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से नुकसान पहुंचा चुकी है. आर्थिक नाकाबंदी के कारण प्राप्त आंकड़ों के अनुसार नेपाल सरकार को अब तक 135 से 140 अरब का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है. नेपाल में 128 दिनों से जारी मधेशी आंदोलन की आग में हिमालय की गोद में बसा नेपाल धधक रहा है. मधेशी आंदोलन के कारण अब तक 45 व्यक्तियों की मौत होने की बात भी कही जा रही है. जबकि सैकड़ों आंदोलनकारी जख्मी हैं. नेपाल से सीमा क्षेत्र जोगबनी के रानी में आंदोलनकारियों व नेपाल पुलिस के बीच रविवार के झड़प के बाद स्थिति एक बार फिर अनियंत्रित होती जा रही है. जबकि नेपाल के वीरगंज के पास स्थित रौतहट के गौर में एक 17 वर्षीय छात्र शेख परवेज आलम की मौत व 25 प्रदर्शनकारियों के घायल होने की सूचना के बाद जोगबनी सीमा पर भी मधेशी आंदोलन कारी उग्र हो गये हैं. इधर आंदोलन का खामियाजा अगर नेपाल की जनता को उठाना पड़ रहा है तो विदेशी पर्यटक भी मधेश की आंदोलन से कम दु:खी नहीं है. तिथि की ऐर- फेर में नव वर्ष आने में अब मात्र दस दिनों कर इंतजार ही शेष है. लेकिन नववर्ष में नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र पिकनिक मनाने व नेपाल के भूमि पर अवस्थित अनेक तीर्थ की यात्रा पाले तीर्थयात्रियों को नेपाल में चल रहे आंदोलन का गम साल रहा है. नेपाल का भेड़ेटार, जनकपुर, धरान, चतरा गद्दी, मुगलिंग पहाड़ पर बसा मनोकामना मंदिर, द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक पशुपतिनाथ मंदिर, भगवान बुद्ध का लुंबनी, पोखरा की हसीन वादी, पोखरा के गुफाओं में छिपे कई रहस्य दर्शकों को बरबस ही अपने और आकर्षित करता है. लेकिन नेपाल में मेधशियों के द्वारा जारी आंदोलन व नेपाल के पहाड़ों पर खाद्य व अन्य संकट लोगों को नेपाल पर्यटन पर जाने से भयभीत कर रहा है. नेपाल में जारी संकट पर एक नजर दिया जाय तो यह पता नहीं चल पा रहा है कि आखिर मधेशी व सरकार के बीच की दूरी कब तक समाप्त होगी.सुगौली संधि का हिस्सा है मधेशी नेपाल की जनसंख्या दो करोड़ 60 लाख है. इसमें मधेशियों की संख्या 52 लाख है. सुगौली संधि के तहत गंगा मैदान के फैलाव में रहने वाली यह आबादी नेपाल का हिस्सा है. मधेशी सिर्फ नेपाल में हैं. भारत के सीमा के साथ होने के कारण मधेशियों का रहन सहन तौर तरीका और शक्लो-सूरत नेपाल से कम और उत्तर प्रदेश व बिहार के लोगों से ज्यादा मेल खाती है. इस आबादी का रिश्ता भी वर्षों से बिहार व उत्तर प्रदेश के सीमा क्षेत्र में बहू बेटी का चलता आ रहा है. नेपाल के मेची से महाकाली तक सुगौली संधि के बाद जो इलाके इस्ट इंडिया कंपनी ने 1875 के विद्रोह में गुरखालियों को मदद के लिए दिये थे वो आज का मधेश क्षेत्र है. मधेशियों का आरोप है कि उन्हें कभी भी नेपाल ने अपना नहीं माना है. हमेशा भारतीय बता कर पक्षपात किया गया है. मौजूदा संविधान इसका स्पष्ट उदाहरण है. लेकिन नेपाल सरकार यह कहती आ रही कि मधेशी उनके लिए पराये नहीं हैं. लंबे इंतजार के बाद नेपाल में लागू हुआ संविधान नेपाल में 20 सितंबर 2015 को संविधान लागू हुआ. संविधान निर्माण की प्रक्रिया में संविधान सभा में 90 फीसदी मतों से मंजूरी दी थी. जबकि तराई क्षेत्र के 69 प्रतिशत सदस्यों ने