अंतस्थल में बसी विश्व संस्कृति की माता सीताफोटो दीपकविवाह पंचमी पर तिरहुत महोत्सव समिति की ओर से सेमिनार का आयेाजनवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर . विवाह पंचमी के मौके पर बुधवार को नवयुवक समिति ट्रस्ट में बज्जिकांचल क्षेत्र के लोकजीवन पर प्रभाव विषयक गोष्ठी आयोजित की गयी. तिरहुत सांस्कृतिक महोत्सव के बैनर तले हुए कार्यक्रम का शुभारंभ नागेंद्र नाथ ओझा ने गीत प्रस्तुत कर किया. मां सीता की धरती है यह, तिरहुत इसका नाम, इसी धरा पर ब्याह रचाने आये थे श्रीराम, अरे यह धन्य है तिरहुत धाम गीत सुना कर लोगों की खूब तालियां बटोरी. कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद महोत्सव समिति के अध्यक्ष डॉ शिवदास पांडेय ने कहा कि प्रशासनिक तिरहुत का केंद्र आज भले ही मुजफ्फरपुर हो, लेकिन इसका सांस्कृतिक प्रक्षेत्र पूर्व तिरहुत सूबा बिहार है, जो गंडकी, गंगा व कोसी से घिरा है. डॉ अवधेश्वर अरुण ने कहा कि यह कृषि प्रधान देश वैदिक काल से रहा है. यह ईसा से करीब 750 वर्ष पूर्व से तिरहुत के नाम से जाना जाता है. राजा जनक के पराभव के साथ यह क्षेत्र वैशाली गणराज्य के अधीन आ गया. इस कारण इस क्षेत्र का नाम नई परगना विसारा है, जो विशाला का अपभ्रंश है. पूर्व विधायक केदारनाथ प्रसाद ने कहा कि आज भले ही सीता की जन्म स्थली प्रशासनिक क्षेत्र में नहीं आता हो, लेकिन उनके पुत्र लव कुश की जन्मभूमि आज भी है. अध्यक्षता करते हुए पशुपति कुमार शर्मा ने कहा कि सीता ही विश्व संस्कृति की माता है. इसका प्रभाव अंतरस्थल व धरती दोनों में है.कार्यक्रम में पर्यावरणविद् सुरेश गुप्ता, अरुण शुक्ला, मीरा झा, मुन्नी चौधरी सहित कई लोग मौजूद थे. संचालन यशवंत कुमार व धन्यवाद ज्ञापन रणवीर अभिमन्यु ने किया.
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अंतस्थल में बसी वश्वि संस्कृति की माता सीता
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