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अयोध्या मुद्दे के हल के लिए अनोखा अभियान

अयोध्या : अयोध्या मुद्दे के राजनीति और कानूनी गलियारे में फंसने के बीच उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश इस मुद्दे के शांतिपूर्ण हल के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने दावा किया कि उन्हें 7,000 से अधिक स्थानीय लोग…हिंदू और मुसलमान, दोनों का ही समर्थन मिला है. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) […]

अयोध्या : अयोध्या मुद्दे के राजनीति और कानूनी गलियारे में फंसने के बीच उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश इस मुद्दे के शांतिपूर्ण हल के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने दावा किया कि उन्हें 7,000 से अधिक स्थानीय लोग…हिंदू और मुसलमान, दोनों का ही समर्थन मिला है. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) पलक बसु वार्ता प्रक्रिया का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अयोध्या और फैजाबाद के 7,000 से अधिक लोग एक याचिका पर हस्ताक्षर कर उनके प्रस्ताव के लिए राजी हुए हैं.

बसु और उनकी टीम द्वारा प्रस्तावित फार्मूला यह है कि रामजन्म भूमि: बाबरी मस्जिद के विवादित क्षेत्र में एक राम मंदिर और एक मस्जिद, दोनों ही हो. हालांकि, इस मस्जिद का नाम मुगल शासक बाबर के नाम पर नहीं होगा. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश उच्च न्यायालय द्वारा विवादित स्थल को तीन भागों में बांटे जाने से छह महीने पहले 18 मार्च 2010 से ही इस कोशिश का नेतृत्व कर रहे हैं.

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बसु और उनकी टीम अयोध्या और फैजाबाद शहरों में हस्ताक्षर अभियान चला रही है जिसका लक्ष्य समान अनुपात में मुसलमानों और हिंदुओं का 10,000 हस्ताक्षर पाना है. बसु ने बताया कि वे लोग 7,000 हस्ताक्षर के आंकडे को पार गए हैं.

10,000 हस्ताक्षर पाने के बाद बसु और उनकी टीम सरकार के जरिए उच्चतम न्यायालय जाएगी और शीर्ष न्यायालय से शांति एवं सौहार्द के लिए जन भावना का सम्मान करने की अपील करेगी. निर्मोही अखाडा के काउंसल और अब बसु की टीम के मुख्य सदस्यों में शामिल रंजीत लाल वर्मा ने कहा, ‘‘पहली चीज शांति है और आखिरी चीज भी शांति है. हमने पिछले 60 से 70 बरसों में अयोध्या मुद्दे पर खून खराबा देखा है. इसलिए हमें इस शांति प्रक्रिया के लिए अवश्य ही एकजुट होना चाहिए.”

टीम के सदस्य और स्थानीय नेता अफजल अहमद खान ने बताया, ‘‘10,000 हस्ताक्षर पाने के बाद, हम इस वार्ता प्रक्रिया को अधिकृत व्यक्ति के जरिए उच्चतम न्यायालय में ले जाएंगे, हमें उम्मीद है कि शीर्ष न्यायालय शांति और सौहार्दपूर्ण जन भावनाओं का सम्मान करेगा.” खान ने कहा, ‘‘जब से यह मुद्दा उठा है हमारा हमेशा ही यह विचार रहा है कि किसी भी तरह से इसका अवश्य ही हल होना चाहिए. लेकिन नेताओं ने अपने वोट बैंक की खातिर इस मुद्दे का इस्तेमाल किया, अब यह शांतिपूर्ण समाज के लिए कैंसर बन गया है. इसे अवश्य ही खत्म करना होगा.”

बसु की टीम के एक मुख्य सदस्य और क्षेत्रीय भाषा के अखबार के पत्रकार मंजर महदी ने कहा, ‘‘यह जरुरी है कि शांति और साम्प्रदायिक सौहार्द कायम हो. हम इस वार्ता प्रक्रिया के जरिए दोनों समुदायों के बहुसंख्यक लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.” गौरतलब है कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक विशेष पूर्ण पीठ ने फैसला सुनाया था कि विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटा जाए. हालांकि बाद में उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश को रोक दिया.

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