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राष्ट्रीय लोक अदालत में नहीं दिखा बैंकों के समझौते का स्पष्ट एजेंडा

राष्ट्रीय लोक अदालत में नहीं दिखा बैंकों के समझौते का स्पष्ट एजेंडा फोटो नं. 8 कैप्सन-लोक अदालत में बैंक से संबंधित मामलों को लेकर पहुंचे लोग. प्रतिनिधि, कटिहार शनिवार को देश भर में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया. इसमें बड़ी संख्या में विभिन्न राष्ट्रीयकृत बैंकों के ऋणधारियों को समझौते के आधार पर अपने […]

राष्ट्रीय लोक अदालत में नहीं दिखा बैंकों के समझौते का स्पष्ट एजेंडा फोटो नं. 8 कैप्सन-लोक अदालत में बैंक से संबंधित मामलों को लेकर पहुंचे लोग. प्रतिनिधि, कटिहार शनिवार को देश भर में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया. इसमें बड़ी संख्या में विभिन्न राष्ट्रीयकृत बैंकों के ऋणधारियों को समझौते के आधार पर अपने ऋण का भुगतान करने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकार की ओर से नोटिस जारी किया गया. इसमें हजारों की संख्या में ऋण धारकों को समझौते के आधार पर ऋण भुगतान के लिए नोटिस जारी किया गया. व्यवहार न्यायालय में राष्ट्रीय लोक अदालत में उपस्थित हुए ऋण धारकों और बैंकरों के बीच जिस प्रकार की खींचा-तानी, बैंक पदाधिकारियों की हठधर्मिता देखी गयी. इससे ऐसा लगता था कि मानो बैंक पदाधिकारी थाने की पुलिस पदाधिकारी जैसी हरकतें कर रहे थे व ऋण धारक को बैंक पदाधिकारी ने अभियुक्त की श्रेणी में ला खड़ा किया था.बैंकों के समझौते के एजेंडे की जानकारी आम लोगों को नहींराष्ट्रीय लोक अदालत के आयोजन के पूर्व जिला विधिक सेवा प्राधिकार की ओर से बैंक पदाधिकारियों के साथ कई बैठकें की जाती है. इसमें प्राधिकार की ओर से बार-बार यह स्पष्ट निर्देश दिया जाता है कि बैंक ऋण समझौते के वास्ते बैंक पदाधिकारी जिस एजेंडा के साथ लोक अदालत की तिथि को उपस्थित होंगे. उसकी जानकारी आम लोगों को निश्चित रूप से हो ताकि ऋण धारक पैसे की व्यवस्था कर सके अथवा समझौता के लिए स्वयं को वह तैयार होकर आवे. दरअसल, बैंक पदाधिकारी जिस एजेंडा के साथ आते हैं, उसे आम ऋण धारकों को नहीं बताया जाता है या उस एजेंडा का डिसप्ले भी नहीं किया जाता है. इस तरह बैंक हमेशा ऋण धारकों से सब्जी खरीदने जैसी तोल-मोल के भाव में ऋण धारकों से समझौता करना चाहते हैं और इसी जाल में ऋण धारकों से बैंक धोखा-धड़ी से ज्यादा पैसा वसूली कर लेते हैं. बैंक नहीं करना चाहती खातों को एनपीए घोषितशनिवार को हुए लोक अदालत में ज्यादातर बैंक पदाधिकारी अधिवक्ताओं से ऋण धारकों से दूरी बनाये रखने की नसीहत देते व्यवहार न्यायालय में देखे गये. दरअसल, अधिवक्ता ऋण धारकों के हित में समझौते का एजेंडा स्पष्ट करने तथा ऋण धारकों के अकाउंट के एनपीए होने की बात पर कानूनी पक्ष रखने की बात करते हैं. जो कि बैंक पदाधिकारियों को ना-गवार लगता है. चूंकि ऐसा देखा गया है कि ऋण धारक के खातों को बैंक एनपीए घोषित नहीं करना चाहती एवं सूद-दर-सूद प्रत्येक माह जोड़ते जाती है. जबकि इस मामले के जानकार अधिवक्ता सुमन कुमार झा का कहना है कि ऋण धारक के खातों में लगातार नौ माह तक यदि किसी भी प्रकार का समव्यवहार नहीं होता है तो आरबीआइ के गाइड लाइन के अनुसार बैंक को उस खाते को एनपीए घोषित कर देना चाहिए एवं ब्याज की राशि नहीं जोड़ी जानी चाहिए. ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं कि बैंक के पदाधिकारी ऋण धारकों के साथ मीठी-मीठी बात कर अकाउंट में कुछ रुपये डलवा देते हैं ताकि उसे एनपीए घोषित नहीं किया जाये. आम लोग बैंक के इस खेल को नहीं समझ पाते हैं कि नौ माह तक लगातार रुपया नहीं जमा करने के बाद ऋण खाते में सूद की राशि नहीं जोड़ी जा सकती. लेकिन कुछ रुपये डालने के बाद ऋण धारक अपने उक्त अधिकार को खो देते हैं और उस राशि को बैंक अपने ब्याज में जोड़ देती है. खाते को रोके जाने की जगह रुपये जमा करवा कर ऋण धारक से खाते को नियमित करने का खेल आम लोगों को उल्लू बना कर अब भी जारी रखा जा रहा है. जिसका विरोध अधिवक्ता वर्ग लगातार करते हैं. इस कारण बैंक के पदाधिकारी ऋण समझौते मामले में अधिवक्ताओं का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते हैं. बैंक में बिचौलिया हावीबिचौलिया बैंक के ऋण दिलवाने व वसूली में किस तरह हावी है. इसका सीधा-साधा जागता उदाहरण शनिवार को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत के दिन स्पष्ट रूप से देखा गया. बैंक के पदाधिकारियों एवं बिचौलियों का संबंध जीजा-साला का रिश्ता बन कर रह गया है. बिचौलिया गरीब तबके के लोगों को लोन का सपना दिखा कर एवं अमीर बनने का रास्ता बता कर 30-50 प्रतिशत तक की राशि उसके ऋण से उगाही करते हैं. एक समय जब ऐसा आता है कि गरीब लोग को यह पता चलता है कि उसकी राशि उसके खाते से बिचौलिया द्वारा निकाल ली गयी है. तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और ब्याज की राशि उनके माथे इस कदर हावी हो जाती है कि उसका जीवन जीना मुश्किल हो जाता है. बहरहाल जो भी हो लोगों को ऋण लेने के पूर्व यह जरूर समझ लेना चाहिए कि यदि उन्हें ऋण की आवश्यकता हो तो ऋण लें अथवा दलाल के चक्कर में न पड़ें. कहते हैं प्राधिकार के सचिव सह अवर न्यायाधीश जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव सह अवर न्यायाधीश प्रथम शशिधर विश्वकर्मा का कहना है कि लोक अदालत में समझौते के आधार पर मामलों का निष्पादन किया जाता है. लेकिन बैंक के पदाधिकारियों समझौते का एजेंडा निश्चित नहीं होने के कारण शनिवार को कई ऋण धारक बगैर समझौते के ही लौट गये. इस दिशा में कुछ बैंकों की हठधर्मिता भी देखी गयी जिसे लेकर वरीय पदाधिकारियों को भी सूचित किया गया है.

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