अर्थराइटिस को अब तक केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता रहा है. लेकिन बदलते वक्त में अर्थराइटिस अब न केवल कम उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रही है, बल्कि बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं. ऐसे में इसके लक्षणों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.
इन मुश्किलों को देखते हुए आर्थराइटिस (गठिया) से बचाव की दिशा में वैज्ञानिकों को बड़ी उपलब्धि हासिल की है.
अर्थराइटिस का पता लगाने के लिए विज्ञानिकों ने खून के सैम्पल लेकर उनकी जाँच शुरू की जिसके परीक्षणों ने सभी को हैरान कर दिया.
शोधकर्ताओं ने खून की जांच से 16 साल पहले ही गठिया होने के खतरे की पहचान का तरीका खोज निकाला है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से संबद्ध केनेडी इंस्टीट्यूट ऑफ र्यूमेटोलॉजी के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रोटीन टेनास्किन-सी से जुड़े एंटीबॉडीज की जांच से गठिया के खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि शरीर में किसी भी तरह की अनियमितता होने से कुछ प्रोटीनों में बदलाव हो जाता है. यही बदलाव कई बार कुछ एंटीबॉडी को अकारण सक्रिय कर देते हैं, जो गठिया का कारण बनता है.
गठिया से पीड़ित लोगों के शरीर में टेनास्किन-सी का स्तर बहुत ही हाई लेवल पर पाया जाता है. शोधकर्ताओं ने इसी को आधार बना खून की जांच से गठिया के खतरे का पता लगाने का यह तरीका खोज निकाला है.