ये बात हैरान करने वाली है कि आप पढ़े-लिखें नहीं है लेकिन स्मार्ट फोनधारी है और किसी अन्य जरूरत से ज्यादा जरुरी आपको फ़ोन इस्तेमाल करना अधिक प्यारा है. यह चलन पिछले कुछ सालों से तेज़ी से हमारे समाज में बढ़ा है. यह टेक्नोलॉजी प्रेमी पीढ़ी है जिसे फ़ोन, लेपटॉप, टेबलेट और अन्य गैजेट्स इस्तेमाल करना जीवन जीने के लिए सबसे उपयोगी लगता है. हालाकि यह बुरा नहीं है लेकिन यह अच्छा भी नहीं है. आइए जानते है कैसे?
देर रात तक यदि आपका बच्चा और आप खुद, पढ़ नही रहें होंगे तो जरुर बंद लाइट में अपने फ़ोन के साथ व्यस्त होगें. बदलते दौर में मोबाइल फोन जरूरत है लेकिन इसके दुष्प्रभावों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. अधिकांश लोग इसके दुष्प्रभावों से अनजान हैं.
जी हां, आपका शरीर तकनीकी के लिहाज से खुद को बदल तो रहा है, पर इससे दिक्कतें भी बढ़ रही हैं. रात भर फोन और बाकी गैजेट्स का इस्तेमाल हमें प्राकृतिक रोशनी की जगह कृत्रिम रोशनी में जीने के आदी बना रहा है जो चिंता का कारण है.
हालिया हुए एक शोध के अनुसार, हम जिस कृत्रिम रोशनी में जीते हुए रात गुजार देते हैं. वो रोशनी मेलाटॉनिन के उत्पादन को प्रभावित कर रही है, जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक है.
हमारे शरीर में मेलाटॉनिन, कैंसर जैसे रोगों का प्रतिरोधक होता है. पर शरीर में मेलाटॉनिन का गिरता स्तर शरीर के सेल्स को नुकसान पहुंचाता है. जिसके कारण कैंसर, हृदय संबंधित रोगों और पाचन संबंधी रोग होने की संभावनाएं तेज़ी से बढ़ती हैं.
ऐसे में जरूरी है, शरीर को पर्याप्त आराम. ताकि मेलाटॉनिन का उत्पादन शरीर अपने हिसाब से कर सके. जिसके लिए जरूरी है कृत्रिम रोशनी से दूरी बनाना. यानी अपने तमाम फ़ोन, लेपटॉप और गजेट्स को बाय कहना.
इसके अलावा ये भी कर सकते हैं…
-अपने कमरे से कृत्रिम रोशनी को दूर रखें.
-हो सके, तो लाल रंग की हल्की रोशनी में जागें. यह मेलाटॉनिन के उत्पादन को रोकती नहीं है.
यह शोध बताता है कि सोने के 2 घंटे पहले ही गैजेट्स से दूरी बना लेना ठीक होता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि मेलाटॉनिन के उत्पादन के लिए दिन का समय है. सूर्य की तेज़
रोशनी आपको दुरुस्त रखेगी. प्रकृति हमारा ख्याल रखेगी, जरूरत है तो खुद को उसके लिए तैयार रखने की.