संविधान बनाने की प्रक्रिया का बहिष्कार किया था. नए संविधान में 35 खंड, 308 अनुच्छेद और नौ अनुसुचियां हैं. जानकारी अनुसार संविधान सभा के बैठक में सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र नेमबांग ने नए संविधान के अनुच्छेद 296 के तहत सभा को भंग करने की घोषणा की. सभा को भंग करने से पूर्व नेमबांग ने नए संविधान की विशेषताओं का जिक्र किया. संविधान निर्माण को लेकर लंबी लड़ाई के बीच वर्ष 2008 में माओवादियों ने संविधान सभा का चुनाव जीत कर देश से राजशाही का खात्मा किया था. लेकिन संविधान सभा नया संविधान बनाने में नाकाम रहा थी. इसके बाद से नया संविधान बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई और काफी जद्दोजहद के बाद नए संविधान का निर्माण किया गया. मधेशी को चाहिए सामान अधिकारनये संविधान का विरोध कर रहे मधेशी को देश को सात प्रांतों में बांटा जाना नागवार है. यह संप्रदाय नेपाल में तीन प्रमुख मांगों के साथ आंदोलन को चार माह से निरंतर गति प्रदान किये हुए है. इसके तहत सीमा का पूर्ण निर्धारण, आनुपातिक प्रतिनिधित्व शामिल किया जाय, और आबादी के आधार पर सांसद सीटों का आवंटन किया जाय. नये संविधान का विरोध कर रहे मधेशियों की संख्या नेपाल में 52 फिसदी है. जबकि नेपाल के सांसद में मधेशियों को मात्र 65 सीटें दी गई हैं और अन्य को एक सौ सीटें दी गई हैं. मधेशी चाहते हैं कि देश के अंदर की यह असमानता समाप्त हो. मधेशी नेताओं का कहना है कि नए संविधान चीन की सीमा से भारत की सीमा तक लंबे- लंबे प्रदेशों का सीमांकन ठीक नहीं है. नए संविधान में नागरिकता को लेकर भी मधेशी चिंतित हैं. उनका कहना है कि नये नियम के अनुसार भारत से जाने वाली बहुओं को 15 साल के बाद ही वहां की नागरिकता मिलेगी. जबकि उनके बाल बच्चों को नेपाल के उच्च पदों पर जाने नहीं दिया जायेगा. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम में नेपाल के खाद्य संकट पर जतायी है चिंता बरसों के राजनैतिक उथल- पुथल और हिंसक संघर्षों के बाद नेपाल में नया संविधान में लागू तो हो गया. लेकिन इस संविधान ने न केवल नेपाल की चिंता को बढ़ाने का काम किया है जबकि भारत की चिंता को भी बढ़ा दिया है. नेपाल की दो तिहाई आबादी में मधेशी और जन जाति आदिवासी आते हैं. अब तक के प्रदर्शनों में लगभग 45 लोगों की जान जा चुकी हैं. भारत से आयात में मधेशी आंदोलन कारियों द्वारा बाधा पहुंचाये जाने के कारण नेपाल में खाद्य सामग्रियों की कीमतें बढ़ गयी हैं. ईंधन की कमी भी नेपाल के लिए घोर चिंता का विषय है. परिणाम स्वरूप नेपाल में आवश्यक वस्तुओं की कमी की मार से गुजरना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भारत के साथ लगती दक्षिण सीमा में आयात पर जारी बड़ी बाधा के संबंध में चेताया भी है कि सीमा का विवाद अगर सुलझाया नहीं गया तो नेपाल को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है. एशिया व प्रशांत के लिए डब्ल्यूएफपी के क्षेत्रीय निदेशक डेविड काटरड ने एक बयान में कहा है कि यदि व्यापार बाधित रहा और खाद्य सामग्री की कीमत बढ़ती रही तो नेपाल में एक गंभीर मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है.

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