वाराणसी : भारत और जापान के संबंध में नया अध्याय जोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे कल प्राचीन मंदिरोें की नगरी वाराणसी की यात्रा करेंगे. पिछले साल अगस्त में जापान यात्रा के दौरान आबे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केे उनके लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी और क्योटो के बीच ‘पार्टनर सिटी’ समझौता करने की पृष्ठभूमि में यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण है.
आबे आज से तीन दिनों की भारत यात्रा पर हैं और वह मोदी के साथ वाराणसी में पवित्र नदी गंगा के दशाश्वमेध घाट पर ‘गंगा आरती’ के मनमोहक आयोजन में शामिल होंगे. नदी में नौकाओं की मदद से एक भव्य अस्थायी मंच तैयार किया गया है जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विशेष मंजूरी लेकर संगीत के लिए म्युजिक सिस्टम भी लगाया गया है.
सेना और नौसेना के कर्मी इस अस्थायी मंच की निगरानी करेंगे और यहीं से दोनों देशों के प्रमुख इस अद्भुत आयोजन के मनोरम दृश्य का आनंद ले सकेंगे. प्राचीन मंदिरों का यह शहर बुद्ध की स्थली सारनाथ से 15 किलोमीटर से भी कम की दूरी पर स्थित है. सारनाथ में ही बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था और यहीं उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था. जापान सहित अधिकतर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की धार्मिक और सांस्कृति चेतना में सारनाथ का खास महत्व है, जहां बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या अधिक है.
मोदी और आबे के बीच अच्छा तालमेल देखने को मिलता है जिनकी निजी मित्रता अक्सर उनके ट्विटर संदेशों में झलकती है. प्रधानमंत्री ने आज आबे को भारत का एक बेहतर मित्र बताते हुए उन्हें एक अभूतपूर्व नेता बताया. मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा कि भारत अपने इस अच्छे दोस्त और एक अभूतपूर्व नेता प्रधानमंत्री आबे के स्वागत को तैयार है. उनकी यात्रा से भारत-जापान संबंधों में और प्रगाढता आएगी. उन्होंने भारत-जापान संबंधों और असीम संभावनाओं एवं सांस्कृतिक संबंध पर आबे के दृष्टिकोण की सराहना की.
रात्रि भोजन के बाद राष्ट्रीय राजधानी के लिए उडान भरने से पहले दोनों नेताओं के शहर के गणमान्य व्यक्तियों के साथ बातचीत करने की भी संभावना है. आबे की यात्रा के मद्देनजर तैयारियों और सुरक्षा का जायजा लेने के लिए पिछले कुछ दिनों से जापान दूतावास के अधिकारी वहां मौजूद हैं और इस दौरान मोदी के वाराणसी के कलाकारों द्वारा तैयार कलाकृति आबे को भेंट में देने की संभावना है.
मोदी लोकसभा में वाराणसी का प्रतिनिधित्व करते हैं और मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद वह कई बार शहर की यात्रा पर आ चुके हैं. बहरहाल, यह पहला मौका होगा जब शहर के निवासियों के बेहतर भविष्य के लिए वह किसी विदेशी समकक्ष के साथ वहां जाएंगे. आमतौर पर ‘काशी-क्योटो समझौता’ कहे जाने वाले इस समझौते के तहत प्राचीन मंदिरों के इस शहर को अपनी ऐतिहासिक छवि को संरक्षित करते हुए जापान की पूर्व राजधानी से यातायात जाम की समस्या, स्वच्छता की बुरी हालत और कमजोर होते बुनियादी ढांचों से निजात पाने में सहयोग मिलेगी.