नयी दिल्ली : न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली में सुधार की खातिर कई दिशा निर्देश सुझाते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि केंद्र और राज्यों के विचारों का ध्यान रखा जाना चाहिए. अदालत ने सरकार से कहा कि वह पारदर्शिता लाने के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश के विचार-विमर्श से प्रक्रिया का ज्ञापन (एमओपी) तैयार करें.
न्यायामूर्ति जे. एस. केहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने केंद्र से कहा कि योग्यता, पारदर्शिता, न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सचिवालय का गठन, शिकायतों का निपटारा और न्यायाधीशों की नियुक्ति में एमओपी के अन्य मुद्दों पर गौर करे.
पीठ ने कहा कि उच्चर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर एमओपी को अंतिम रुप भारत के प्रधान न्यायाधीश की सलाह से दिया जाना चाहिए जो हमारे वरिष्ठ न्यायाधीशों वाली कॉलेजियम में पूरी तरह आम सहमति के साथ निर्णय करेंगे.
पीठ ने कहा कि योग्यता के मानदंड पर गौर करते समय एमओपी को न्यूनतम उम्र का भी जिक्र करना चाहिए जो कॉलेजियम के दिशानिर्देश के तौर पर काम करेगा और राज्य सरकारों तथा केंद को इसका ध्यान रखना चाहिए। पीठ में न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, एम. बी. लोकुर, कुरियन जोसफ और ए. के. गोयल भी हैं.
पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति में पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. इसने कहा कि नियुक्ति की प्रक्रिया में इसे दिखना चाहिए और जुडा हर पहलू विधि और न्याय मंत्रालय की वेबसाइट तथा संबंधित उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर होना चाहिए.
पीठ ने कहा कि चर्चा और विचार-विमर्श की बातों को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए और अगर कोई असहमति है तो उसे भी रिकॉर्ड किया जाना चाहिए लेकिन पारदर्शिता को गोपनीयता की जरूरत के साथ संतुलित किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि एमओपी में हर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के सचिवालय के गठन पर विचार किया जाना चाहिए ताकि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम का बेहतर प्रबंधन और कार्यप्रणाली सुनिश्चित हो सके.इसने कहा कि एमओपी में उपयुक्त शिकायत प्रणाली होना चाहिए.पीठ ने कहा कि ये दिशानिर्देश इसके समक्ष दिये गये प्रतिवेदन के मद्देनजर व्यापक सुझाव हैं.
महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी के प्रतिवेदन पर गौर करने के बाद अदालत ने ये आदेश पारित किए। रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार प्रधान न्यायाधीश से विचार विमर्श कर एमओपी को अंतिम रुप देगी.न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत 1993 में हुई थी और हाल में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा केंद्र के कानून नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन एक्ट को खारिज करने के बाद इसे बहाल किया गया.
न्यायमूर्ति जे. एस. केहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली के सुधार पर विभिन्न वकीलों, बार संगठनों के सुझाव सुनने के बाद 19 नवम्बर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.केंद्र ने मसौदा एमओपी तैयार करने में अक्षमता जताई थी। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया था कि मुद्दे पर सभी सुझावों को देखने के बाद मसौदा एमओपी तैयार की जाये जिस पर केंद्र का यह जवाब आया था.
कई वकीलों ने कल सुझाव दिए थे जिसमें ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के लिए इस आधार पर आरक्षण की वकालत की कि अगर दूसरे क्षेत्र उनके लिए खुले हैं तो न्यायपालिका को ‘‘अछूता’ नहीं रहना चाहिए.