मेडिकल कचरा. 15 नवंबर तक इन्सीनरेटर में ही डिस्पोज करना था, पर अब तक नहीं हुआ
आनंद तिवारी
पटना : राजधानी के लोग मेडिकल वेस्ट से होनेवाले संक्रमण और बीमारियों की जद में हैं. मुख्य वजह है, इस कचरे का पुख्ता निबटान न होना. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार शहर के सरकारी अस्पतालों से निकलनेवाले हर माह 16 क्विंटल से अधिक मेडिकल वेस्ट में से पांच क्विंटल का ही निबटान हो पाता है. रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी अस्पतालों का कचरा 15 नवंबर तक इन्सीनरेटर में ही डिस्पोजकरने के आदेश दिये थे, लेकिन दिसंबर खत्म होने को है, कोई कार्रवाई नहीं की गयी है.
ऐसे में आशंका है कि बचा हुआ मेडिकल वेस्ट नालों में बहाया जा रहा है ओर वेस्ट डंपिंग पीएमसीएच या आइजीआइएमएस में जा रहा है. खुले में होने की वजह से इससे नयी बीमारियों और संक्रमण का खतराबढ़ रहा है.
यह है अपने प्रदेश की स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल स्तर पर करीब 2500 अस्पताल हैं. इन सभी वार्डों में 67 हजार बेड हैं, जिन पर हमेशा 21 हजार मरीज भरती रहते हैं.
इन मरीजों के इलाज में उपयोग होनेवाले कॉटन, बैंडेज, आइवी फ्लूड बॉटल, सिरिंज, इंजेक्शन आदि मिला कर कुल 120 क्विंटल कचरे निकलते हैं. इनमें से 22 क्विंटल कचरे ही इन्सीनरेटर में पहुंच पाते हैं. वहीं अस्पतालों की खाली पड़ी जमीन पर दफन किया जाता है. कचरे में शामिल कॉटन, बैंडेज और बॉडी पार्ट एक से दो दिन में नष्ट हो जाते हैं. लेकिन आइवी फ्लुड की बाॅटल, सीरिंज, निडिल सहित सर्जिकल आइटम नष्ट नहीं होते हैं. इससे मिट्टी प्रदूषित हो जाती है, जिससे बारिश में संक्रमण का खतरा बन जाता है.
इन्सीनरेटर कम
गौरतलब है कि पीएमसीएच और आइजीआइएमएस महज दो अस्पतालों मेंही इन्सीनरेटर की सुविधा दी गयी है. पीएमसीएच में तो खुद अपने विभाग का कचरा डंप होता है.
इससे ज्यादा क्षमता का इन्सीनरेटर आइजीआइएमएस में है, जो अपने अस्पताल का ही नहीं, बल्कि शहर के सभी सरकारी अस्पतालों के कचरों को नष्ट कर सकता है. लेकिन हकीकत यही है कि यहां प्राइवेट अस्पतालों के कचरे भी जमा होते हैं. नतीजा यहां मेडिकल कचरा हमेशा खुले में रहता है. प्राइवेट या अन्य सरकारी अस्पतालों में इन्सीनरेटर नहीं होने से यह समस्या आ रही है.
एम्स में नहीं लगा बायोगैस प्लांट
एम्स पटना में इन्सीनरेटर के बजाय अपना कचरा भस्म करने के लिए एवलुएंट और बायोगैस प्लांट लगाने की योजना बनायी गयी थी. इसके तहत अस्पतालों से निकलने वाले कॉटन, बैंडेज, प्लास्टर जैसे ऑर्गेनिक कचरे को एवलुएंट ट्रीटमेंट प्लांट में स्टोर करने के बाद कचरे को बायो गैस प्लांट के टैंक में गोबर व मिट्टी के साथ मिलाना है. इससे बनी बायो गैस एम्स के किचन में सप्लाइ होगी. करीब 150 बेड वाले अस्पताल से रोजाना एक क्विंटल जैविक निकलने का दावा था. लेकिन योजना अभी भी अधर में ही है.
इन्सीनरेटर खोलने के दावे फेल
सूत्रों के अनुसार शहर व प्रदेश के सभी बड़े अस्पतालों में होनेवाले बायोमेडिकल वेस्ट के निबटान के लिए 10 नये इन्सीनरेटर खोलने की बात कही गयी है. ये इन्सीनरेटर प्राइवेट हॉस्पिटलों, नर्सिंग होम्स संचालक आपस में एक सोसाइटी बना कर खोलेंगे. लेकिन, अभी तक इस योजना पर अमल नहीं किया गया. नतीजा मेडिकल कचरा जमा होता जा रहा है.
कचरे में बीन रहे मौत
उपयोग में लायी जा चुकी िसरिंज, प्लास्टिक की सीसी आदि कचरे के डब्बे से बीन कर कबाड़ में बेचकर थोड़े से पैसे कमाने की चाहत में गरीब बच्चे जानलेवा बीमारी को हाथ लगा बैठते हैं. नशे का इनजेक्शन लगाने वाले तो संक्रमित सिरिंज का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे एचआइवी से ग्रसित हो जाते हैं. लेकिन, इस भयावह स्थिति की तरफ किसी का ध्यान भी नहीं जाता है.
अस्पताल दिखा रहे कानून को ठेंगा
बायो मेडिकल वेस्टेज का प्राॅपर निस्तारण न करना कानूनन अपराध है. बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट आॅफ हैंडलिंग रूल्स 98 के तहत बायो मेडिकल वेस्टेज इधर-उधर फेंकना गैर कानूनी है.
बायो मेडिकल वेस्टेज का प्रापर डिस्पोजल न कर सार्वजनिक स्थान पर फेंकना म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन एक्ट, पुलिस एक्ट 69 की धारा 34, इंवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 86 की धारा 15 का भी उल्लंघन है. इस अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर आरोपित को पांच साल तक की सजा का भी प्रावधान है. इन सबके बावजूद निजी और सरकारी अस्पतालों में कानून को ताख पर रख कर काम किया जा रहा है और ये कचरे लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं.
क्या कहते हैं जिम्मेवार
मेडिकल नर्सिंग होम से कचरा कलेक्ट कर जलाने का जिम्मा आइजीआइएमएस को है, लेकिन कचरे का निबटान क्यों नहीं हो रहा है, इस पर मैं इसके जिम्मेदार अधिकारी से बात करता हूं, अगर दोषी पाये गये तो कार्रवाई होगी.
प्रो सुभाष, चेयरमैन, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
कचरा प्रबंधन अनिवार्य है. इसके नहीं होने से कई तरह की संक्रामक बीमारियां होती हैं. इसके लिए चाहिए कि हर बड़े अस्पतालों व नर्सिंग होम में इन्सीनरेटर की व्यवस्था हो. वहीं इन्सीनरेटर होने के बाद भी अगर कचरा नहीं उठा रहा है, तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई करे.
डा सुनील सिंह, सदस्य शासकीय निकाय, आइजीआइएमएस
जो पदार्थ संक्रामक होते हैं, उन्हें जलाया जाता है. जो संक्रामक नहीं होते हैं, जैसे कागज उन्हें फिर से रीसाइकिल करके उपयोग कर लेते हैं. आजकल बड़े शहरों में कुछ एजेंसियां हर माह अस्पतालों से बायो मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करके ले जाती हैं और उसी हिसाब से उनसे पैसे लेती हैं. इन एजेंसियों ने इस तरह के वेस्ट को ट्रीट करने के लिए अलग से प्लांट लगा रखे हैं, इन सभी को वहीं पर इकट्ठा करने के बाद उसे ट्रीट किया जाता है.
अवशिष्ट पदार्थों को अस्पताल के अंदर और बाहर ले जाया जाता है. जो कर्मचारी ये काम करते हैं वे अपने हाथ में दस्ताने पहनते हैं और ये ध्यान रखा जाता है कि ये पदार्थ ट्रोली से बाहर न फैलें. ऐसी गाड़ियों में साधारण कूड़ा नहीं रखा जाता है.